- अप्रैल 2022 में, हिमाचल प्रदेश सरकार ने शिमला के लिए एक प्रमुख विकास योजना पेश की। हालांकि, एक महीने बाद, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यह कहते हुए योजना पर रोक लगा दी कि इससे पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं।
- ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला पहले से ही भूकंप और भूस्खलन के जोखिम से दो-चार है।
- 2017 में, एनजीटी के एक आदेश ने शहर के कोर के साथ-साथ हरित क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, नई योजना शहर के पहले से ही कमजोर क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति देती है जिसके कारण पर्यावरणविदों ने इसे खामियों से भरा और अदूरदर्शी बताया।
पिछले साल अक्टूबर में शिमला में एक आठ मंजिला इमारत मूसलाधार बारिश से हुए भूस्खलन के चलते ढह गई थी। गनीमत रही कि इमारत ढहने से पहले ही खाली करा ली गई थी। लेकिन इस त्रासदी से उत्तर भारत के इस प्रमुख शहर पर बढ़ता दबाव उजागर हुआ। शिमला पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए लोकप्रिय हिल स्टेशन है।
बीजेपी की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने इस साल 28 अप्रैल को शिमला की विकास योजना 2041 को मंजूरी दी। लगभग 1,70,000 स्थानीय निवासियों और हर साल शहर में आने वाले 35 लाख पर्यटकों के लिहाज से इस विकास योजना से लोगों को काफी उम्मीदें थीं।
भारत की आज़ादी के बाद, शिमला नगरपालिका क्षेत्र और उसके आसपास के इलाकों में विकास कामों को बढ़ावा देने के लिए पहली योजना 1979 में लागू की गई थी। स्थानीय विशेषज्ञों के मुताबिक भूकंप वाले इलाके में बसे इस शहर का, 1979 के बाद से अनियंत्रित और बेतरतीब ढंग से विस्तार हुआ है। बिना योजना बनाए और अंधाधुंध निर्माण के चलते पेड़ों की ताबड़तोड़ कटाई हुई है। नई विकास योजना में भी इसे स्वीकार किया गया है।
इस नई योजना का उद्देश्य आने वाले दो दशक में शहर के विकास की रूपरेखा तैयार करने की है। इसमें न केवल टिकाऊ विकास का ध्यान रखा जाना था बल्कि शहर की विस्तार जरूरतों के साथ-साथ बढ़ती पारिस्थितिकी चुनौतियों का भी संज्ञान लेना था। इस योजना में शिमला के आसपास के क्षेत्र जैसे कुफरी, शोघी और घानाहट्टी विशेष क्षेत्र के अलावा, कई गावों को भी शामिल किया गया है।
हालांकि, योजना कितनी कारगर होगी इसे लेकर सवाल उठने लगे हैं। शहर के पूर्व डिप्टी मेयर और शहरी नियोजन विशेषज्ञ टिकेंदर पंवार ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि शिमला की नई विकास योजना खोए हुए एक अवसर की तरह है। इसके लिए उन्होंने मौजूदा सत्ताधारी पार्टी की ‘नासमझी’ और ‘लोकलुभावनवाद’ को जिम्मेदार ठहराया।
पंवार के मुताबिक शिमला का 90 फीसदी हिस्सा जोखिम भरे ढलानों पर बसा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शहर के विकास की कोई भी इन ढलानों के सावधानीपूर्वक अध्ययन पर आधारित होनी चाहिए।
वो कहते हैं, “इन ढलानों में से प्रत्येक की अधिकतम भार-वहन क्षमता की वैज्ञानिक समझ के लिए यह एक अहम अभ्यास था ताकि पहले से ही अतिरिक्त निर्माण के चलते जोखिम वाले ढलानों में हादसों से बचा जा सके। लेकिन नई योजना का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है क्योंकि यह बेतरतीब ढंग से कोर, नॉन-कोर और हरित क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों की अनुमति देता है।”
पंवार कहते हैं कि नई योजना में, ज्यादा आबादी वाले ढलानों का भार कम करने या एक शहर के लिए जरूरी जाम से मुक्ति के मसले को सुलझाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। यह शहर अक्सर ट्रैफिक जाम में फंसा रहता है, खासकर पीक टूरिस्ट सीजन के दौरान।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि योजना भविष्य में आबादी में बढ़ोतरी और पर्यटन दबाव को कम करने के लिए शिमला के आसपास एक नई सैटेलाइट टाउनशिप विकसित करने के बारे में बात नहीं करती है।
पिछले महीने पारिस्थितिकीविद् योगेंद्र मोहन सेनगुप्ता की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT ) ने नई योजना को लागू करने पर रोक लगा दी थी। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि हिमालयी क्षेत्र के अन्य पहाड़ी राज्यों के विपरीत, शिमला इस तथ्य के कारण भारी जोखिम में है क्योंकि यह ढलानों पर बसा है। घाटी का क्षेत्र यहां बहुत सीमित है।
सेनगुप्ता ने बताया कि शहर का अधिकांश हिस्सा बहुत ज्यादा अस्थिर ढलानों पर 60 डिग्री से ऊपर बनाया गया है, जबकि आधिकारिक निर्माण सीमा 45 डिग्री है। सेनगुप्ता कहते हैं, “कई विशेषज्ञों ने आपदा के मामले में मानव हानि को कम करने के लिए शहर में तुरंत भीड़भाड़ कम करने की सिफारिश की है। लेकिन नई योजना असुरक्षित क्षेत्रों में भी निर्माण की अनुमति दे रही है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की रियल एस्टेट और होटल लॉबी को लाभ पहुंचाने के लिए नई योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा कि इस योजना को तुरंत खत्म कर दिया जाना चाहिए और शहर में भीड़ कम करने के लिए एक नई कवायद शुरू होनी चाहिए। सेनगुप्ता ने कहा, “नहीं तो, यहां आपदा की भयावहता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शहर में किसी भी आपदा का रिस्क हमेशा बना हुआ है। पारिस्थितिक की स्थिरता इत्यादि भी मुद्दे हैं पर जोखिम कम सबसे अहम है।”
ग्रीन ट्रिब्यूनल ने क्यों रोकी योजना?
इस साल 12 मई को, एनजीटी ने शिमला विकास योजना 2041 को लागू करने पर रोक लगा दी। पहले भी एनजीटी ने शहर के ढांचे पर सवाल खड़ा किया है।
साल 2015 में, ट्रिब्यूनल ने शिमला शहर के पर्यावरण और पारिस्थितिकी, सीवेज सिस्टम और जल आपूर्ति पर मौजूदा संरचनाओं के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी। साल 2017 में, समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि आपदा जोखिम प्रबंधन की नजर से देखें तो शिमला भार उठाने की अपनी क्षमता से आगे निकल गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि दशकों से अनियंत्रित और असुरक्षित निर्माण ने शहर को बहुत ही संवेदनशील बना दिया है, जिसके चलते भूकंप और भूस्खलन जैसी कुदरती आपदाएं आने पर जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है।
समिति ने पाया कि अधिकांश इमारतें 70 डिग्री से ज्यादा की ढलानों पर बनी हैं और ऐसे निर्माणों के लिए ढांचे को काटने की आवश्यकता होती है जिसके चलते जमीन धंसने की बहुत अधिक आशंका रहती है। समिति ने शिमला, खासकर संझौली, धाली, टूटू और लोअर लक्कर बाजार जैसे क्षेत्रों में भीड़ को तुरंत कम करने पर जोर दिया। इसने भूकंप की संवेदनशीलता और भार वहन क्षमता की अनदेखी कर बनाए गए सभी भवनों की पहचान करने और 5-10 सालों के भीतर उन्हें गिराने, हटाने और फिर से बनाने का सुझाव दिया था।
इससे पहले, शिमला नगर निगम के एक अध्ययन (अप्रैल 2014-जुलाई 2015) ने अध्ययन के लिए चुने गए 300 भवनों में से 249 (83 प्रतिशत) को “संरचनात्मक रूप से असुरक्षित” पाया था। साल 2016 में, शिमला नगर निगम के ही एक दूसरे सर्वेक्षण में पाया गया कि 2,795 मकानों में से 65 प्रतिशत असुरक्षित थे।
नवंबर 2017 में, एनजीटी ने शिमला योजना क्षेत्र के तहत आने वाले कोर और हरित/वन क्षेत्र के किसी भी हिस्से में – आवासीय, संस्थागत और कारोबारी – किसी भी प्रकार के नए निर्माण पर रोक लगा दी।
एनजीटी के आदेश में यह भी कहा गया था कि अस्पतालों और स्कूलों जैसे सार्वजनिक भवनों के मामले को छोड़कर कोर और हरित क्षेत्रों से परे भी दो मंजिला भवन और अटारी से आगे बनाने की अनुमति नहीं होगी। मुख्य क्षेत्र मूल रूप से शिमला शहर का मध्य भाग है, जो विक्ट्री टनल से शुरू होकर छोटा शिमला और संजौई होते हुए विक्ट्री टनल पर ही खत्म होता है और माल रोड और आसपास के क्षेत्र से घिरा हुआ क्षेत्र है।
हालांकि, अप्रैल 2022 में राज्य कैबिनेट से मंजूर विकास योजना में इन चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया है। बल्कि इसमें दो से अधिक मंजिलों के निर्माण, शहर के मुख्य और हरित क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति भी दी गयी है। पर्यावरणविदों के अनुसार, इस योजना में डूबने और फिसलन वाले क्षेत्रों में विकास की भी अनुमति दी, जिसके चलते आपदाएं हो सकती हैं।
12 मई को पहली सुनवाई में, एनजीटी ने यह देखते हुए योजना पर रोक लगा दी कि नई शिमला विकास योजना उनके 17 नवंबर, 2017 के आदेश का उल्लंघन है। इसने हिमाचल प्रदेश टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को विकास योजना को लागू करने को लेकर कोई भी कदम उठाने से रोक दिया।
राज्य की दलील, विकास योजना पारिस्थितिकी के खिलाफ नहीं
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की पूर्व राजधानी शिमला में 1851 में देश की पहली नगर पालिकाओं में से एक थी। 1947 में देश की आज़ादी तक, शहर में ज्यादातर निर्माण ब्रिटिश वास्तुशिल्प कानूनों के तहत हुआ, जिसमें स्थानीय योजना राजधानी तक सीमित थी।
लेकिन 1889 में जिस शहर की आबादी 24,000 थी, आजादी के बाद उसका सभी दिशाओं में तेजी से विकास हुआ है। मई 2022 के एनजीटी आदेश के बारे में मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए हिमाचल प्रदेश के शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने इस आरोप को नकारा कि योजना शहर के लिए अच्छी नहीं है। यह योजना राज्य के शहरी विकास विभाग द्वारा तैयार की गई थी।
उन्होंने कहा कि शहर की जरूरतों को ध्यान में रखने के अलावा शिमला के योजना क्षेत्र को आसपास के शहरों तक भी विस्तारित किया गया है।
भारद्वाज ने कहा कि सलाहकार को नियुक्त करके कानून की उचित प्रक्रिया के तहत योजना का मसौदा, वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया था। मसौदा तैयार करने से बाकायदा एक सर्वेक्षण किया गया था। इसके बाद विभिन्न हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया गया।
विकास योजना को रोकने वाले एनजीटी के आदेश के बारे में पूछे जाने पर, भारद्वाज ने कहा कि योजना को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट के तहत तैयार किया गया है और इसका संज्ञान लेना एनजीटी के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा नहीं है।
शहर के अधिसूचित हरित क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति देने के तर्क पर, शहरी विकास मंत्री ने कहा कि उन क्षेत्रों में पहले से ही बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा था जिन्हें वर्ष 2000 में हरित पट्टी का हिस्सा घोषित किया गया था।
उन्होंने कहा कि नई योजना में पहले से बने घरों के बीच कुछ खाली जमीन पर आवासीय उद्देश्यों के लिए सिर्फ एक कमरे के घरों के निर्माण की अनुमति दी गई है। भारद्वाज ने सवालिया लहजे में पूछा, “जब वहां मकान पहले ही बन चुके थे तो तर्कसंगत रुख अपनाने में क्या गलत है?”
मंत्री ने कोर एरिया में भी निर्माण को जायज ठहराया। उन्होंने पूछा, “मान लीजिए कि शहर के क्षेत्र में खाली प्लॉट वाले कुछ लोग किसी कारण से अपना घर नहीं बना सके। क्या अब उन्हें ढाई मंजिला मकान बनाने से रोकना जायज है।
भारद्वाज ने कहा कि राज्य सरकार ने 2017 में एनजीटी के पहले के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कोर के साथ-साथ हरित क्षेत्र में निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उन्होंने कहा, “हम कानूनी रूप से उचित कदम उठायेंगे।“
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बैनर तस्वीर- शिमला की नई विकास योजना का उद्देश्य शहर की विस्तार जरूरतों और बढ़ती पारिस्थितिक चुनौतियों के साथ-साथ शहर के टिकाऊ विकास को पक्का करना था। तस्वीर– नवनीत शर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स