- दुनिया में सर्पदंश से सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं। अलग अलग शोध और रिपोर्टें भारत में सर्पदंश से मारे जाने वाले लोगों की संख्या 35,000 से 58,000 के बीच बताती हैं।
- भारत के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में एंटीवैनम उपलब्ध रहता है, वह भी निशुल्क। साथ ही मध्यम श्रेणी के शहरों में भी ठीक ठाक चलने वाले मेडिकल स्टोरों में एंटीवैनम मिलता है, तो फिर बड़ी संख्या में मौतें क्यों होती हैं?
- सर्पदंश के विशेषज्ञों और डॉक्टरों के मुताबिक विषैले सांप के डसने के बाद ढाई घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचने से अधिकांश जानें बच सकती हैं। लेकिन घबराकर दौड़ने भागने पर 20 से 40 मिनट के भीतर ही मौत हो सकती है।
गोवा में गुड़ी गांव के लोगों ने स्थानीय एनिमल रेस्क्यू स्वॉड को फोन किया। अक्टूबर 2019 की वह कॉल आबादी में घुसे एक सांप के बारे में थी। स्वॉड की तरफ से 35 साल के रिंकू कुमार गुप्ता मौके पर पहुंचे। वहां विषैला और बेहद फुर्तीला सांप रसेल वाइपर था। रेस्क्यू के दौराल रसेल वाइपर ने रिंकू पर हमला किया और दो नुकीले विषदंत चुभो दिए।
रिंकू जानते थे कि अब आगे उन्हें क्या मुश्किलें आ सकती हैं। रेस्क्यू का काम छोड़ वह धीमे धीमे गाड़ी तक पहुंचे और फिर 20 मिनट के भीतर चंदौर के सरकारी अस्पताल। इलाज के दौरान उन्हें एंटीवैनम की 10 डोज दी गई। डेढ़ दिन बाद कुछ दवाओं और परहेज की लिस्ट के साथ उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गयी।
रिंकू कहते हैं, “सांप के काटने के बाद पीड़ित को शांत रखना सबसे जरूरी है। घबराने या दौड़ने भागने पर धड़कन बढ़ जाती है और शरीर में खून तेजी से बहने लगता है। ब्लड सर्कुलेशन जितना तेज होगा, सांप का जहर उतनी ही तेजी से शरीर में फैलेगा, इसीलिए ये बहुत जरूरी है कि पीड़ित और आस पास के लोग पैनिक न करें।”
रसेल वाइपर के हमले से ठीक 10 महीने पहले रिंकू को इंडियन कोबरा ने भी डसा था। तब भी उन्हें 24 घंटे तक अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया। उस घटना के बारे में एनिमल रेस्क्यू स्वॉड गोवा के सदस्य रिंकू कहते हैं, “वो एक स्क्रैच बाइट थी, उसमें जहर नहीं था। इंडियन कोबरा समेत ज्यादातर विषैले सांप मुख्य रूप से तीन प्रकार से हमला करते हैं: विषहीन ड्राय बाइट, त्वचा को हल्का सा उधेड़ने वाली स्क्रैच बाइट और घातक परफेक्ट बाइट यानी जो मारने के इरादे से हो।”
सर्पदंश के विशेषज्ञों और डॉक्टरों के मुताबिक विषैले सांप के डसने के बाद ढाई घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचने से अधिकांश जानें बच सकती हैं। लेकिन घबराकर दौड़ने भागने पर 20 से 40 मिनट के भीतर ही मौत हो सकती है।
गोवा से करीब 2,000 किलोमीटर उत्तर में, उत्तर प्रदेश का रामपुर जिला स्थित है। जिले के बिलासपुर नाम के कस्बे के पास सर्पदंश का इलाज करने वाला एक क्लीनिक है। बीएएमएस की पढ़ाई कर चुकीं केरल की सिस्टर निर्मला 2009 से वहां सर्पदंश का इलाज कर रही हैं।
क्लीनिक रजिस्टर के पन्नों पर कुछ नामों पर लाल रंग का घेरा है। ये उन लोगों के नाम हैं, इलाज मिलने से पहले ही जिनकी जान चली गयी।
डॉ. निर्मला कहती हैं, “हर साल बरसात के सीजन में मध्य जून से अगस्त तक हमारे पास सर्पदंश के 35 से 50 मामले आते हैं। ज्यादातर मामलों में परिवारजन पहले पीड़ित को झाड़ फूंक के लिए ले जाते हैं और कंडीशन बिगड़ने के बाद हमारे पास पहुंचते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। जिनकी सांसें किसी तरह चल रही होती हैं, उन्हें भी बहुत ज्यादा एंटीवैनम की डोज देनी पड़ती है।”
भारत के बिग 4
दुनिया में सर्पदंश से सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं। अलग-अलग शोध और रिपोर्ट के हवाले से भारत में हर साल सर्पदंश से मारे जाने वाले लोगों की संख्या 50,000 के करीब बतायी जाती है। देश में पाई जाने वाली सांपों की करीब 275 प्रजातियों में से सिर्फ 60 ही विषैली हैं। इन 60 में भी चार प्रजातियों को ही मुख्य रूप से इंसान की मौत का जिम्मेदार माना जाता है। कई लोग विषहीन अजगर और रसेल वाइपर में अंतर नहीं कर पाते हैं।
बिग 4 कहे जाने वाले इन चार घातक सांपों में पहले नंबर पर भारत का सबसे विषैला सांप कॉमन क्रेट (करैत) है। दूसरे नंबर पर इंडियन कोबरा (स्पैक्टिकल्ड कोबरा), तीसरे नंबर पर रसेल वाइपर और चौथे नंबर पर सॉ स्केल्ड वाइपर है।
वैसे भारत में सबसे बड़ा विषैला सांप किंग कोबरा है। यह स्पैक्टिकल्ड कोबरा से अलग प्रजाति है। स्पैक्टिकल्ड कोबरा के फन में पीछे एक ऐनक सा आकार दिखता है। वहीं किंग कोबरा के फन के पीछे ऐसी कोई प्राकृतिक बनावट नहीं होती। किंग कोबरा के डसने के मामले इक्का दुक्का के बराबर आते हैं।
उपलब्ध इलाज के बावजूद इतनी मौतें क्यों?
भारत में इन चारों सांपों के जहर के मिश्रण से एक किस्म का ऑलराउंडर एंटीवैनम बनाया जाता है। इस एंटीवैनम में इंडियन कोबरा, कॉमन क्रैट, रसल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के विष का एंटीसीरम होता है। सफेद पावडर के रूप में ग्लास वाइल में पैक किए जाने वाले इस एंटीवैनम को भारत में सात फॉर्मास्यूटिकल लैबें बनाती हैं। इन लैबों की क्षमता हर साल 10 एमएल के 20 लाख डोज तैयार करने की है।
विषैले सांप की पहचान न होने पर भी डॉक्टरों की निगरानी में दिया जाने वाला यह एंटीवैनम जीवनरक्षक साबित होता है। भारत में ही हुए एक शोध के मुताबिक समय पर एंटीवैनम ट्रीटमेंट मिलने से 90 फीसदी लोगों की जान बचाई जा सकती है।
भारत के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में एंटीवैनम उपलब्ध रहता है, वह भी निशुल्क। साथ ही मध्यम श्रेणी के शहरों में भी ठीक ठाक चलने वाले मेडिकल स्टोरों में एंटीवैनम मिलता है, तो फिर बड़ी संख्या में मौतें क्यों होती हैं?
इसका उत्तर बहुत हद तक जागरूकता से जुड़ा है। दक्षिण भारत को छोड़ दें तो देश के ज्यादातर निजी या सरकारी अस्पतालों के इंफॉर्मेशन बोर्ड पर इस बात का कोई जिक्र नहीं किया जाता है कि वहां सर्पदंश का भी इलाज उपलब्ध है। इमरजेंसी, हार्ट, जनरल, सर्जरी, हड्डी, ईएनटी, एमआरआई और रेडियोलॉजी समेत तमाम बीमारियां या सेवाएं लिखी रहती हैं लेकिन स्नेक बाइट को लेकर न तो कोई बोर्ड मिलता है न ही कोई चस्पा पोस्टर।
अखबार या टेलिविजन पर दिए जाने वाले जागरूकता संबंधी विज्ञापनों में भी पोलियो, डेंगी, एड्स, कोविड-19 और टीबी जैसे मुद्दे होते हैं लेकिन सर्पदंश जैसा गंभीर संकट को वहां भी जगह नहीं मिलती। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस नेगलेक्टेड डीजीज की श्रेणी में रखा है और इस संस्था का मानना है कि अफ्रीका और भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों के लिए कोताही और जागरूकता का अभाव भी जिम्मेदार है। आईसीएमआर ने हाल ही में महाराष्ट्र में एक अध्ययन किया और पाया कि सांप काटने का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर होता ही नहीं है। मरीजों को बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है जिससे इलाज मिलने में देरी होती है और मरीजों की जान चली जाती है।
कई ऐसे विदेशी नजीर मौजूद हैं जहां विषैले सांप अधिक पाए जाते हैं पर वहां मौत कम होती है। जैसे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका में साल में हद से 10 लोगों की मौत सांप काटने से होती है।
झाड़ फूंक पर भरोसा क्यों?
अधिकतर सर्प विशेषज्ञ दावा करते हैं कि कई बार विषैले सांप सिर्फ डराने के लिए हमले का नाटक करते हैं। मसलन, कोबरा कई बार सिर्फ अपना फन पटखता है। घबराने पर रसेल वाइपर शरीर में हवा भरकर कुकर की तरह सीटी सी बजाने लगता है।
ड्राय बाइट या स्क्रैच बाइट होने पर या फिर विषहीन सांप के काटने पर पीड़ित अगर बहुत न घबराए तो जान बचनी तय है। लेकिन जानकारी के अभाव और डर के कारण अक्सर पीड़ित परिवार मंत्र फूंकने वालों या झाड़ फूंक करने वालों के पास जाता है। पीड़ित बचा तो उसे झाड़ फूंक की कामयाबी बताया जाता है और अगर मौत हो गई तो देरी या ऊपर वाले मर्जी। महाराष्ट्र में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि ये झाड़-फूंक करने वालों को अस्पताल में उपलब्ध इलाज की जानकारी एकदम नहीं होती।
डॉ. निर्मला और रिंकू कुमार एक टिप देते हुए कहते हैं कि विषैले सांप के काटने पर शरीर में प्रमुखता से गड़े हुए दो दांतों के निशान दिखते हैं। उस जगह पर त्वचा में या तो सूजन आ जाती है या वह नीली पड़ने लगती है। कॉमन क्रैट के काटने पर दो बारीक खुरचनें नजर आती हैं। वहीं विषहीन सांप के काटने पर दो दांतों के मोटे निशान नहीं दिखते, बल्कि उल्टे यू या उल्टे वी के आकार बनाते कई निशान दिखते हैं।
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रिंकू इसकी वजह बताते हैं, “विषैले सांप विष इंजेक्ट कर शिकार को मारते हैं और ये विष फैंग कहे जाने वाले दो दांतों से निकलता है। वहीं विषहीन सांप शिकार को जबड़ों में जकड़ने के बाद उसे कुंडली में लपेटकर मारते हैं, लिहाजा मजबूत पकड़ के लिए उनके मुंह कई दांत होते हैं।”
एक्सपर्ट कहते हैं कि सांप चाहे विषहीन ही क्यों न हो, उसके काटने पर भी अस्पताल जाना जरूरी है। दिसंबर 2021 में बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सलमान खान को भी एक विषहीन सांप ने काटा, जिसके बाद सलमान सात घंटे तक अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रहे।
जागरूकता से इंसान भी बचेंगे और सांप भी
मामला सिर्फ जान गंवाने का नहीं है। एशिया और अफ्रीका में सर्पदंश के बाद विकलांग होने या लंबी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझने वालों की संख्या, मृतकों से कई गुना ज्यादा है।
भारत में सर्पदंश का सबसे ज्यादा शिकार निम्न आय वर्ग के लोग बनते हैं। परिवार पालने के लिए खेतीहर मजदूरी या बहुत छोटे स्तर पर कृषि या पशुपालन करने वाले ये लोग कामकाज के दौरान अकसर सांपों के डर या उनके गुस्से का शिकार बनते हैं। मृतकों में 20 से 50 साल के पुरुषों की संख्या सबसे ज्यादा है। पारिवारिक ढांचे में ऐसे कमाऊ सदस्य की मौत तमाम सामाजिक और आर्थिक परेशानियां खड़ी करती है।
सांपों को बचाने वाले रिंकू कहते हैं कि अगर भारत में सांपों और सर्पदंश के प्रति जागरुकता बढ़ाई जाए तो इससे लोगों को भी फायदा होगा और प्रकृति को भी। वह कहते हैं, “लोग को सांपों के बारे में जरा भी जानकारी नहीं है। तमाम किस्सों, फिल्मों और धारावाहिकों के जरिए उनके भीतर कई किस्म की गलत जानकारियां बैठ गई हैं। एक डर बैठ गया है, इसी वजह से कई लोग सांप को देखते ही मारना बेहतर समझते हैं।”
किस्सों, कहानियों और टीवी सिनेमा में बदला लेने के लिए बेताब विलेन की तरह दिखाए जाने वाले सांप घटती हरियाली के चलते मुश्किल में हैं। प्राकृतिक परिवेश में हर सांप का अपना इलाका होता है, जो तेजी से खोता जा रहा है। इन सबसे सिर्फ मुश्किलें बढ़ रहीं हैं, विशेषज्ञ कहते हैं।
बैनर तस्वीरः इंडियन कोबरा (स्पैक्टिकल्ड कोबरा) को रेस्क्यू करते रिंकू कुमार गुप्ता। तस्वीर- रिंकू कुमार गुप्ता