- यूरोपीय संघ और यूनाइटेंड किंगडम ने कहा है कि वे मिस्र में जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप27 में सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के लिए भारत के आह्वान में शामिल होंगे। साथ में यह शर्त भी रखी कि कोयला को कम करने की पहले से जो रफ्तार निर्धारित है वह धीमी न हो।
- छोटे द्वीप राज्यों के गठबंधन के 39 देशों सहित कई अन्य राष्ट्रों के प्रस्ताव का समर्थन करने की संभावना है। ये देश तापमान और समुद्र के स्तर में वृद्धि से गंभीर रूप से खतरे में हैं।
- मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत के कूटनीतिक हमले ने तेल और गैस उत्पादक देशों के साथ-साथ कोयले पर निर्भर देशों को भी सुर्खियों में ला दिया है।
मिस्र में शर्म अल-शेख में आयोजित संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन (कॉप27) में भारत द्वारा कोयले के अलावा सभी जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में तेजी से कमी लाने के प्रस्ताव को यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम (यूके) सहित अन्य देशों से समर्थन मिला।
बीते शनिवार को भारत ने जो प्रस्ताव रखा उसे एक कूटनीतिक हमले के रूप में जो देखा गया था। भारत अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है। अब यह मामला कॉप27 के दूसरे सप्ताह में एक प्रमुख मुद्दे के रूप में उभरा है। इस मुद्दे पर मंगलवार को मुख्य जलवायु वार्ताकार फ्रैंस टिम्मरमैन ने बात की। यूरोपीय संघ ने कहा कि उन्होंने भारत के आह्वान का तब तक समर्थन किया है जब तक कि वह कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने की गति को धीमा नहीं करता। कोयले को खत्म करने की एक तय रफ्तार पर पहले सहमति बनी हुई है।
“हम सभी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध करने के लिए किसी भी आह्वान के समर्थन में हैं,” टिम्मरमन्स ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा। उन्होंने आगे कहा, “लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह आह्वान कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने के हमारे पहले के समझौतों को नजरअंदाज नहीं करता है। यदि यह ग्लासगो में हुए समझौते की तर्ज पर है तो यूरोपियन यूनियन (ई.यू.) इस प्रस्ताव का समर्थन करेगा।”
पिछले साल ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन में कोयले को पूरी तरह से खत्म करने के प्रस्ताव की वजह से भारत और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच गतिरोध पैदा कर दिया। अमीर देश ‘फेज आउट’ यानी पूरी तरह खत्म करना वाले शब्द को शामिल करना चाहते थे, जिसका भारत ने विकल्प के रूप में ‘फेज डाउन’ यानी चरणबद्ध तरीके से खत्म करना शब्द पर जोर देते हुए विरोध किया। ग्लासगो घोषणा ने अंततः कोयले के फेज-डाउन का आह्वान किया।
भारत के आह्वान को छोटे द्वीप राज्यों के गठबंधन वाले 39 देशों से मजबूत समर्थन मिल सकता है, जो बढ़ते वैश्विक तापमान और समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहे हैं। उनमें से कुछ, जैसे तुवालु और वानुअतु, ने पिछले सप्ताह जिसे उन्होंने जीवाश्म ईंधन अप्रसार का आह्वान किया।
शिखर सम्मेलन में मंथन
शिखर सम्मेलन के अंत में सर्वसम्मत समझौते के लिए प्रस्तुत की जा सकने वाली घोषणा का मसौदा तैयार करने के लिए शनिवार को शुरू हुए काम के बीच दूसरे सप्ताह में मंथन हुआ। मिस्र की अध्यक्षता ने संकेत दिया है कि अपेक्षित सौदे की दो-पृष्ठ की रूपरेखा आगे की चर्चाओं के लिए है। रूपरेखा और भाषा में निश्चित रूप से कई और बदलाव होंगे जो इस तरह के बहुपक्षीय दस्तावेजों में महत्वपूर्ण हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान अंतिम चैप्टर में शामिल है या नहीं, यह देखने योग्य बात होगी।
थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वॉटर के फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा, “प्रस्ताव में भारत मजबूत स्थिति से आ रहा है।” “यह महत्वाकांक्षा को प्रदर्शित करता है और भारत सभी जीवाश्म ईंधन की बात कर रहा है, न कि केवल कोयले पर,” वह कहते हैं।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट की वरिष्ठ नीति सलाहकार श्रुति शर्मा ने कहा कि भारत ने ऊर्जा सब्सिडी को कम करके जलवायु कार्रवाई करने की अपनी इच्छा का प्रदर्शन किया है। शर्मा ने कहा, “भारत जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को लगातार कम कर रहा है,” पिछले सात वर्षों में सब्सिडी में 72% की कमी आई है।
भारत भी 2015 के पेरिस समझौते के कुछ हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक है, जिसने बड़ी मात्रा में स्वैच्छिक कटौती की है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धताओं के रूप में जाना जाता है, विशेषज्ञों ने बताया। शर्मा ने कहा, “अगर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करना है तो पूरी दुनिया को आगे आकर इस मुद्दे पर प्रगति दिखानी होगी।”
वर्ल्ड रिसोर्स सेंटर नामक एक शोध संगठन के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल के निदेशक डेविड वास्को ने कहा, प्रस्ताव पर राष्ट्रों के बीच व्यापक समर्थन प्रतीत होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि “हमें सभी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की आवश्यकता है,” वास्को ने कहा।
यह विकास ऐसे समय में हुआ है जब चीन सोमवार को जो बाइडेन और शी जिनपिंग के बीच बैठक के बाद अमेरिका के साथ जलवायु वार्ता फिर से शुरू करने पर सहमत हुआ। दुनिया के दो सबसे बड़े उत्सर्जक जो रुख अपनाते हैं, वह भारत के प्रस्ताव के भविष्य का निर्धारण कर सकता है।
भारत और चीन दोनों अपने आर्थिक विकास को शक्ति देने के लिए कोयले पर बहुत अधिक निर्भर हैं। हालांकि भारत कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने पर सहमत हो गया है, लेकिन चीन ने अभी तक ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है क्योंकि वह तेजी गति से नए ताप विद्युत संयंत्रों का निर्माण जारी रखे हुए है। वास्को ने कहा, “चीन और भारत दोनों को कोयला फेज-आउट को गंभीरता से लेना होगा।”
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने मंगलवार को एक नई रिपोर्ट में कहा कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचने के लिए दुनिया को कोयले से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कटौती करनी चाहिए। हालाँकि इस संबंध में कुछ आंदोलन हुए हैं, वे अपर्याप्त हैं।
अधिकांश वैश्विक कोयले की खपत उन देशों में होती है जिन्होंने नेट जीरो (शुद्ध शून्य) उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है। हालांकि, वैश्विक कोयले की मांग में गिरावट तो दूर, पिछले एक दशक में लगभग रिकॉर्ड उच्च स्तर पर स्थिर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कुछ नहीं किया जाता है, तो मौजूदा कोयले की ताप से उत्सर्जन अपने आप ही दुनिया भर में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर जाएगा।
तेल और गैस की पहेली
सभी जीवाश्म ईंधन को शामिल करने के लिए फेज डाउन के जोर को स्थानांतरित करने का भारत का प्रस्ताव प्रमुख तेल और गैस उत्पादक देशों को पसंद आने की उम्मीद नहीं है। इन देशों में अमेरिका, रूस और ओपेक देश शामिल हैं।
कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में निवेश में गिरावट के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। पृथ्वी को गर्म करने वाले तेल उद्योग में निवेश जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए आवंटित वैश्विक संसाधनों की कुल राशि से कहीं अधिक है।
और पढ़ेंः कॉप27: जलवायु संकट में फंसी दुनिया क्या मिस्र में खोज पाएगी समाधान
जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (आईपीसीसी) द्वारा प्रस्तुत वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर, ऐतिहासिक पेरिस समझौता वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करने पर सहमत हुआ। यद्यपि यह जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने और अंततः समाप्त करने के लिए निहित है, समझौते में कोई स्पष्ट संदर्भ नहीं दिया गया था।
भारत का प्रस्ताव इसलिए भी महत्व रखता है क्योंकि अब यह प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के जी20 समूह की अध्यक्षता करता है जो सकल विश्व उत्पाद का लगभग 80% और वैश्विक जनसंख्या का दो-तिहाई हिस्सा है। पश्चिमी देशों के लिए भारत के प्रस्ताव का विरोध करना मुश्किल होगा, जैसा कि यूरोपीय संघ के शुरुआती समर्थन से देखा जा सकता है। यह देखना बाकी है कि क्या भारत का प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृति पाता है।
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीरः कॉप27 के दौरान मिस्र के शर्म-अल-शेख में विभिन्न संगठनों ने जीवाश्म ईंधन के खिलाफ प्रदर्शन किया। तस्वीर- आईआईएसडी