- दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए युवा भी कॉप-26 में मोर्चा जमाए हुए है। ये जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
- इन युवाओं ने ग्लासगो शहर में विरोध प्रदर्शन किया और अपने तरीकों से सबका ध्यान खींचा। इस दौरान कई पैनल चर्चाएं भी आयोजित की जा रही हैं।
- प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ता ऐसे देशों से हैं जहां जलवायु परिवर्तन की मार सबसे अधिक पड़ रही है। उनका मानना है कि अक्सर वैश्विक चर्चाओं के दौरान उनकी बात नहीं सुनी जाती हैं। उनके मुद्दे अनसुने रह जाते हैं।
यह ग्लासगो में जलवायु सम्मेलन कॉप 26 का दूसरा सप्ताह है। विश्व के नेताओं ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की आवश्यकता के साथ अपने देशों के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की है। हालांकि, इन चर्चाओं और निर्णयों से सब खुश हों, ऐसा भी नहीं है। इन नाखुश बिरादरी में युवाओं की संख्या काफी अधिक है। वे इस वार्ता को समावेशी नहीं मान रहे हैं। इसके मद्देनजर दुनियाभर से जमा हुए युवा मांग कर रहे हैं कि उनकी भी बात सुनी जाए और निर्णय-प्रक्रिया में उन्हें भी शामिल किया जाए।
ग्लासगो की सड़कों पर हुए इस प्रदर्शन में दुनियाभर से युवा, आदिवासी और विभिन्न पर्यावरण के विषयों पर काम करने वाले कार्यकर्ता इकट्ठे हुए। वैश्विक मुद्दों के अलावा यहां भारत के आदिवासियों के मुद्दे को भी प्रमुखता से आवाज दी गयी। गांव छोड़ब नहीं, और हसदेव अरण्य बचाओ जैसे पोस्टर-बैनर के साथ युवाओं ने प्रदर्शन में भाग लिया।
“जलवायु परिवर्तन की मार झेलने वाले समुदायों की जरूरी आवाज भी यहां मौजूद नहीं है,” जलवायु कार्यकर्ता लौरा यंग ने 4 नवंबर को कॉप-26 के मुख्य स्थल पर आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में यह बात कही।
कॉप-26 के दौरान युवाओं ने विरोध दर्ज कराने के लिए ग्लासगो और दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन किए। बीते 5 और 6 नवंबर को ग्लासगो में क्लाइमेट एक्शन और क्लाइमेट जस्टिस की मांग को लेकर दो बड़े विरोध प्रदर्शन हुए। क्लाइमेट एक्शन का मतलब जलवायु परिवर्तन से जंग में उचित कदम उठाने से है वहीं क्लाइमेट जस्टिस से उस न्यायोचित कदम से है जिसमें कमजोर देशों और समुदायों को अमीर देशों से आर्थिक मदद मिले। सनद रहे कि जलवायु परिवर्तन में सबसे अधिक योगदान अमीर देशों का पर इसका सबसे अधिक खामियाजा गरीब देश भुगत रहे हैं।
इन प्रदर्शनों के आयोजकों ने कहा कि 6 नवंबर को लगभग 1,00,000 लोगों ने मार्च किया। कॉप-26 का यह सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन बन गया।
दोनों दिन प्रदर्शनकारियों ने ग्लासगो की सड़कों पर मार्च किया और नारे लगाए। इन नारों में क्लाइमेट जस्टिस को लेकर तत्काल कदम उठाने की मांग की।
रंगीन तख्तियां, संगीत और अलग-अलग वेशभूषा के साथ यह प्रदर्शन दूसरे दिन और अधिक शक्तिशाली बन गया। दूसरे दिन प्रदर्शनकारियों ने भारी बारिश के बावजूद मार्च किया। विभिन्न युवा समूहों, आदिवासी समूहों, गैर सरकारी संगठनों और विभिन्न देशों के लोगों ने इन प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए ग्लासगो पहुंचे थे।
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ए फ्राइडे फॉर फ्यूचर एंड एक्सटिंक्शन रिबेलियन उन समूहों में से है जिन्हें वहां मौजूद लोगों की सराहना मिली। लोगों ने प्रदर्शन में कॉप-26 में वैश्विक नेताओं की प्रतिबद्धताओं के प्रति निराशा व्यक्त की।
शुक्रवार को मार्च का नेतृत्व करने वाली स्वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने कॉप-26 को ‘ग्लोबल नॉर्थ ग्रीनवॉश फेस्टिवल’ कहा।
“अब भविष्य के उन दावों का कोई मतलब नहीं है जिसका पालन होगा कि नहीं, मालूम नहीं है। अब तक ऐसे वादों का ट्रैक रिकॉर्ड देखें। हम उनके बेमतलब की बात से थक गए हैं,” ग्रेटा ने कहा।
“यही पृथ्वी हमें विरासत में मिलने वाली है। लेकिन हमें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया है,” स्कॉटलैंड के 24-वर्षीय सेबस्टियन ने शनिवार को विरोध प्रदर्शन में कहा।
23-वर्षीय एलिस बरवा ने शनिवार को विरोध प्रदर्शन में आदिवासी युवाओं का प्रतिनिधित्व किया। “मैं यहां एक आदिवासी युवा महिला के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने आई हूं। आदिवासियों और उनके अधिकारों को मान्यता नहीं है। हमें अपनी बात कहने के लिए मंच चाहिए। असल आवाज कॉप-26 के आयोजन स्थल के बाहर है। अपनी आवाज पहुंचाने के दरम्यान हमें लालफीताशाही का सामना करना होता है। कई रुकावटें सामने खड़ी होती हैं,” बरवा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
140 देश के 40 हजार युवाओं का साझा बयान
यूएनएफसीसीसी का युवाओं को समूह वाईओयूएनजीओ (यंगो) जिसमें कई युवा नेतृत्व वाले संगठन, शामिल हैं। इस 140 देशों के 40,000 युवाओं का एक साझा बयान आया है। ग्लोबल यूथ स्टेटमेंट नाम से इस बयान को पर कॉप के दौरान जारी किया गया। यूएनएफसीसीसी के कार्यकारी सचिव पेट्रीसिया एस्पिनोसा, कॉप-26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा, स्कॉटलैंड के मंत्री निकोला स्टर्जन, यूके के उच्च स्तरीय चैंपियन निगेल टॉपिंग और यूके आर्ची यंग के प्रमुख वार्ताकार इस दौरान मौजूद रहे।
भारत की एक सामाजिक उद्यमी वीना बालकृष्णन भी यंगो टीम का हिस्सा हैं। इन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, “यही पृथ्वी हमें विरासत में मिलने वाली है और आज के निर्णय से हम प्रभावित होने वाले हैं। इसलिए यंगो सिस्टम का हिस्सा बनकर हम अपनी बात उठा रहे हैं। ग्लोबल साउथ के लोगों के लिए यहां आयोजन स्थल तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। लेकिन हम अभी भी दुनिया भर में रहने वाले लोगों के बयान लेकर इसे साझा कर रहे हैं। यंगो सुनिश्चित करेगा कि ऐसे लोगों की आवाज सुनी जाए।”
यंगो टीम ने यह भी आश्वासन दिया कि वे यूएनएफसीसीसी के साथ लगातार संपर्क में हैं और वे सभी युवा आवाजों को शामिल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
क्रिश्चियन एड की जेनिफर लार्बी ने क्लाइमेट जस्टिस कैपेन एक्ट अलायंस ने सम्मेलन स्थल के भीतर बैनर ले जाने की वजह बताते हुए कहती हैं कि पारदर्शिता बरतना जरूरी है।
“अमीर देशों ने पेरिस समझौते के तहत वित्तीय सहयोग का वादा किया था। वह वादा टूट गया है। अब, विकसित देश कह रहे हैं कि वे इसे 2023 तक पूरा करेंगे। हम जानते हैं कि ये भी टूटे हुए वादे हैं! इसलिए इसके खिलाफ हम अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं, ” उन्होंने कहा।
इन प्रदर्शनों में दोहा डिबेट्स के मिहाद हामिद एल्फाकी भी शामिल हुए। यह एक मल्टीमीडिया संगठन है जो मतभेदों को पाटने, आम सहमति बनाने और तत्काल वैश्विक मुद्दों के समाधान की पहचान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उन्होंने युवाओं को शामिल करने की तत्काल आवश्यकता के बारे में मोंगाबे-हिन्दी से बात की।
“हमने यहां कॉप 26 में ‘दोहा पोर्टल’ की स्थापना की है। हम दुनिया के विभिन्न हिस्सों के युवा कार्यकर्ताओं से जुड़े हुए हैं। युवाओं तक पहुंचने से काफी फर्क पड़ा है। गाज़ा, फ़िलिस्तीन के युवा, जिनमें से अधिकांश को देश छोड़ने और अपनी सीमाओं के बाहर के लोगों से जुड़ने का अधिकार नहीं है, वे भी एक दूसरे से बातचीत कर रहे हैं। युवाओं को एक बार जब एक मंच मिल जाता है, तो उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है। गाजा के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर ही उनकी आवाज सुनना मुश्किल है। यह पोर्टल उनकी आवाज को विस्तार देने की एक कोशिश है, ” उन्होंने समझाया।
‘सबकी भूमिका अहम’
अर्चना सोरेंग, एक आदिवासी पर्यावरण कार्यकर्ता है। वे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के युवा सलाहकार समूह की सदस्य भी हैं। वह कहती हैं, “हमारे तरीके और उपकरण अलग हो सकते हैं लेकिन हम एक ही वजह से जुड़े हैं और वह है क्लाइमेट जस्टिस। विरोध काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे नेताओं की जवाबदेही तय होती है। इस साल की बातचीत के पहले युवा समूहों ने काफी तैयारी की है। गूढ़ मुद्दों पर अध्ययन कर खुद को शिक्षित किया है। हमें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल होने के लिए और अधिक आदिवासी युवाओं को मंच देने की भी आवश्यकता है।”
बैनर तस्वीरः 23-वर्षीय एलिस बरवा ने शनिवार को विरोध प्रदर्शन में आदिवासी युवाओं का प्रतिनिधित्व किया। उनके नेतृत्व में गांव छोड़ब नहीं और हसदेव अरण्य बचाओ जैसे पोस्टर्स प्रदर्शनी में शामिल किए गए। तस्वीर- प्रियंका शंकर/मोंगाबे