- देश का 4.63 प्रतिशत भूभाग वेटलैंड यानी नमभूमि के अंतर्गत आता है।
- नमभूमि या वेटलैंड का मतलब उस स्थान से है जहां पूरे वर्ष या किसी विशेष मौसम में पानी मौजूद रहता है। इससे जमीन के पानी की जरूरत पूरी होती है।
- पिछले चार दशक में देश के करीब एक तिहाई जैव-विविधता से भरे वेटलैंड्स खत्म हो गए। तेजी से होता शहरीकरण, खेती के बढ़ते रकबे और प्रदूषण को इसका जिम्मेदार माना जाता है।
जंगल को धरती का फेफड़ा कहा जाता है क्योंकि यही जंगल वातावरण में फैले कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। इस आधार पर कहें तो वेटलैंड्स धरती के लिए गुर्दे का काम करते हैं। इनका एक काम होता है गंदे पानी को स्वच्छ पानी में तब्दील करना।
वेटलैंड्स का अगर हिन्दी में अनुवाद करने की कोशिश की जाए तो इसके लिए कोई एक शब्द पर्याप्त नहीं होगा। वैसे वेटलैण्ड्स का तात्पर्य नमी वाले उन क्षेत्र या भूभाग से है जहां पूरे वर्ष या कुछ खास महीनों में पानी भरा रहता है। हमारे आसपास इन वेट्लैंड्स को छोटे-बड़े तालाब, पोखर, झील और नदियों की शक्ल में देखा जा सकता है।
वेटलैंड्स हमारे उपयोग लायक पानी का एक बड़ा स्रोत होने के साथ-साथ बाढ़ से बचने में भी मानव-समाज की सहायता करते हैं। इंसानी दुनिया के बने रहने में योगदान के साथ ये जलीय जीवन का आधार हैं। जैव-विविधता को समृद्ध करते हैं। प्रकृति की खूबसूरती को उभारने वाले वेटलैंड्स का इंसानी सभ्यता और संस्कृति को समृद्ध करने में बड़ा योगदान रहा है। यही वजह है कि लोक गीत-संगीत, कविताओं और फिल्मी गानों में भी पानी, तालाब, पोखर, नदी इत्यादि का जिक्र बार-बार किया जाता रहा है।
भारत के 4.63 प्रतिशत इलाके वेटलैंड्स के अंतर्गत आते हैं, जिसमें 7,57,060 वेटलैंड्स शामिल हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण ये जलस्रोत उपेक्षा के शिकार हैं। पर सवाल है कि हमारे जीवन को बनाये रखने में ऐसी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इन वेटलैंड्स को हम कितना जानते हैं?
मोंगाबे-हिन्दी वेटलैंड्स से जुड़ी ऐसी सारी जानकारी लेकर आया है जिसे आपको जानना चाहिए।
वेटलैंड्स क्या हैं?
वेटलैंड्स, यानी नमभूमि या आद्रभूमि। वैसी भूमि जो पानी से सराबोर हो। आसान भाषा में समझे तो जमीन का वह हिस्सा जहां पानी और भूमि का मिलन हो उसे वेटलैंड कहते हैं। सालभर या साल के कुछ महीने यहां पानी भरा रहता है।
रामसर कन्वेंशन के तहत इसकी एक परिभाषा दी गई है। इसके अनुसार दलदली भूमि, बाढ़ के मैदान, नदियां, झीलें, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियां और अन्य समुद्री क्षेत्र जो कि कम ज्वार पर 6 मीटर से अधिक गहरे न हो- सब वेटलैंड्स की श्रेणी में आते हैं। साथ ही मानव निर्मित तालाब या अपशिष्ट-जल को उपचारित करने वाले तालाब या जलाशय भी इसमें शामिल हैं।
वेटलैंड्स की जैविक संरचना में पानी में रहने वाली मछलियां, पानी के आसपास रहने वाले प्रवासी पक्षी सब शामिल हैं।
विभिन्न प्रकार के वेटलैंड्स
वेटलैंड्स में मैंग्रोव, बाढ़ के मैदान, नदी, तालाब, झील, पानी से भरे जंगल, धान के खेत सहित वह सारे स्थान शामिल हैं जहां पानी भरा रहता है। धरती के हर हिस्से में वेटलैंड्स पाए जाते हैं। चाहे वह बर्फीले इलाके हों या ऊंची पहाड़ियों वाले स्थान।
भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र के बाढ़ वाले मैदान से लेकर समुद्र किनारे मैंग्रोव तक, भांति-भांति प्रकार के वेटलैंड्स देखने को मिलते हैं।
वेटलैंड इतना महत्वपूर्ण क्यों?
जल चक्र के लिए वेटलैंड्स का काफी महत्व है। जल संग्रहण, भूजल स्तर को बनाए रखने और पानी की सफाई तक में इसकी भूमिका है। बाढ़ का पानी अपने में समटेकर यह इंसानी आबादी को बाढ़ से बचाने में मददगार है। मौसम परिवर्तन की घटनाएं जैसे बाढ़ और सूखे से निपटने में कई वेटलैंड्स सहायक हैं।
मछली, मखाना और अन्य जलीय पौधों की खेती करने वाले लोगों का रोजगार वेटलैंड्स पर निर्भर करता है। धरती पर कार्बन संग्रह करने वाले स्रोतों में वेटलैंड्स का नाम शीर्ष पर आता है जिससे वातावरण में कार्बन की मात्रा में कमी आती है।
भारत में इस समय 42 वेटलैंड्स को रामसर कंन्वेशन के द्वारा रामसर साइट के तौर पर मान्यता मिली हुई है। इसका कुल क्षेत्रफल तकरीबन 10 लाख हेक्टेयर से अधिक है।
क्यों खतरे में है वेटलैंड का अस्तित्व?
विश्वभर के 87 प्रतिशत वेटलैंड्स खत्म हो चुके हैं और यह सबह 1700 ईस्वी के बाद होना शुरू हुआ। 1970 के बाद दुनिया के 35 प्रतिशत वेटलैंड्स खत्म हो गए। भारत में एक तिहाई वेटलैंड्स शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार की भेंट चढ़ गए। पिछले चार दशक में ही ऐसा हुआ है। जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी भी भारत में वेटलैंड्स खत्म होने की वजहों में से एक है।
शहरों के आसपास कचरे के ढेर पहाड़ जैसे बनते जा रहे हैं जिससे वेटलैंड्स के पाटे जाने का खतरा बना रहता है। कई जलस्रोत अपशिष्ट जल के भरने की वजह से तबाह हो गए। प्राकृतिक संसाधनों के बेजा दोहन से भी जलीय जीवन खतरे में है।
भारत के पास वेटलैंड्स बचाने की क्या है नीति?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत रामसर कन्वेंशन का हिस्सा है। दो फरवरी वर्ष 1971 में ईरान के शहर रामसर के कैस्पियन सागर तट पर यह कन्वेंशन आयोजित हुआ था।
भारत के पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 में भी वेटलैंड्स के संरक्षण की बात की गई है।
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 भी पारिस्थितिक तंत्र के सरंक्षण में वेटलैंड की भूमिका पर बात करता है। इस नीति में ऐसे नियामक तंत्र या कहें रेगुलटरी बॉडी को स्थापित करने की बात की गई है जो वेटलैंड के संरक्षण का ख्याल रखें।
वर्ष 2017 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वेटलैंड्स संरक्षण और प्रबंधन नियम बनाये जो कि पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत किया गया। इन नियमों की मदद से वेटलैंड्स के प्रबंधन का तंत्र तैयार किया गया है। वर्ष 2020 की शुरुआत में सरकार ने इसके लिए दिशानिर्देश भी जारी किए। नेशनल वेटलैंड इन्वेंटरी एंड असेसमेंट (एनडब्लूआईए) ने रिमोट सेंसिंग के जरिए वर्ष 2006 से लेकर 2011 तक राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वेटलैंड्स की एक सूची तैयार की। इसमें कुल 7,57,060 वेटलैंड्स को शामिल किया गया है। अनुमान है कि यह इलाका 1 करोड़ 52 लाख हेक्टेयर में फैला हुआ है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल क 4.63 प्रतिशत होता है।
केंद्र सरकार, राज्यों को वेटलैंड्स के संरक्षण में मदद करती है। राष्ट्रीय वेटलैंड्स संरक्षण कार्यक्रम 1986 से ही चला आ रहा है। वर्ष 2013 तक इस कार्यक्रम को नेशनल प्लान फॉर कंजरक्वेशन ऑफ एक्वेटिक इकोसिस्टम के नाम से जाना जाता रहा है। जल शक्ति मंत्रालय ने वेटलैंड्स के जीर्णोद्धार के लिए एक अभियान चलाया है।
वेटलैंड बचाने में हमारा क्या योगदान होना चाहिए?
संविधान के मुताबिक देश के नागरिकों के कर्तव्यों में पर्यावरण बचाए रखना भी शामिल है। इसमें जंगल, वन्यजीव, नदी और झील सब शामिल हैं।
देश के अलग-अलग हिस्सों से वेटलैंड्स बचाने वाले लोगों की कई प्रेरक कहानियां सामने आती हैं। चाहे कश्मीर में एक पिता-पुत्री के डल झील बचाने की कहानी हो या मिथिला के तालाबों को बचाने में स्थानीय नागरिकों के योगदान की कहानी, देशभर में इस तरह की कोशिशें चलती रहती हैं। एक ऐसी ही कहानी नोएडा के एक इंजीनियर की है जो कि बढ़ते शहरीकरण के बीच वेटलैंड्स बचाने में जुटे हैं।
बैनर तस्वीरः काशी के गंगा घाट पर प्रवासी पक्षियों की वजह से प्रकृति का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। तस्वीर– प्रभु बी/फ्लिकर