- भारत में रामसर साइटों की संख्या बढ़कर 80 हो गई है जो 1.33 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती हैं।
- इस साल विश्व आर्द्रभूमि दिवस या वेटलैंड्स डे से पहले सूची में पांच नई रामसर साइट जुड़ गईं जो तमिलनाडु और कर्नाटक में हैं।
- जानकारों का कहना है कि नई रामसर साइट की घोषणा के बाद आर्द्रभूमियों के संरक्षण और उन्हें बचाने के लिए असरदार तरीके से काम किया जाना चाहिए।
इस साल दो फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस से पहले भारत के खाते में पांच और रामसर साइटें जुड़ गई हैं। अब इन साइटों की कुल संख्या 75 से बढ़कर 80 हो गई है। रामसर साइट आर्द्रभूमि होती हैं जिन्हें आर्द्रभूमि पर 1971 में हुए एक कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व का माना जाता है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 31 जनवरी को रामसर कन्वेंशन के महासचिव मुसोंडा मुंबा की मौजूदगी में नए रामसर स्थलों के नाम सार्वजनिक किए। मुसोंडा आर्द्रभूमि दिवस के लिए भारत आए थे। मंत्रालय ने बयान में कहा, “इन पांच आर्द्रभूमियों को अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों की सूची में शामिल करने के साथ, रामसर स्थलों के तहत आने वाला कुल क्षेत्रफल अब 1.33 मिलियन हेक्टेयर हो गया है।”
नए घोषित स्थलों में तमिलनाडु में कराईवेट्टी पक्षी अभयारण्य और लॉन्गवुड शोला रिजर्व वन शामिल हैं। वहीं, कर्नाटक से मागदी केरे संरक्षण रिजर्व, अंकसमुद्र पक्षी संरक्षण रिजर्व और अघनाशिनी एस्चुएरी को इसमें शामिल किया गया है। रामसर स्थल घोषित होने से इन पारिस्थितिकी तंत्रों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। इससे अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन तरीकों के जरिए इन जगहों को संरक्षित किया जा सकेगा और अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण की संभावना भी बढ़ेगी।
वेटलैंड्स इंटरनेशनल साउथ एशिया (डब्ल्यूआईएसए) के निदेशक रितेश कुमार ने कहा, “जब सरकार किसी जगह को रामसर साइट घोषित करती है, तो वह इसका कुशलता से इस्तेमाल करने और इसे संरक्षित करने की प्रतिबद्धता भी जताती है। भारत की लगभग आठ प्रतिशत आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल घोषित किया गया है। इससे पता चलता है कि इस मॉडल को अन्य साइटों पर दोहराने की संभावना है और संरक्षण के इस तरीके को दूसरी जगहों पर लागू किया जा सकता है।”
पक्षियों का घर
रामसर कन्वेंशन ने अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों की पहचान के लिए नौ मानदंड तय किए हैं। इनमें रिप्रजेंटेटिव, दुर्लभ या अद्वितीय आर्द्रभूमि प्रकार और जैविक विविधता के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय महत्व की जगहें शामिल हैं।
सरकार की वेबसाइट के अनुसार तमिलनाडु में कराइवेट्टी पक्षी अभयारण्य 453 हेक्टेयर में फैला हुआ है और “तमिलनाडु राज्य में प्रवासी जल पक्षियों के लिए सबसे अहम ताजे पानी के भोजन क्षेत्रों में से एक है।” यह अभयारण्य पक्षियों की 188 से ज्यादा प्रजातियों की मेजबानी करता है, जिनमें से 82 जलीय पक्षी हैं। जलीय पक्षियों के अलावा, अभयारण्य चित्तीदार बाज और टैनी ईगल जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए भी घोंसला बनाने की अहम जगह है।
कीस्टोन फाउंडेशन के निदेशक प्रतीम रॉय ने कहा कि नीलगिरी में लॉन्गवुड शोला वन “शहरी शोला वन के आख़िरी अवशेषों में से एक है, जहां चाय की खेती और दूसरे कामों के लिए भूमि के इस्तेमाल के चलते बाकी सब कुछ खत्म हो गया है।” कीस्टोन फाउंडेशन पर्यावरण के लिए काम करने वाला गैर सरकारी संगठन है। शोला ज्यादा ऊंचाई वाली आर्द्रभूमि है जो नीचे की ओर 18 गांवों के लिए पानी के स्रोत के रूप में काम करती है और इसे एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (आईबीए) भी माना जाता है। यहां पक्षियों की कई स्थानीय प्रजातियां निवास करती हैं। लॉन्गवुड शोला को आरक्षित वन के रूप में मान्यता मिली हुई है और इसे संरक्षित किया गया है। रॉय ने कहा, “रामसर साइट घोषित होने से इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। इससे इस जगह को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी और वित्तपोषण के लिए ज्यादा अवसर बनेंगे। यह एक बहुत ही अहम मान्यता है।”
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तमिलनाडु में दो नए रामसर स्थलों के जुड़ने से यह देश में सबसे ज्यादा 16 रामसर स्थलों वाला राज्य बन गया है। “बीस साल पहले हमारे पास सिर्फ एक रामसर स्थल था और अब हमने 15 और जोड़ दिए हैं। यह हमारी प्रतिबद्धता को दिखाता है। तमिलनाडु के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव सुप्रिया साहू ने कहा कि हमारे पास आर्द्रभूमि को फिर से बहाल करने के खास उद्देश्य के साथ एक समर्पित वेटलैंड मिशन है और हम आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन और साइटों पर सुधार के लिए काम कर रहे हैं।
कर्नाटक में नए घोषित स्थलों में से अघानाशिनी एस्टुसरी सबसे बड़ा है जो 4801 हेक्टेयर में फैला है। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिक सालों से एस्टुसरी को रामसर साइट बनाने पर जोर दे रहे थे। अघनाशिनी नदी के किनारे स्थित मैंग्रोव “मछलियों और झींगों के लिए नर्सरी के रूप में काम करते हैं और इन्हें महत्वपूर्ण मछली प्रजनन और अंडे देने वाला क्षेत्र माना जाता है। शोधकर्ताओं महाबलेश्वर हेगड़े और अमलेंदु ज्योतिषी ने अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के लिए एक पोस्ट में लिखा, मछली की कई प्रजातियां अंडे देने के लिए पोषक तत्वों से भरपूर मैंग्रोव क्षेत्र में जाती हैं, ताकि बच्चे समुद्र में जाने से पहले प्रचुर मात्रा में भोजन के बीच बड़े हो सकें।
दो अन्य स्थल, मागदी केरे और अंकसमुद्र रिजर्व दोनों कृत्रिम टैंक हैं। पहला क्षेत्र दक्षिणी भारत में बार-हेडेड हंस के लिए सबसे बड़े शीतकालीन आश्रय स्थलों में से एक है और दूसरा क्षेत्र पौधों की 210 प्रजातियों, स्तनधारियों की 8 प्रजातियों, सरीसृपों की 25 प्रजातियों, पक्षियों की 240 प्रजातियों और मछलियों की 41 प्रजातियों के साथ ही मेंढ़क, कीड़ों और तितलियों का भी घर है।
योजनाओं को असरदार तरीके से लागू करना
भारत ने साल 2022 में अपनी रामसर साइटों की सूची में 11 आर्द्रभूमियां जोड़ीं थी। तब कुल स्थलों की संख्या बढ़कर 75 पर पहुंच गई थी। उस साल आज़ादी के 75 साल पूरे हुए थे। नए स्थलों को जोड़ने का काम विश्व आर्द्रभूमि दिवस समारोह से पहले हुआ है। डब्ल्यूआईएसए के कुमार ने कहा कि घोषणाओं का स्वागत है। रामसर साइटों के लिए प्रबंधन योजनाओं को असरदार तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय मान्यता इन आर्द्रभूमियों को ख़राब होने, प्रदूषित होने या अतिक्रमण होने से नहीं रोक पाई है। साहू ने कहा, “आर्द्रभूमियों का मालिकाना हक किसी एक एजेंसी के पास नहीं होता है और वे हमेशा कानूनी सुरक्षा के हकदार नहीं होते हैं, जिससे उनका संरक्षण करना चुनौती बन जाता है।” यह धारणा भी बनी हुई है कि जंगलों की तरह आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी के लिए उतनी अहम नहीं है। इन समस्याओं के समाधान के लिए तमिलनाडु का वेटलैंड मिशन बनाया गया था।
मीडिया को दिए साक्षात्कार में मंत्री यादव ने कहा कि आर्द्रभूमि का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने वाली राज्य सरकारों और स्थानीय स्तर के अधिकारियों को सशक्त बनाना, एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। पिछले साल के बजट में अमृत धरोहर योजना शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य आर्द्रभूमि प्रबंधन और संरक्षण के माध्यम से आजीविका को बढ़ावा देना है।
कुमार ने कहा, “हमें यह पक्का करने के लिए अपनी कोशिशों को लागू करने की जरूरत है कि प्रबंधन योजनाएं तय मानक की हों और इन्हें लागू किया जाए। सरकारों से सब कुछ करने की उम्मीद करना बहुत ज्याद है, नागरिकों के बीच भी जिम्मेदारी का भाव होना चाहिए। हम देख रहे हैं कि आर्द्रभूमियों से जुड़े सहयोग और संरक्षण के लिए नई साझेदारियों और प्रोत्साहनों के साथ धीरे-धीरे बदलाव हो रहा है।”
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बैनर तस्वीर: कर्नाटक में अघनाशिनी नदी। अघनाशिनी नदी के किनारे स्थित मैंग्रोव मछलियों और झींगों के लिए महत्वपूर्ण नर्सरी के रूप में काम करते हैं और उनके प्रजनन और अंडे देने की प्रक्रिया में जरूरी भूमिका निभाते हैं। तस्वीर – हेगड़ेसुदर्शन/विकिमीडिया कॉमन्स।