- मिस्र के शर्म-अल-शेख में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन कॉप27 का आयोजन 6 से 18 नवंबर के बीच होना है। इस प्रमुख सम्मेलन के पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिससे पता चलता है कि पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन से चौतरफा नुकसान हो रहा है।
- कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) के 27 वें संस्करण में जलवायु आपातकाल से निपटने के लिए पूंजी जुटाने से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता मिलने की उम्मीद है। हालांकि, अब तक दुनिया के देशों ने इस मामले में जो वादे किए हैं उन्हें पूरा नहीं किया है।
- यूक्रेन संघर्ष और उसके बाद के ऊर्जा संकट के कारण भू-राजनीतिक स्थिति बिगड़ रही है। इसके बीच ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले नुकसान के मुद्दे पर अमीर और भारत जैसे विकासशील देशों के बीच टकराव की आशंका है।
मध्य भारत में स्थित छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के घने जंगलों में एक कोयला खनन परियोजना का विरोध चल रहा है। इसका विरोध करने वाले गोंड आदिवासी नहीं जानते कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से दुनिया में पिछले 26 सालों से पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैसों को बढ़ने से रोकने के लिए चर्चाएं हो रही हैं।
वे इस बात से भी अनजान हैं कि वर्ष 2015 में पेरिस में, दुनिया भर के देशों ने पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने पर सहमति जताई थी। साथ ही इस समझौते के तहत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि, वे इस बात को निश्चित रूप से जानते हैं कि यदि इस क्षेत्र में कोयले की खदान आती है तो तबाही आएगी। इससे उनके पुराने जंगल, उनके रहने के स्थान और हजारों वर्षों से चली आ रही जीवनशैली खत्म हो जाएगी।
इस डर से सिर्फ गोंड ही नहीं सहमे हैं, बल्कि लाखों गरीब और हाशिए के लोग भी इसकी जद में आते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में लोग पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
इस समय जब दुनिया के नेता और राजनयिक, लाल सागर के तट पर स्थित मिस्र (इजिप्ट) के रिसॉर्ट शहर शर्म-अल-शेख में कॉप27 के लिए जुट रहे हैं। यहां जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए रणनीतियां और योजनाएं बनाने पर बातचीत होगी। चर्चा में शामिल कई दक्षिण एशियाई देश हाल ही में एक के बाद एक कई जलवायु आपदाओं से जूझे हैं और यहां रहने वाले लोगों की अरबों की फसल और संपत्ति का नुकसान हुआ है। इन देशों के प्रतिनिधियों के जेहन में इन आपदाओं की याद अभी भी ताजा होंगी।
इस साल उत्तरी भारत का बड़ा हिस्सा गर्मी से प्रभावित रहा। पड़ोसी देश पाकिस्तान में मौसम की गर्मी से ग्लेशियर पिघले और मूसलाधार बारिश की वजह से विनाशकारी बाढ़ आई। वहां की खड़ी फसलें तबाह हो गईं। बांग्लादेश में चक्रवात ‘सितरंग’ ने बड़ी संख्या में लोगों को बेघर किया है।
दुनिया के अन्य हिस्सों में स्थिति अलग नहीं है। जैसे अमेरिका में फ्लोरिडा में तूफान ‘इयान’, यूरोप में सूखा और लू, चीन में एक साथ बाढ़ और सूखा, कैरिबियन में तूफान ‘फियोना’, और दक्षिण अफ्रीका में गंभीर बाढ़ और अन्य मौसम के बीच आपदाओं की वजह से परेशानियां हो रही हैं।
सितंबर के अंत तक वैश्विक प्राकृतिक आपदा की घटनाओं से कम से कम $227 बिलियन का आर्थिक नुकसान हुआ है, जिसमें से केवल $99 बिलियन सार्वजनिक और निजी बीमा कंपनियों द्वारा कवर किया गया था। यह जानकारी बीमा ब्रोकर – एओएन (AON) की एक आपदा रिपोर्ट के अनुसार है। बीमा ब्रोकर ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण बीमित नुकसान लगातार तीसरे साल $100 अरब तक पहुंच जाएगा।
जलवायु कार्रवाई में स्पष्ट खाई
कॉप27 से पहले पिछले कुछ हफ्तों में जारी कई रिपोर्ट्स के अनुसार वैश्विक तापमान में वृद्धि रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 27 अक्टूबर, 2022 को जारी अपनी उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022 (एमिशन गैप रिपोर्ट) में कहा कि अब तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए कोई भरोसेमंद पहल नहीं हुई है। वार्षिक रिपोर्ट के 13वें संस्करण से पता चला है कि कॉप26 के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर जो वादे किए गए थे उससे 2030 तक तापमान में कोई खास अंतर नहीं आएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, और 1.5 डिग्री तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य से बहुत दूर है। इसके मुताबिक वर्तमान में जो नीतियां लागू हैं उससे सदी के अंत तक तापमान में 2.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि संभव है। मौजूदा वादों को लागू करने से इस सदी के अंत तक तापमान में 2.4-2.6 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण एजेंसी ने कहा कि केवल एक व्यवस्थित परिवर्तन ही 2030 तक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने के लिए आवश्यक भारी कटौती का रास्ता बना सकता है। अगर इस रास्ते पर चला जाए तो वर्तमान की तुलना में तापमान में अतिरिक्त 45% की कमी आएगी। पिछले साल नवंबर में ग्लासगो में आयोजित कॉप26 शिखर सम्मेलन में ऐसा करने का वादा करने के बावजूद केवल चंद देश इसके लिए आगे आए। इस मामले में अपनी योजनाओं को मजबूत करने वाले देशों में भारत का भी नाम शामिल है।
कई देश धीरे-धीरे वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की कोशिश में हैं। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन द्वारा 26 अक्टूबर को प्रकाशित एनडीसी सिंथेसिस रिपोर्ट 2022 के अनुसार ये कोशिशें 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमित करने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है। कॉप26 के बाद से केवल 24 नई जलवायु योजनाएं प्रस्तुत की गईं।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा, “हम अभी भी उत्सर्जन में कमी के पैमाने और गति के करीब नहीं हैं, जो हमें 1.5 डिग्री सेल्सियस की दुनिया की ओर ले जाने के लिए आवश्यक है।”
वह आगे कहते हैं, “इस लक्ष्य को जीवित रखने के लिए, राष्ट्रीय सरकारों को अपनी जलवायु कार्य योजनाओं को अभी मजबूत करने और अगले आठ वर्षों में उन्हें लागू करने की आवश्यकता है।”
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने 26 अक्टूबर को प्रकाशित अपने ताजा ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में कहा कि सुस्त प्रगति ने आश्चर्यजनक रूप से सभी तीन प्रमुख ग्रीन हाउस गैसों के वायुमंडलीय स्तर को नए रिकॉर्ड तोड़ दिया है। साल 2020 से 2021 तक कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि बड़ी थी। डब्ल्यूएमओ ने पाया कि कोविड महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में मंदी के बावजूद पिछले एक दशक में औसत वार्षिक विकास दर से अधिक है।
संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी के महासचिव पेटेरी तालस ने कहा, “ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और भविष्य में वैश्विक तापमान को और भी बढ़ने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई एक बड़ी चुनौती है। मीथेन के स्तर में रिकॉर्ड बढ़ोतरी सहित मुख्य हरित प्रभाव गैस (ग्रीन हाउस गैस) की मात्रा लगातार बढ़ रही है। इन सब बातों से पता चलता है कि हम गलत दिशा में जा रहे हैं।”
स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा
पच्चीस अक्टूबर 2022 को जारी स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट काउंटडाउन की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाएं हर महाद्वीप में तबाही मचा रही हैं। कोविड महामारी के प्रभावों से जूझ रही स्वास्थ्य सेवाओं पर पहले से ही दबाव बढ़ा हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले भारत में 1985-2005 की तुलना में 2012 और 2021 के बीच एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं ने प्रतिवर्ष औसतन 72 मिलियन अतिरिक्त हीटवेव दिवस का अनुभव किया। इस रिपोर्ट का कहना है कि 2000-04 से 2017-21 तक भारत में गर्मी से संबंधित मौतों में 55% की वृद्धि हुई है।
इसका खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। भारत में मार्च में भीषण गर्मी के कारण भारत में गेहूं की फसल खराब हुई थी। इसकी वजह से वर्षों बाद देश में उत्पादन में कमी देखी गई। लैंसेट काउंटडाउन के अनुसार, मक्का की उपज की वृद्धि इस दौरान 1981-2010 की तुलना में 2% कम हुई है। साथ ही, चावल और गेहूं में एक-एक प्रतिशत की कमी आई है।
इन वैश्विक रिपोर्ट्स के बीच एकमात्र उम्मीद की किरण ऊर्जा बदलाव या एनर्जी ट्रांजिशन पर थी। सत्ताईस अक्टूबर को अंतररार्ष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जारी वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2022 के अनुसार, जीवाश्म ईंधन को जलाने से कार्बन उत्सर्जन 2025 तक एक ‘ऐतिहासिक मोड़’ पर जाएगा। इससे स्वच्छ और अधिक सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ने की उम्मीद है।
यूक्रेन युद्ध ने इस साल दुनिया भर में एक ऊर्जा संकट को और गंभीर कर दिया। इससे वैश्विक तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि हुई, जिससे दुनिया भर में मुद्रास्फीति (इंफ्लेशन) में बढ़ोतरी हुई। इस वजह से पश्चिमी देशों में आर्थिक मंदी के लिए परिस्थितियां अनुकूल हो गईं।
आईईए ने अपनी वार्षिक ऊर्जा रिपोर्ट में कहा कि वैश्विक बाधाओं के बावजूद, कम कार्बन और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे सौर, पवन और परमाणु ऊर्जा में निवेश 2030 तक बढ़कर $2 ट्रिलियन प्रतिवर्ष हो जाएगा, जो वर्तमान में 50% से अधिक की वृद्धि है।
आईईए के कार्यकारी निदेशक फतेह बिरोल ने कहा, “आज की नीतिगत व्यवस्था के साथ भी ऊर्जा क्षेत्र देखते-देखते ही नाटकीय रूप से बदल रही है।” वह आगे कहते हैं कि दुनिया भर में सरकार की प्रतिक्रिया इसे एक स्वच्छ, अधिक किफायती और अधिक सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली बनाने जा रही है।
जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए कहां से आएगा पैसा?
कॉप27 से पहले बदली परिस्थितियों और संकटों को देखते हुए उम्मीद है कि सम्मेलन में पूंजी यानी वित्त की चर्चा भी हावी होगी। वर्ष 2009 में अमीर देशों ने विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए 2020-25 तक प्रतिवर्ष $100 बिलियन जुटाने का वादा किया था। कॉप26 में यह स्पष्ट था कि विकसित देश 2020 में उस लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहे। उन्हें इस मुद्दे पर इस बार भी कटघरे में खड़ा किया जाएगा।
एक अन्य विषय जिस पर भारत जैसे देशों से जोर देने की अपेक्षा की जाती है, वह है जलवायु परिवर्तन के कारण नुकसान और क्षति (लॉस एंड डैमेज)।
पिछले साल ग्लासगो शिखर सम्मेलन (कॉप26) में तेजी से बदलते मौसम का खामियाजा भुगत रहे विकासशील देशों ने इस बात पर काफी जोर दिया। इसके कारण पहली बार नुकसान और क्षति को प्रमुखता से दिखाया गया।
और पढ़ेंः जलवायु परिवर्तन को लेकर कॉप-26 में क्या हुआ हासिल?
उम्मीद है कि इस वर्ष इस विवादास्पद विषय में पर्याप्त प्रगति होगी। चैथम हाउस के पर्यावरण और समाज कार्यक्रम के उप निदेशक एंटनी फ्रोगट ने एक समाचार पोर्टल को बताया, “मिस्र एक अफ्रीकी कॉप की मेजबानी कर रहा है, इसलिए पूंजी (वित्त), नुकसान और क्षति पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। यह ठीक भी है। इन क्षेत्रों में प्रगति पर बात करने का यह सटीक समय है।
कॉप27 पर वार्ता में जलवायु अनुकूलन समाधान पर भी ध्यान केंद्रित हो सकता है। इसमें जलवायु जोखिमों के प्रबंधन और लचीलेपन के निर्माण के लिए रणनीतियां शामिल हैं। जलवायु लचीलापन को आसान भाषा में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए खुद को तैयार करना या सामर्थ्य बढ़ाना कह सकते हैं। कॉप27 प्रेसीडेंसी की अध्यक्षता इस वर्ष मिस्र कर रहा है। उसे उम्मीद है कि विश्व के देश लचीलापन बढ़ाने और सबसे कमजोर समुदायों की मदद करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। लचीलापन बढ़ाने की योजनाओं को अधिक से अधिक देशों को अपनाना होगा। यह देखा जाना बाकी है कि जिन मुद्दों के लिए पैसा जुटाना है उन पर चर्चा के बाद कोई बात बनेगी।
बैनर तस्वीरः फ्राइडे फॉर फ्यूचर नामक समूह ने कॉप 26 सम्मेलन स्थल के बाहर मार्च में हिस्सा लिया। तस्वीर- प्रियंका शंकर/मोंगाबे