- नर्मदा के बैकवाटर लेवल में बदलाव से मध्य प्रदेश में डूब प्रभावित गांवों की संख्या घटकर 176 और परिवारों की संख्या 21 हजार 808 हो गई है।
- धार, बड़वानी, खरगौन व अलिराजपुर जिलों के हजारों परिवारों को अब पुनर्वास मुआवजा का बकाया हिस्सा नहीं मिल पा रहा है।
- नर्मदा नदी में पिछले साल आई बाढ़ में जलभराव का स्तर सरकारी जलस्तर से कहीं अधिक जा पहुंचा। ऐसे में कई लोगों को अपने घर, खेत और मवेशी गवाने पड़े।
मध्य प्रदेश के धार जिले के एकलवाड़ा गाँव के 73 वर्षीय जगदीश सिंह तोमर को पिछले साल सितंबर में नर्मदा नदी में आई बाढ़ के बाद अपना पुश्तैनी मकान छोड़ना पड़ा। बाढ़ में उनका कई क्विंटल काबुली चना और सोयाबीन खराब हो गया। उनका बड़ा सा मकान अब खंडहर नजर आता है, जिसमें कोई नहीं रहता है। घर के कुछ हिस्सों से महीनों बाद भी जलभराव से सड़ चुके अनाज की बदबू आती है।
जगदीश की तरह ही उनके गाँव के मनोज तोमर का घर भी इस बाढ़ से प्रभावित हुआ, जिसके बाद वे करीब चार किलोमीटर दूर एकलवाड़ा पुनर्वास स्थल– 2 में अपने नए मकान में चले आए। इस ही क्षेत्र में जगदीश को भी जमीन मिली है लेकिन उनका मकान अभी तक नहीं बना है। ऐसे में जगदीश ने मनोज के घर में शरण ली है।
“मेरे पूर्वजों के समय में भी ऐसी बाढ़ नहीं आयी थी, मेरे तीन भाई दूसरी जगह रह रहे हैं और मैं यहां मनोज के मकान में रह रहा हूँ, क्योंकि मेरा मकान अभी बना नहीं है,” जगदीश ने बताया।
यह गांव नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध की अपस्ट्रीम में होने की वजह से उसके बैकवाटर के क्षेत्र में आता है।
नर्मदा वॉटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल अवार्ड ने सरदार सरोवर बांध का अधिकतम जलस्तर 141.21 मीटर पर तय किया था, जबकि बैकवाटर लेवल का संशोधन 137.21 अधिकतम जलस्तर मान कर किया गया।
मध्यप्रदेश शासन की इकाई नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट में भी बैकवाटर लेवल में बदलाव का जिक्र है, जिससे डूब से प्रभावित गांवों व परिवारों की संख्या बदली है। इस बदलाव से मध्यप्रदेश में डूब प्रभावित गांवों की संख्या घटकर 176 और परिवारों की संख्या 21 हजार 808 हो गई है। इसके पहले मध्यप्रदेश में डूब प्रभावित गांवों की संख्या 193 और परिवारों की संख्या 37,754 थी।
सरकारी लेवल में बदलाव, जल स्तर में नहीं
नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के अनुसार, 1984 में केंद्रीय जल आयोग ने नर्मदा के डूब क्षेत्र का आकलन व बैकवाटर लेवल का निर्धारण किया था, लेकिन 2007 में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) ने नई कमेटी बनाकर, जमीनी सर्वे किए बिना 2008 में बैकवाटर लेवल बदल दिया। जिससे धार, बड़वानी, खरगौन व अलिराजपुर जिलों के 193 गांव के 15,946 परिवार डूब से बाहर हो गए। ऐसे परिवारों को अब पुनर्वास मुआवजा का बकाया हिस्सा नहीं मिल पा रहा है। जैसा कि एकलवाड़ा के एक अन्य ग्रामीण देवी सिंह तोमर ने बताया, “2002 में उनके मकान का अधिग्रहण किया गया, 2004-05 में उन्हें प्लॉट आवंटित कर दिया गया, लेकिन 2008 में डूब क्षेत्र से बाहर कर दिये जाने के बाद मकान बनाने के लिए पैसे नहीं दिये जा रहे हैं और यह कहा जा रहा है कि आप डूब से बाहर हैं।”
जगदीश तोमर कहते हैं, “2009 से पहले हमारा गांव डूब क्षेत्र में था, लेकिन उसके बाद उसे बाहर कर दिया गया।” पिछली बाढ़ को लेकर वे नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण व अन्य सरकारी एजेंसियों पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि यह डैम के कुप्रबंधन को प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं।
जगदीश सिंह तोमर के घर से कुछ ऊंचाई पर 63 वर्षीय देवी सिंह तोमर का मकान है जो बाढ़ में क्षतिग्रस्त हुआ। वे घर में चढे हुए पानी के निशान को दिखाते हुए कहते हैं, “16 सितंबर को सुबह से नर्मदा में पानी बढ़ रहा था, शाम छह बजे तक पानी ने 139 मीटर और फिर नौ बजेतक 142 मीटर के लेवल को छू लिया।”
देवी सिंह कहते हैं, “वर्ष 2007-08 में हमारे गांव के बैकवाटर लेवल को बदल दिया, इससे मेरा घर जो पहले डूब क्षेत्र में था, वह उससे बाहर हो गया। हमने जब अधिकारियों से इस बारे में पूछा तो बताया गया कि बांध का मॉडल बदल दिया गया है, इससे एकलवाड़ा गांव में पानी 139 मीटर के लेवल से ऊपर अब नहीं जाएगा।”
मोंगाबे हिंदी को मिले दस्तावेज में यह उल्लेख है कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के द्वारा 2008 में किये गये आकलन में 193 अलग–अलग गांवों में बैकवाटर लेवल में 1.93 मीटर से 6.68 मीटर तक बदलाव किया गया है। उदाहरण के लिए धार जिले की धार तहसील के लासन गांव का पुराना बैकवाटर लेवल 151.69 मीटर था, जिसे बाद में 6.68 मीटर कम कर 145.01 मीटर कर दिया गया। धार जिले के मनावर तहसील के एकलवाड़ा गांव में लेवल को 143.04 मीटर से कम करके 139.52 मीटर कर दिया गया। लेकिन, 16 सितंबर 2023 को यह उस सीमा से पार पहुंच गया।
सरदार सरोवर डैम के इस पुननिर्धारित बैकवाटर लेवल को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा गठित देवेंद्र पांडेय कमेटी ने भी अवैज्ञानिक व खामियों से युक्त बताया। इस रिपोर्ट की कॉपी मोंगाबे हिंदी के पास उपलब्ध है। कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) द्वारा पुर्ननिर्धारित बैकवाटर लेवल की गणना को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह नर्मदा वॉटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल अवार्ड का उल्लंघन है। साथ ही अवार्ड के अनुसार बैकवाटर लेवल की गणना केंद्रीय जल आयोग द्वारा की जानी चाहिए न कि एनसीए की एक उपसमिति द्वारा।
गेट खोलने में देरी
पिछले साल 16-17 सितंबर को नर्मदा में आयी बाढ़ से पहले नर्मदा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में कई जगहों पर भारी बारिश (100 मिमी से अधिक) दर्ज की गई।
केंद्रीय जल आयोग की रिजरवायर के पानी के संग्रहण को लेकर जारी होने वाली साप्ताहिक रिपोर्ट के अनुसार, 14 सितंबर 2023 को समाप्त हुए सप्ताह में सरदार सरोवर का पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) 138.68 की तुलना में 134.83 था और यह 79 प्रतिशत भरा हुआ था, जबकि इंदिरा सागर डैम का एफआरएल 262.13 मीटर की तुलना में 261.51 मीटर था और यह 90 प्रतिशत भरा हुआ था।
इस आपदा को समझाते हुए देवी सिंह तोमर कहते हैं, “15 सितंबर 2023 की मध्यरात्रि को ओंकारेश्वर डैम गेट खोला गया इसके बाद 16 सितंबर को यहां का पानी बढ़ने लगा, हम लोगों ने नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण वालों को गेट खोलने को कहा, लेकिन 17 सितंबर को गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन मनाने के बाद ही सरदार सरोवर का गेट खोला गया।”
नर्मदा बचाओ आंदोलन का भी यह आरोप है कि 17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री के समारोह के बाद ही सरदार सरोवर के छह मीटर गेट खोले गए। एनबीए की यह मांग है कि डूब से बचने के लिए सरदार सरोवर के जलस्तर को 122 मीटर के स्तर पर रखा जाए।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स एंड पिपुल (एसएनडीआरपी) के संयोजक व डैम प्रबंधन व नदियों के जानकार हिमांशु ठक्कर कहते हैं, “इस संबंध में किसी की जिम्मेवारी तय नहीं है और न ही कोई रेगुलेशन है। जब बाढ़ आने से पहले काफी मात्रा में बारिश हो चुकी थी तो उस अनुसार एक्शन लेना चाहिए था। अगर सही समय पर पानी छोड़ने का निर्णय लिया जाता तो डाउनस्ट्रीम को भी बाढ़ से बचाया जा सकता था। 2019 में भी इसी वजह से नर्मदा में बाढ़ आयी थी और फिर 2023 में भी। ऐसी आपदा से बचा जा सकता था।”
बांध के मानकों को बदलने की ज़रुरत
ठक्कर ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “जब बांध बनाया जाता है तो कहा जाता है कि इसके जरिये बाढ़ का प्रबंधन करेंगे, लेकिन यह सिद्धांत तभी व्यावहारिक रूप में सफल हो सकता है जब इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर उसका प्रबंधन किया जाए।”
ठक्कर का मानना है कि डैम को पूरा तभी भर सकते हैं जब मानसून एकाध हफ्ता ही बाकी हो। वे कहते हैं कि सितंबर अंत को मानसून का अंत मान लिया जाता है, लेकिन बीते सालों में यह देखा गया है कि मानसून के पैटर्न में बदलाव आया है, अक्टूबर मध्य और यहां तक कि कई बार उसके बाद भी बारिश होती है। इसलिए बांधों के जल प्रबंधन में इस बदलाव को ध्यान में रखना होगा।
वे बताते हैं कि हर डैम का एक रूल कर्व होता है जो यह तय करता है कि डैम में किस तारीख को कितना पानी भरा जाएगा, तीन से पांच साल में रूल कर्व का रिव्यू किया जाना चाहिए और इसके अनुसार डैम के इनफ्लो पैटर्न को बदलना चाहिए। वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि हर साल रिवर बेसिन का इंटीग्रेटेड रूल कर्व भी होना चाहिए, क्योंकि डैम में गाद जमा हो रही है, बेसिन में नए डैम बन रहे हैं; लेकिन वर्तमान में रूल कर्व को किसी डैम द्वारा फॉलो नहीं किया जा रहा है और उस हिसाब से डैम का संचालन नहीं हो रहा है।
बैकवाटर लेवल के निर्धारण के सवाल पर ठक्कर कहते हैं, “हमारे देश में इंडिपेंडेंट टेक्निकल एक्सपर्ट कम हैं और उनके तर्क को अदालतें भी नहीं मानती हैं और हमारे यहां के ज्यादातर एकेडमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट या तो सीधे तौर पर सरकार से फंडेंड हैं या किसी तरह उनके प्रभाव के दायरे में हैं। मुझे लगता है कि इस वजह से बैकवाटर लेवल में बदलाव पर उठाये गये सवालों पर कुछ हो नहीं सका।”
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नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में डैमों के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा, “2017 में सरादार सरोवर डैम पूरा होने के बाद 2019 में पहली डूब (बाढ़) आयी थी, नर्मदा पर पहले से 30 बड़े व 135 मंझोले बांध हैं, मध्यप्रदेश में छह और बड़े बांध बनाये जा रहे हैं। जबकि इन डैमों को बनाने का कोई औचित्य नहीं है।” वे इस संबंध में पश्चिमी देशों में बांधों के डिकमिशनिंग का उदाहरण भी देती हैं। यह भी ध्यान रहे कि एक रिसर्च में नर्मदा नदी को भारत के सबसे अधिक बाढ प्रवण नदियों में शुमार किया गया है।
पुनर्वास पर सरकार की रिपोर्ट के दावे और कड़वी जमीनी हकीकत
नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) की सालान रिपोर्ट 2020-21 (पेज -59) के अनुसार, सरदार सरोवर परियोजना से मध्यप्रदेश में 23,603 परिवार प्रभावित हुए, 5540 परिवारों का गुजरात में बसाया गया है, जबकि मध्यप्रदेश में 18,063 परिवारों को बसाया गया है। ये संशोधित बैकवाटर लेवल के बाद मध्यप्रदेश के 178 गांव के परिवार हैं। इसी तरह नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) की वेबसाइट पर आखिरी उपलब्ध रिपोर्ट वर्ष 2016-17 में भी दावा किया गया है विस्थापित 5,535 परिवार गुजरात में बसने का विकल्प चुनकर गुजरात में बस गए हैं।
हालांकि एनसीए व एनवीडीए की रिपोर्ट से इतर जमीनी वास्तविकता कड़वी है। गुजरात में पुनर्वास के लिए चयनित बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जो किसी हाल में मध्यप्रदेश को छोड़कर गुजरात जाना नहीं चाहते हैं और अब भी डूब (बाढ़) की आशंकाओं के बीच नर्मदा के तट पर स्थित अपने पुश्तैनी घरों में रह रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण गुजरात में दी जाने वाली जमीन का उपजाऊ न होना है।
बड़वानी जिले के कुकरा राजघाट गांव की रहनेवाली सुमित्रा दरबार ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “हमें गुजरात के भरूच के केसरोल में पांच एकड़ जमीन दी गई लेकिन वह जमीन खेती लायक नहीं है, इसलिए हम वहां नहीं जाते।” यह गांव बड़वानी जिले की बड़वानी तहसील के बिरखेड़ा पंचायत में पड़ता है और पिछले साल की बाढ़ के दौरान टापू बन गया था।
इसी गांव के 32 वर्षीय जयदीप सिंह दरबार ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “हमारे परिवार को गुजरात के बड़ौदा जिले के मियागाम कर्जन में 27-28 साल पहले जमीन दी गई थी, लेकिन वह जमीन खेती लायक नहीं है तो हम वहां जाकर क्या करेंगे, यहां हमारी जमीन सोने जैसी है।” वे बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “उस समय मैं बहुत छोटा था, अच्छे से समझ नहीं आता था, लेकिन यह याद है कि लोगों को यहां से गाड़ी में भरकर सरकार बसाने गुजरात ले जाती थी, लेकिन जमीन पसंद नहीं आने की वजह से लोग फिर यहां वापस चले आते थे।”
जयदीप बताते हैं कि उनके परिवार के पास अब यहां तीन एकड़ ही ऐसी जमीन है जो डूब में नहीं आती, तकरीबन सात एकड़ जमीन डूब में चली गई, जिसमें पानी नहीं रहने के दौरान वे लोग पशु चारा उपजा लेते हैं।
सरदार सरोवर परियोजना की वजह से धार जिले के चिखलदा गांव से विस्थापित व नर्मदा आंदोलन से जुड़े रेहमत कहते हैं, “ऐसे लोग जो भूमिहीन थे उन्हें गुजरात विस्थापित किये जाने पर वहां कुछ जमीन मिल गई, लेकिन जिनके पास यहां उर्वर जमीन है उन्हें यहां बेहतर संभावनाएं नजर आती हैं। वे कहते हैं कि अब भी लोग पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं।
बैनर तस्वीरः बाढ के महीनों बाद क्षतिग्रस्त मकान की मरम्मत करती सुमित्रा दरबार का कहना है कि गुजरात में उनके परिवार को दी गई जमीन खेती लायक नहीं है। यह गांव बड़वानी जिले की बड़वानी तहसील के बिरखेड़ा पंचायत में पड़ता है और पिछले साल की बाढ़ के दौरान टापू बन गया था। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे