- दूसरे कारणों की तुलना में, करंट से हाथियों की मौत के आंकड़े लगभग दोगुने हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार 2009 से दिसंबर 2020 के दौरान देश में 741 हाथी करंट लगने से मारे गए हैं।
- करंट से हाथियों की मौत के अधिकांश मामले बताते हैं कि या तो जंगल से हो कर गुजरने वाले बिजली के खम्बों से तार खींचकर हाथियों को मारा गया या फिर बिजली के तार इतने नीचे थे कि उनकी चपेट में आ कर हाथी की मौत हो गई।
- इस समस्या को लेकर छत्तीसगढ़ में वन विभाग और बिजली विभाग आमने सामने हैं। कहीं वन विभाग द्वारा बिजली कर्मचारियों को नोटिस जारी किया गया है वहीं बिजली विभाग द्वारा हाथी प्रभावित इलाकों में बिजली की आपूर्ति बंद की जा रही है।
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर ज़िले में 10 मार्च को लगभग दस साल के एक नर हाथी को करंट लगा कर मार डाला गया। वाड्रफनगर से लगे हुए फोकली महुआ वनक्षेत्र में जब गांव के लोग नदी किनारे अपनी फसल देखने पहुंचे तब उन्होंने हाथी का शव देखा और वन विभाग को सूचित किया। सप्ताह भर बाद इस मामले में एक ग्रामीण जय सिंह को गिरफ़्तार किया गया। वन विभाग का दावा है कि फोकली गांव के जय सिंह ने जानवर के शिकार के लिए, वहां से गुजरने वाले 11 हज़ार वोल्ट के तार से हुकिंग कर के जीआई तार का जाल ज़मीन पर बिछा दिया था, जिसकी चपेट में आ कर हाथी की मौत हो गई।
फरवरी में छत्तीसगढ़ से दो हाथी, सीमावर्ती अनूपपुर के इलाके में पहुंचे और उनमें से एक बिजली के करंट से मारा गया। इसी तरह जनवरी के महीने में राज्य के सूरजपुर में पुलिस ने सात लोगों को एक हथिनी के शिकार के मामले में गिरफ़्तार किया गया था। इन पर आरोप है कि करंट लगा कर इन लोगों ने एक हथिनी को मार डाला और फिर उसके शव के कई टुकड़े करके उसे ज़मीन में दफ़ना दिया। दिसंबर के महीने में तो जशपुर ज़िले में ही करंट लगने से महीने भर के भीतर तीन हाथी मारे गए। इसी तरह कोरबा में भी नीचे झूलते हुए बिजली के तार की चपेट में आकर एक हाथी मारा गया।
छत्तीसगढ़ में करंट से हाथियों की मौत कोई नई बात नहीं है। अकेले सरगुजा के इलाके में पिछले तीन सालों में पचास हाथी मारे जा चुके हैं। इनमें से अधिकांश की मौत करंट या फिर ज़हर से हुई है।
करंट से हाथियों की मौत के मामले में देश के दूसरे राज्यों की स्थिति भी भयावह है।
करंट से हाथियों की मौत के गहराते आंकड़े
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2009 से दिसंबर 2020 तक, देश के अलग-अलग राज्यों में रेल दुर्घटनाओं में 186 हाथी मारे गए। इसी तरह इस दौरान 169 हाथियों को शिकार के लिए मारा गया। इन राज्यों में 64 हाथियों को ज़हर देकर मार डाला गया।
लेकिन इन सारे आंकड़ों की तुलना में, करंट से हाथियों की मौत के आंकड़े लगभग दोगुने हैं। वन विभाग के अनुसार इस दौरान देश में 741 हाथी करंट लगने से मारे गए हैं। हालांकि इनमें से भी कई राज्यों ने, कुछ साल के आंकड़े उपलब्ध ही नहीं कराए हैं।
उदाहरण के लिए करंट से मारे जाने वाले हाथियों के आंकड़ों में छत्तीसगढ़ में 2013-14 में मारे गए चार हाथियों की मौत के आंकड़े इनमें शामिल ही नहीं हैं। इसी तरह 2019-20 में तीन हाथियों के बजाय केवल दो हाथियों की मौत का उल्लेख सरकारी रिकार्ड में है।
संकट ये है कि करंट से हाथियों की मौत के ये आंकड़े पिछले कुछ सालों में लगातार गहराते जा रहे हैं। लोकसभा में पिछले साल 11 दिसंबर को पूछे गए एक सवाल के जवाब से पता चलता है कि 2019-20 से 2021-22 तक के तीन सालों में रेल दुर्घटना में 41 हाथी मारे गए, वहीं 23 हाथियों का शिकार किया गया। कुल आठ हाथियों की मौत ज़हर से हो गई। यानी 72 हाथी अलग-अलग कारणों से मारे गए।
लेकिन इसी दौरान यानी इन तीन सालों में करंट लगने से 198 हाथियों की मौत हो गई। आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि हर साल हाथियों की करंट से होने वाली मौत की संख्या बढ़ती जा रही है। तीन सालों में करंट से 198 हाथियों के मुकाबले अकेले 2022-23 यानी एक साल में करंट से 100 हाथी मारे गए।
ठंडे बस्ते में सुझाव
करंट से हाथियों की मौत के अधिकांश मामले बताते हैं कि या तो जंगल से हो कर गुजरने वाले बिजली के खम्बों से तार खींचकर हाथियों को मारा गया या फिर बिजली के तार इतने नीचे थे कि उसकी चपेट में आ कर हाथी की मौत हो गई। कई इलाकों में तो हाथियों की मौत के बाद बिजली विभाग के अधिकारियों के ख़िलाफ़ मामला भी दर्ज किया गया। सरकारी दावा किया गया कि बिजली के तार को लेकर उपाय किये जाएंगे लेकिन यह भी महज दावा रह गया।
करंट से हाथियों की मौत के मामले में बेपरवाही का आलम ये है कि 20 मई 2015 को हाथी अभयारण्य और कॉरिडोर को मजबूती देने के लिए गठित कार्यदल की पहली बैठक में करंट से हाथियों की मौत को लेकर चिंता जताते हुए, 22 मई को देश के सभी राज्यों के वन विभाग को भारतीय विद्युत अधिनियम 1956 की धारा 77 को कड़ाई से लागू करने के लिए एक प्रपत्र भेजा गया। विद्युत अधिनियम की इस धारा में विस्तार से इस बात का वर्णन है कि कितने वोल्ट के करंट की स्थिति में, बिजली के तारों की ऊंचाई कितनी होगी। इस क़ानून के अनुसार सबसे निचले कंडक्टर की जमीन के ऊपर निकासी के मामले में, सड़क के पार खड़ी की गई सर्विस लाइनों सहित ओवरहेड लाइन का कोई भी कंडक्टर, उसके किसी भी हिस्से में, निम्न और मध्यम वोल्टेज लाइनों के लिए 5.8 मीटर और उच्च वोल्टेज लाइनों के लिए 6.1 मीटर से कम ऊंचाई पर नहीं होगा। उसी साल 18 दिसंबर को एक ख़बर का हवाला देते हुए वन महानिदेशक ने विद्युत विभाग को मई की चिट्ठी का हवाला देते हुए उस पर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।
इस दौरान वन विभाग की बैठकों का सिलसिला जारी रहा। 7 सितंबर 2020 को वन महानिदेशक ने एक बार फिर विद्युत विभाग को पत्र लिख कर विस्तार से इस समस्या को निपटाने के लिए सुझाव दिए। 6 जुलाई को वन महानिरीक्षक ने छत्तीसगढ़ के वन विभाग को और 31 जुलाई 2020 को तत्कालीन वन एवं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को, दो महीने में आठ हाथियों की करंट और अन्य कारणों से मौत को लेकर, वन विभाग और बिजली विभाग समेत दूसरे संबंधित विभागों के बीच समन्वय बनाने के लिए मंडल, ज़िला और राज्य स्तर पर कमेटियां गठित करने का सुझाव दिया था। लेकिन राज्य सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठी रही।
23 अगस्त 2021 को वन और पर्यावरण मंत्रालय के इंस्पेक्टर जनरल ने फिर से छत्तीसगढ़ के वन विभाग को चिट्ठी लिख कर, अब तक 40 हाथियों के करंट से मौत और ताज़ा घटनाओं का हवाला देते हुए राज्य और ज़िला स्तर पर कमेटी गठित करने के निर्देश की याद दिलाई। इसमें पुराने दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए बिजली के खंबों में लटकने वाले तारों को आवश्यक ऊंचाई तक रखने, बिजली के खंबों को कांटेदार तार से घेरने, खंबों को कांक्रीट से मज़बूत करने, जंगल के इलाकों से गुजरने वाले विद्युत तारों का समय-समय पर वन विभाग और विद्युत विभाग द्वारा संयुक्त रुप से जायजा लेने, किसी स्वतंत्र संस्था द्वारा भारतीय विद्युत नियमों के पालन के संदर्भ में प्रतिवर्ष अनिवार्य ऑडिट करवाने, 11 केवी के नंगे तारों की जगह इंसुलेटेड केबल यानी विद्युतरोधी तार का उपयोग करने जैसे सुझाव दिए गए थे। लेकिन इसमें से अधिकांश सुझाव अनुत्तरित रह गए।
हालांकि, वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि इन सबके बीच हाथियों की करंट से मौत को लेकर सर्वाधिक महत्वपूर्ण फ़ैसले वन्यजीव बोर्ड की 54वीं बैठक में लिए गए। 12 अगस्त 2022 को प्रोजेक्ट एलिफेंट की स्टेयरिंग कमेटी की 17वीं बैठक में बिजली के करंट से हाथियों की मौत पर व्यापक चर्चा हुई और 16 सितंबर 2022 को देश के सभी राज्यों के वन विभाग को इस आशय की चिट्ठी लिख कर वन्यजीव बोर्ड की 54वीं बैठक में लिए गए निर्णयों की याद दिलाई गई, जिसमें संरक्षित वन क्षेत्र में पारेषण लाइनों और केबल को तत्काल सुधारने का निर्देश दिया गया था। निर्णय में कहा गया था कि बिजली विभाग और वन विभाग के अधिकारियों द्वारा संरक्षित क्षेत्रों से गुजरने वाली या संरक्षित क्षेत्रों (जहाँ जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता है) के आसपास से गुजरने वाली प्रत्येक पारेषण/वितरण लाइन का संयुक्त निरीक्षण नियमित रूप से किया जाएगा। इसके अलावा वन क्षेत्रों में बिजली से होने वाली पशुओं की मृत्यु को रोकने के लिए वितरण कंपनियां आम तौर पर एरियल बंच्ड केबल या भूमिगत केबल का उपयोग करेंगी। साथ ही साथ, मौजूदा ट्रांसमिशन लाइनों को विद्युत वितरण कंपनियाँ और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, द्वारा प्राथमिकता के आधार पर बदला जाना चाहिए और उसकी जगह इंसुलेटेड केबल या भूमिगत केबल की उपयोग किया जाना चाहिए।
करंट से हाथियों की मौत को लेकर 2021 में वन्यजीव विशेषज्ञ प्रेरणा सिंह बिंद्रा द्वारा दायर याचिका में भी केंद्र और राज्य सरकारों ने ऐसे ही सुझावों पर अमल करने का भरोसा अदालत को दिया लेकिन हकीकत तो यही है कि कम से कम छत्तीसगढ़ में ये सारे सुझाव अभी भी फाइलों से बाहर नहीं आ सके हैं।
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इस मामले की सह याचिकाकर्ता और वन्यजीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “छत्तीसगढ़ में हाथियों की जान बचाने को लेकर की जाने वाली तमाम कोशिशें नाकाफ़ी हैं। करंट से हाथियों की मौत के मामले में राज्य सरकार ठोस कदम उठाने से बच रही है और इसके लिए पैसों की कमी का हवाला दिया जा रहा है।”
मीतू गुप्ता का कहना है कि राज्य सरकार अगर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की राय पर ही अमल कर लेती तो हाथियों की करंट से होने वाली मौत को एक हद तक टाला जा सकता था।
वन और बिजली विभाग की तनातनी
असल में छत्तीसगढ़ में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से हाथियों की करंट से मौत के मामले में वन विभाग और विद्युत विभाग की तनातनी जारी है। यहां तक कि हाईकोर्ट के फ़ैसले को भी इन दोनों विभागों ने हाशिये पर डाल दिया है और करंट से हाथी मारे जा रहे हैं।
साल 2018 में इस संबंध में रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका में करंट से हाथियों की मौत के मामले में कई ज़रुरी तथ्य पेश किए गए थे। याचिका में उदाहरण देते हुए कहा गया था कि धरमजयगढ़ वन मंडल के नारंगी वन क्षेत्र में अत्यंत नीचे होकर गुजर रही 11000 वोल्टेज हाईटेंशन लाइन को ठीक करने के लिये वन विभाग 2012 से छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी को पत्र लिख रहा है, लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। इसी तरह वन विभाग 2012 से लगातार सरगुजा क्षेत्र में बिजली लाइन को ऊंचा करने और केबलिंग करने की मांग कर रहा है लेकिन उस पर भी बिजली विभाग मौन है।
मार्च 2019 में हाईकोर्ट के निर्देश के बाद छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण विभाग ने हाथियों को मौत से बचाने के लिए 810 किलोमीटर 33 केवी और 3761 किलोमीटर 11 केवी लाइन की ऊंचाई बढ़ा कर कवर्ड कंडक्टर लगाने व 3976 किलोमीटर निम्न दाब लाइन में एरियल बंच्ड केबल लगाने के लिए वन विभाग से 1674 करोड़ रुपये की मांग की। वन विभाग ने इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग को चिट्ठी लिख कर इस राशि की मांग की तो केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने साफ तौर पर कहा कि यह काम विद्युत वितरण कंपनी का है और इसे उन्हें अपने बजट से पूरा करना है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला भी दिया गया। यहां तक कि राज्य के वन विभाग को कहा गया कि अगर विद्युत विभाग इसे पूरा करने में असफल रहता है तो दोषियों के ख़िलाफ़ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, भारतीय विद्युत अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई की जाए। जून 2019 में राज्य में वन्यप्राणी के प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने अधीनस्थों को आदेश जारी किया कि बिजली के करंट से अगर किसी वन्यजीव की मौत होती है तो ज़िले में बिजली विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध मामला दर्ज कर कोर्ट में चालान प्रस्तुत करें।
ऐसे कुछ मामलों में वन विभाग ने कार्रवाई भी की। विद्युत विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कहीं नोटिस जारी किया गया तो कहीं उनके ख़िलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। लेकिन इसके बाद छत्तीसगढ़ विद्युत विभाग ने मोर्चा खोल दिया और वन विभाग को दायरे में रह कर काम करने की चेतावनी दी। हाथी प्रभावित इलाकों में स्थिति सुधारने के बजाय विद्युत विभाग ने बिजली आपूर्ति ही बंद करना शुरु कर दिया। यह स्थिति अब भी जारी है।
हालांकि इन सारी कवायदों के बीच करंट से हाथियों को बचाने के लिए दिए गए अधिकांश दिशा-निर्देश धरे रह गये। पिछले महीने की 14 तारीख़ को वन विभाग ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में इस बात का एक शपथपत्र ज़रुर दिया है कि भविष्य में वन क्षेत्र के भीतर नए बिजली के तार खंबों के बजाय, अब अंडरग्राउंड केबल बिछाए जाएंगे।
राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप कहते हैं, “हमारी सरकार मानव-हाथी द्वंद्व को लेकर चिंतित है। हमारी कोशिश है कि हाथी-मानव द्वंद्व पर किसी भी तरह से काबू पाया जाए। मनुष्यों की भी जान बचे और हाथी भी सुरक्षित रहें। केंद्र सरकार से जो भी निर्देश मिले हैं, उसका पालन सुनिश्चित किया जाएगा।”
बैनर तस्वीरः बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान की बाड़ के पीछे घूमता हुआ भारतीय हाथियों का एक झुंड। प्रतीकात्मक तस्वीर– सरित शर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स