- सालभर पर्यटकों से गुलजार रहने वाला गोवा, शराब की वजह से उपजी समस्या से दो-चार हो रहा है। यहां रोजाना समुद्र किनारे, सड़कों पर और दूसरे पर्यटन स्थलों पर शराब की बोतलों का अंबार लग जाता है।
- कई पर्यटक इन बोतलों को फेंककर तोड़ देते हैं जिससे यह कचरा खतरनाक बन जाता है।
- गोवा में घरेलू पर्यटकों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वर्ष 2008 में 20 लाख पर्यटक सालाना गोवा पहुंचते थे। वर्ष 2018 में गोवा के मनोरम दृश्य का लुत्फ लेने करीब 70 लाख सैलानी पहुंचे।
- शराब की बोतलों ने गोवा के समुद्री किनारों को इतना गंदा कर दिया है कि कुछ लोग जो कहीं और जाने का खर्च वहन कर सकते हैं, वो विदेशों का रुख करने लगे हैं।
अपने खूबसूरत समुद्री किनारों यानी बीच की वजह से गोवा लंबे समय से एक बड़े पर्यटक वर्ग की पहली पसंद रहा है। पूरे साल यहां भारी मात्रा में पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। गोवा की अर्थव्यवस्था में भी पर्यटन-क्षेत्र का काफी योगदान है। लेकिन पर्यटकों की इस बढ़ती संख्या से न केवल स्थानीय आबो-हवा प्रभावित हो रही है बल्कि कचरे का उत्सर्जन भी बढ़ रहा है। इस कचरे में सबसे अधिक कांच की बनी शराब की बोतलें होती हैं।
वर्ष 2017 में केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान (सीएमएफआरआई) ने एक अध्ययन किया था जिसमें देश के 254 समुद्री तट (बीचों) को शामिल किया गया था। फिर पता चला कि गोवा के बीच पर कचरा सबसे अधिक होता है। इस अध्ययन में पाया गया कि गोवा के बीच पर मौजूद कुल कचरे में कांच के बोतलों का योगदान 33 प्रतिशत के करीब था। बीच पर नायलॉन से बने मछली पकड़ने वाले जालों के टुकड़े भी खूब पाए गए। करीब 36 फीसदी।
गोवा में शराब की टूटी हुई बोतलें खुलें में फैली हुई देखी जा सकती हैं। हाइवे हो, पर्यटन स्थल हो या समुद्री तट। टूटे-बिखरे कांच पर्यटकों के लिए भी खतरनाक हैं। तैरने या बीच पर सैर के दौरान सैलानियों के चोटिल होने का खतरा बना रहता है।
पहले शराब कंपनियां ग्राहकों को खाली बोतल के पैसे देकर उसे वापस ले लेती थीं। लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
अब खाली बोतलों के निपटारे की जिम्मेदारी गोवा वेस्ट मैनेजमेंट कॉर्पोरेशन (जीडब्लूएमसी) की है।
मनोरम दृश्य में प्रदूषण फैलाते सैलानी
“सप्ताह के अंत में 25 हजार से 30 हजार सैलानी बागा-सिंक्वेरियम बीच पर पाए जाते हैं। पर्यटकों में पुरुषों की संख्या अधिक होती है और सैर के दौरान इनका शराब के प्रति रुझान अधिक होता है। इस बीच पर 150 ऐसे अड्डे हैं जहां शराब बेचने की इजाजत है। इस वजह से यहां पर शराब के हजारों खाली बोतलें इधर-उधर बिखरी मिलती हैं,” कहते हैं नेविल प्रोनेका जो एक रेस्टोरेंट संचालक हैं।
“इन दुकानों पर कायदे से एक नोटिस चस्पा होना चाहिए जिसमें लिखा हो कि खुले में शराब का सेवन वर्जित है। उधर बड़ी दुकानों के बाहर ही पर्यटक शराब पीते हैं। इन्हीं दुकानों से ग्राहकों को डिस्पोजेबल गिलास भी दिया जाता है। इन दुकानों को जो लाइसेंस मिला है उसकी शर्त के मुताबिक यह गैरकानूनी है,“ नेविल ने बताया।
“कम खर्च में घूमने वाले कई पर्यटक तो बीच पर ही बोतल ले जाते हैं। नशा चढ़ने के बाद वह बोतल को वहीं फेंक देते हैं। सस्ते में शराब पीने की कीमत समुद्री-तटों के हिस्से आता है। टूटे हुए बोतलों पर अगर नंगे पांव कोई चल ले तो घायल होने का खतरा भी बना रहता है। ऐसे में पर्यटकों के लिए समुद्र के तट खतरनाक होते जा रहे हैं,” प्रोनेका ने बताया।
इन खतरों को देखते हुए अमीर पर्यटक गोवा को छोड़कर श्रीलंका का रुख कर रहे हैं।
गोवा में पर्यटन के उद्योग से जुड़े लोग सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने वाले पर्यटकों पर दो हजार से 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाने के नियम को सख्ती से लागू करवाना चाहते हैं।
“गोवा में हर तरह के नियम तो हैं लेकिन जमीन पर इनका कोई असर नहीं दिखता। इंडियन रिजर्व बटालियन को इस नियम का पालन कराने की जिम्मेदारी दी गई है। अगर यह बटालियन सच में इसको सही से लागू कराने लगे तो कानून तोड़ने वाले लोगों पर कार्रवाई करने के लिए कई बसों की जरूरत पड़ेगी। अगर वे किसी समूह को नियम तोड़ते हुए पकड़ते हैं तो एक लाख रुपए का जुर्माना वसूला जा सकता है, लेकिन जुर्माना वसूलने की कोशिश करने वाले अधिकारियों का तबादला तक हो जाता है। यहां शराब लॉबी काफी पहुंच वाली है,” अपना नाम न जाहिर करने के शर्त पर एक रेस्टोरेंट मालिक ने बताया।
बीच पर पर्यटकों की मनमानी का एक उदाहरण वर्ष 2020 का है जब नए साल के तीन दिन पहले से पार्टी शुरू हुई और बीच पर शराब की बोतलों का अंबार लग गया। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें वायरल हुईं जिसके बाद मीडिया में भी इसकी काफी चर्चा हुई। हालांकि, इस घटना के बाद भी किसी पर जुर्माना लगा हो ऐसी जानकारी सामने नहीं आई।
देसी पर्यटकों की बाढ़ से अस्थिर हुए गोवा के बीच
वर्ष 2005 से पहले गोवा के तटों पर स्थानीय पर्यटकों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय पर्यटक की खासी अधिक संख्या हुआ करती थी। साल के कुछ ही महीने यहां पर्यटक देखे जाते थे। वे वहां से जाते वक्त इतना ही कचरा छोड़कर जाते थे जिसका प्रबंधन आसानी से हो जाता था। गोवा में कुछ महीने ऐसे भी होते थे जब समुद्र के तट खाली रहते थे जिससे उनको अपना प्राकृतिक रूप में वापस पाने का समय मिल जाता था।
पर अब गोवा की स्थिति काफी बदल चुकी है। पिछले वर्षों में यहां आने वाले स्थानीय पर्यटकों की वजह से पर्यटकों की संख्या गोवा की आबादी से पांच गुना हो गई है। वर्ष 2018 में गोवा में 80 लाख पर्यटक आए जिसमें से 9,30,000 विदेशी पर्यटक शामिल हैं।
गोवा स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक पर्यटकों और स्थानीय लोगों की वजह से गोवा में 527 टन कचरा रोज पैदा होता है।
गोवा में 2725 बियर बेचने की दुकाने हैं जिसके माध्यम से रोजाना लाखों बोतल बियर बिकती है और अंततः कचरे के रूप में सामने आती है। लगभग 99 प्रतिशत कांच का कचरा बियर बोतल ही होता है, जो कि खुले में फैला दिखता है। बीच पर डस्टबिन होने के बावजूद लोग इसे खुले में फेकते हैं, कहना है क्लिंटन वाज का जो वीरिसाइकल नाम की कंपनी चलाते हैं। चलती गाड़ी से कांच की बोतल फेकते हुए पर्यटकों को देखना गोवा में सामान्य घटना है।
यहां तक की दूर-दराज के टापू भी कांच के कचरे से अछूते नहीं है। बीच को साफ करने की जिम्मेदारी निभाने वाली कंपनी वीरीसाइकिल ने वर्ष 2018 में समुद्री तटों से 3.17 टन कचरा साफ किया।
“यहां ऐसे स्थान पर भी कचरा मौजूद है जहां पहुंचने के लिए हमें नाव का सहारा लेना पड़ता है। नाव पर शराब ले जाने पर प्रतिबंध होने के बावजूद इस नियम का पालन नहीं होता है। तटों को साफ करने के लिए कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सेबिलिटी के पैसों का भी इस्तेमाल होना चाहिए,” वाज कहते हैं।
शराब के कारोबार से जुड़े 46 बियर और इंडियन मेड फॉरेन लिकर (आईएमएफएल) बनाने वाली संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा रही हैं। “पर्यटक सिर्फ शराब की बोतल ही नहीं फेक रहे बल्कि दूसरे तरह का कचरा भी फैला रहे हैं,” यह कहना है ऑल गोवा लिकर ट्रेडर्स असोसिएशन के प्रेसिडेंट दत्ताप्रसाद नायक का।
सरकार ने संभाली है साफ-सफाई की जिम्मेदारी
प्रदूषण फैलाने वाले से ही सफाई करवाए जाने के सिद्धांत के खिलाफ जाते हुए शराब की बोतलों की सफाई का जिम्मा सरकार ने अपने ऊपर लिया है। इसके लिए खर्चे का बड़ा बोझ जनता के हिस्से आता है। वर्ष 2014 में सफाई का खर्चा दो करोड़ से बढ़कर अब 12 करोड़ रुपए प्रति वर्ष पहुंच चुका है। गोवा में समुद्र का तट 106 किलोमीटर तक फैला हुआ है। कचरा साफ करने वाले ठेकेदारों का कहना है कि रोजाना 300 लोग सफाई के काम में लगते हैं, जिसमें से 50 को सिर्फ बागा-सिंक्वेरियम बीच पर ही लगाना पड़ता है।
गोवा वेस्ट मैनेजमेंट कॉर्पोरेशन की तरफ से हर दिन ठेकेदारों को 650 रुपए प्रति किलोमीटर की दर से भुगतान किया जाता है। यह भुगतान सिर्फ हाइवे और सड़क किनारे फैले कचरे की सफाई के लिए किया जाता है।
कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने मोंगाबे-हिन्दी को जानकारी दी कि इस कचरे को रिसाइकल यानी नए तरीके इसे इस्तेमाल करने की कोशिश भी होती है। गोवा स्थित हिंदुस्तान वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट में रोजाना 250 किलो कांच का कचरा जमा होता है, जिसमें से 85 प्रतिशत शराब की बोतले होती हैं।
कॉर्पोरेशन ने अक्टूबर 2020 में कचरा सफाई पर लगने वाले खर्च की पूर्ति के लिए भारी मात्रा में प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने वाली कंपनियों से 72 हजार रुपए प्रति टन के हिसाब से पैसा लेना शुरू किया। इस कचरे को कर्नाटक की सीमेंट फैक्ट्री में ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए बेचा जाने लगा।
कांच के मामले में गोवा का कचरा प्रबंधन का कानून भी लचीला
गोवा का राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कांच के कचरे पर कोई नियंत्रण नहीं रखता। बोर्ड ने प्लास्टिक, ई-वेस्ट और मेडिकल कचरे के लिए एक विशेष नीति बनाई हुई है, पर कांच के लिए नहीं।
बोर्ज के चेयरमैन गणेश शेतगांवकर ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि बोर्ड कचरा फैलाने वाली कंपनी पर कचरे को वापस लेने की जिम्मेदारी देना चाहता है। लेकिन इसके लिए मौजूद नियमों में परिवर्तन करना होगा।
गोवा में आखिर किस मात्रा में शराब की खपत होती है? इस सवाल के जवाब में आबकारी विभाग के जुड़े अधिकारी कोई ठोस आंकड़ा देने से इंकार करते हैं। हालांकि, इस क्षेत्र से राज्य को वर्ष 2019-20 में करीब 487 करोड़ रुपए की आमदनी हुई।
उधर कंपनियां भी पानी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुकी हैं। रेस्टोरेंट में शराब पीने वाले लोग बोतल वहीं छोड़कर जाते हैं। शराब कंपनी वापस 3 से 4 रुपए में खरीद लेती है। नई बोतल के कीमत के मुकाबले आधे दाम पर।
“जो लोग बियर खरीदकर कहीं सार्वजनिक स्थल पर पीते हैं वह बोतल कचरे के रूप में समस्याएं खड़ी करता है,” वाज कहते हैं।
वह अनुमान लगाते हैं कि घरों से निकलने वाले कचरे में 10 फीसदी हिस्सा कांच का होता है।
वाज कहते हैं कि पहले गोवा में बोतल की कीमत दुकानदार ग्राहक से लेता था और जब ग्राहक सही सलामत खाली बोतले लौटाते थे तब उसे वह पैसा वापस कर दिया जाता था। शराब निर्माता कंपनी को दुकानदारों से ही बोतल वापस मिल जाता था। अब यह तंत्र काम नहीं कर रहा और कंपनियां कचरा उठाने वाले लोगों से ही बोतल खरीद रही हैं।
शराब उद्योग से जुड़े लोग मानते हैं कि किंगफिशर ने बोतल वापस लेने वाला चलन बहुत बाद तक रखा लेकिन शराब बेचने वाले लोगों को यह बात अधिक पसंद नहीं थी। मजबूरन 2020 के बाद इसने भी ऐसा करना बंद कर दिया।
“2018 में एक सर्वे में सामने आया था कि फेकी गई बियर बोतल में किंगफिशर की संख्या न के बराबर है, क्योंकि तब यह कंपनी बोतल वापस खरीद रही थी,” वाज ने बताया।
“अब बियर के कई ब्रांड उपलब्ध हैं, ऐसे में खाली बोतल को इकट्ठा करना दुकानदारों के वश में नहीं है। इसका निर्माण करने वाली कंपनी को ही ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए,” दत्ताप्रसाद नायक ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
बैनर तस्वीरः गोवा बीच पर पर्यटकों की भीड़। पर्यटकों की इस बढ़ती संख्या से न केवल स्थानीय आबो-हवा प्रभावित हो रही है बल्कि कचरे का उत्सर्जन भी बढ़ रहा है। तस्वीरः पामेला डी’मेलो