- भारत में जितनी बिजली खपत होती है उसमें से 22 फीसदी कृषि क्षेत्र के हिस्से में आता है। इसे देखते हुए देश में विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (डीआरई) पर काफी जोर है। इसके माध्यम से कोशिश हो रही है कि किसान सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक फायदा उठा सकें।
- अन्य जरूरतों से संबंधित डीआरई-आधारित उपकरण तो लोकप्रिय हो ही रहे हैं अब बिजली की समस्या से निजात के लिए किसान भी इसे तेजी से अपना रहे हैं।
- विकेंद्रीकृत ऊर्जा क्षेत्र के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
बीते कुछ महीनों से विट्ठल रेड्डी रात में चैन से सो पा रहे हैं। अब उन्हें खुद के गन्ने के खेत में जंगली सुअरों के आ जाने की चिंता नहीं सताती। इस बात की गारंटी उन्हें मिली है सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली एक झटका मशीन से। यह मशीन खेतों की बाड़बंदी के काम आती है और जब भी कोई जानवर उसमें घुसने की कोशिश करता है उसे बिजली का हल्का झटका लगता है। यह झटका इतना महीन होता है कि इससे जानवरों को कोई नुकसान नहीं होता पर वो खेत में आने से डरते भी हैं।
रेड्डी के खेत कर्नाटक के बीदर जिले के करकनल्ली गांव मे हैं। पिछले 10 साल से उन्हें दिन-रात खेत की रखवाली करनी पड़ती थी। बावजूद इतना सजग रहने के, सुअर और अन्य जंगली जानवर उनका खेत खराब कर देते थे।
अब चलते हैं 1400 किलोमीटर दूर राजस्थान के भोपालगढ़ के किसान ओमगिरी गोस्वामी के पास। गोस्वामी सौर ऊर्जा का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई और जानवरों के लिए चारा पकाने के लिए करते हैं। इस इलाके में बार-बार बिजली जाती है। कोयला संकट ने बिजली की समस्या को और बढ़ा दिया है, लेकिन गोस्वामी पर इसका कम ही असर हुआ।
इसी तरह से महाराष्ट्र के सतारा इलाके के मान्याचीवाड़ी गांव ने बार-बार बिजली जाने की समस्या का समाधान सौर ऊर्जा के जरिए खोजा। यहां की महिला-स्वयं सहायता समूह ने साथ आकर गांव को सौर ऊर्जा से रोशन किया।
ऊपर की तीनों कहानियों में एक बात सामान्य है, वह है ऊर्जा का विकेंद्रीकृत स्वरूप। यानी वैसी ऊर्जा जो ग्रिड से न आकर उपयोग करने वाले के आसपास ही बनाई जा रही हो। इस तरह की ऊर्जा, गांवों औ सुदूर बसे इलाकों में काम आ सकती है।
मान्याचीवाड़ी गांव के सरपंच रवींद्र आवंदराव माने ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत करते हुए बताया कि उनके गांव में 100 से अधिक परिवार बसता है। वहां बार-बार बिजली जाती थी। वर्ष 2008 में गांव वालों ने मिलकर 3 किलोवॉट का एक सोलर संयंत्र लगाया जिससे गांव की सड़कों पर रोशनी की गई। साथ ही, हर घर के ऊपर एक-एक सोलर पैनल लगाया गया जिससे सभी को जरूरत भर बिजली मिल सके। अब पूरा गांव बिजली के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है।
रेड्डी ने अपना अनुभव बताते हुए मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि उन्होंने इससे पहले तमाम तरह की बाड़बंदी करने की कोशिश की। वन विभाग की सख्ती की वजह से खेत तक ग्रिड से बिजली नहीं आ सकती, इसलिए उन्होंने सौर ऊर्जा का सहारा लिया।
सोलर झटका मशीन को उन्होंने कलबुरागी जिले के किसान शरणबसप्पा पाटिल से खरीदा। पाटिल एक किसान होने के साथ-साथ ऐसी मशीनों में बदलाव कर उसे सस्ती दर पर बेचते भी हैं।
“ग्रिड से जुड़ी ऊर्जा की अपनी कुछ सीमाएं हैं। सुदूर स्थित खेतों में यह उपलब्ध नहीं होता। मैं अपने खेत में लगभग हर काम सौर ऊर्जा की मदद से ही करता हूं, चाहे वह सोलर पंप के माध्यम से खेतों की सिंचाई हो, या सोलर हेलमेट के माध्यम से कीटनाशक का छिड़काव। इससे 20 प्रतिशत तक लागत कम होती है और पानी की उपलब्धता की वजह से 30 प्रतिशत तक उपज में बढ़ोतरी हो सकती है,” पाटिल ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
पाटिल कहते हैं कि सौर ऊर्जा से संचालित झटका मशीन बाजार में पहले से उपलब्ध था, लेकिन उसे सस्ता बनाने में उन्होंने अपने ज्ञान का इस्तेमाल किया। “मैंने कुछ साल पहले इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (आईटीआई) से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इलेक्ट्रिकल्स में डिप्लोमा किया था। मैं मशीनों को बाजार से सस्ती लागत में तैयार कर सकता हूं,” पाटिल ने कहा।
कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), कलबुरागी ने उन्हें मशीनों के साथ नवोन्मेष करने में मदद की और दूसरे किसानों के इसके बारे में जानकारी दी। केवीके के प्रमुख राजू तेग्गाली कहते हैं, “हम किसानों को पाटिल द्वारा किए नवोन्मेषों की जानकारी देते हैं और उन्हें चलाने और रखरखाव की ट्रेनिंग भी देते हैं।”
रेड्डी की तरह ओमगिरी गोस्वामी भी केंद्र सरकार द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े हैं। वह कहते हैं, “केवीके, काजरी (केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान) जोधपुर के वैज्ञानिकों ने मुझसे संपर्क किया और एक पायलट प्रोजेक्ट के लिए पशु चारा कुकर प्रदान किया। मैं 8 वर्षों से इस उपकरण का उपयोग कर रहा हूं,”
केवीके काजरी, आईसीएआर के केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) का हिस्सा है। काजरी के कृषि इंजीनियरिंग और नवीकरणीय ऊर्जा विभाग ने लगभग आधा दर्जन सौर उपकरण विकसित किए हैं, इनमें सोलर डस्टर (कीटनाशकों के छिड़काव के लिए उपकरण), खारा पानी को मीठा पानी में बदलने वाली मशीन और सोलर कुकर शामिल है।
कृषि क्षेत्र में विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा
विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (डीआरई) या ऑफ-ग्रिड ऊर्जा का अर्थ है छोटे पैमाने की ऊर्जा उत्पादन इकाइयां जो स्थानीय समूह को ऊर्जा प्रदान करती हैं और आमतौर पर पावर ग्रिड से जुड़ी नहीं होती हैं।
भारत में सौर ऊर्जा भारत की डीआरई क्षमता में सबसे प्रमुख हिस्सा रखती है। केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के अनुसार, भारत ने मार्च 2022 तक 934,941 सोलर लाइट, 84 लाख सोलर लालटेन, 216,862.68 किलोवाट पीक (kWp) ऊर्जा स्थापित किया है।
इसके अलावा देश भर में सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों को तेजी से लगाया जा रहा है। यह अनुमान है कि सिंचाई के लिए बिजली की लागत कृषि में उत्पादन लागत का 20-40 प्रतिशत है।
देश में पानी के पंप पर ऊर्जा खपत को लेकर अलग-अलग समय में कई अनुमान लगाए गए हैं। शक्ति फाउंडेशन द्वारा 2018 में राष्ट्रीय सौर पंप कार्यक्रम के प्रभाव आकलन के अनुसार, भारत में ग्रिड से जुड़ी बिजली से संचालित 190 लाख पंप सेट और डीजल द्वारा संचालित 90 लाख पंप सेट हैं। ग्रिड से जुड़े पंप 8.5 करोड़ टन कोयला प्रति वर्ष की खपत करते हैं और डीजल पंप राष्ट्रीय डीजल खपत का 3.1 प्रतिशत खपत करते हैं।
2015 में जारी केंद्रीय बिजली मंत्रालय के एक अन्य अनुमान में कहा गया है, “वर्तमान में भारत में लगभग 200 लाख पंप सेट सक्रिय हैं और इस क्षेत्र में 2.5 लाख से 5 लाख पंप सेट की वार्षिक वृद्धि हो रही है। कृषि क्षेत्र में कुल बिजली खपत का 20-22 प्रतिशत खपत होता है।
सीईईडब्ल्यू में फेलो और डायरेक्टर-पावरिंग लाइवलीहुड अभिषेक जैन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “बिजली और थर्मल ऊर्जा दोनों में, कृषि उत्पादन और प्रसंस्करण में किसानों द्वारा विशेष रूप से सिंचाई, शीत भंडारण और सुखाने के लिए सौर ऊर्जा पर काफी भरोसा किया जाता है।” “सिंचाई, पशुधन और डेयरी फार्म के रखरखाव के लिए बड़ी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है। किसान लागत के बोझ को कम करने के लिए इन उपकरणों को सौर ऊर्जा से चलाते हैं।”
भारत में स्वच्छ ऊर्जा उद्यमों का समर्थन, एकीकरण और विकास करने के लिए प्रतिबद्ध एक गैर-लाभकारी संगठन, क्लीन (CLEAN) के एक सर्वेक्षण के हवाले से जैन कहते हैं, “शीर्ष पांच कृषि-आधारित आजीविका का साधन देने वाले उपकरणों में सौर पंप, सौर रेफ्रिजरेटर और फ्रीजर, सौर मिल, सौर शीतभंडार उपकरण और सोलर ड्रायर हैं। अब तक पूरे भारत में 2.37 लाख सोलर वाटर पंप स्थापित किए जा चुके हैं और 35 लाख सोलर पंप स्थापित करने का लक्ष्य है। सरकार के अनुमान के मुताबिक, देश में स्थापित 220 लाख से अधिक ग्रिड से जुड़े कृषि पंप को चलाने में सालाना 213 अरब यूनिट बिजली की खपत होती है। अगर देश में 35 लाख सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप स्थापित हो गए तो भारत में कम से कम 15 प्रतिशत बिजली की बचत हो सकती है।
भारत के नीति निर्माता भी विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा उत्पादों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। फरवरी 2022 में एमएनआरई ने डीआरई से संचालित आजीविका या रोजगार देने वाले उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए एक रूपरेखा जारी की। ये उपकरण सौर, पवन, लघु-हाइड्रो, बायोमास आदि से संचालित हो सकते हैं और इससे सीधे रोजगार मिल सकता है। सौर ड्रायर, सौर मिल, सौर या बायोमास संचालित कोल्ड स्टोरेज / चिलर , सौर चरखा और करघे, छोटे पैमाने पर बायोमास गोली बनाने वाली मशीनें इनमें शामिल हैं।
“एमएनआरई के नए ढांचे के साथ डीआरई-आधारित रोजगार संबंधी उपकरण हो कृषि क्षेत्र संबंधित उपकरण, इनका इस्तेमाल अत्यधिक बढ़ने की उम्मीद है। सरकार के विभिन्न अंग, वित्तीय संस्थानों तथा अन्य प्रयासों से डीआरई-आधारित आजीविका उपकरणों के विस्तार में मदद मिलेगी,” जैन ने समझाया।
ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं की संभावना और वित्तीय संकट
यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में 100 मीटर की ऊंचाई पर इतनी हवा है कि 300 गीगावाट (GW) से अधिक की पवन ऊर्जा बनाई जा सकती है। वहीं, देश के ऊपर सूरज की मेहरबानी से 750 GW की सौर ऊजा क्षमता है। साथ ही, देश में 20 GW छोटे जलविद्युत, और 25 GW जैव-ऊर्जा की क्षमता हो सकती है। भारत का लक्ष्य 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करना और अक्षय ऊर्जा के माध्यम से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत पूरा करना है।
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इस लक्ष्य को पूरा करने में विकेंद्रीकृत ऊर्जा का बड़ा योगदान रह सकता है। लेकिन इसके लिए वित्त यानी पैसों की उपलब्धता में गंभीर सुधार की आवश्यकता है। क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव (सीपीआई) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अपने स्थायी ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, भारत को 2024 तक 18 बिलियन डॉलर (13,99,63,50,00,00 रुपये) के वार्षिक डीआरई निवेश की आवश्यकता होगी, जो मौजूदा स्तरों से 10 गुना अधिक है।
एमएनआरई सौर लालटेन जैसे डीआरई उपकरणों के लिए केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) प्रदान करता रहा है, लेकिन यह काफी नहीं है। भले ही सरकार अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के तेजी से विकास पर जोर दे रही है, लेकिन इसमें दी जाने वाली सब्सिडी में तेजी से गिरावट देखी गई है।
सीईईडब्ल्यू और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) के एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि भारत में अक्षय ऊर्जा सब्सिडी वित्तीय वर्ष 2017 में 16,312 करोड़ पहुंचने के बाद 59 प्रतिशत गिरकर 6,767 करोड़ रुपये रह गया है। रिपोर्ट ‘मैपिंग इंडियाज एनर्जी पॉलिसी 2022: अलाइनिंग सपोर्ट एंड रेवेन्यू विद ए नेट-जीरो फ्यूचर’ में पाया गया कि ऑफ-ग्रिड और विकेन्द्रीकृत सौर के साथ सौर पार्कों के विकास के लिए योजनाओं में सब्सिडी घटकर 385 करोड़ रुपया रह गई है।
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बैनर तस्वीरः हरियाणा के करनाल जिले में लगा सोलर वाटर पंप। अब तक पूरे भारत में 2.37 लाख सोलर वाटर पंप स्थापित किए जा चुके हैं और 35 लाख सोलर पंप स्थापित करने का लक्ष्य है। तस्वीर– सीसीएएफएस/2014/प्रशांत विश्वनाथन/फ्लिकर