- ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी मिलने के एक साल बाद भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (ईआरडी) को वन मंजूरी से छूट दे दी। छूट इस शर्त पर दी गई कि खुदाई वन क्षेत्रों के बाहर कम से कम 500 मीटर और संरक्षित क्षेत्रों से एक किलोमीटर दूर की जानी चाहिए।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान का कहना है कि डेटा इकट्ठा करने और स्थानीय वन्यजीवन और पारिस्थितिकी पर ईआरडी के प्रभावों का मूल्यांकन करने में तीन साल लगेंगे।
- नीति में लाए गए हालिया बदलाव से ऑयल इंडिया लिमिटेड को सबसे पहले फायदा मिलने की उम्मीद है, क्योंकि असम में ईआरडी के लिए इसकी वन मंजूरी 2017 से लंबित है।
नए सरकारी नियमों के मुताबिक, जंगलों में प्राकृतिक भंडार से तेल और गैस निकालने के लिए अब परियोजना के डेवलपर्स को वन मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। शर्त बस इतनी है कि खुदाई वन क्षेत्रों के बाहर की जाएगी।
12 सितंबर को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सभी राज्यों को एक पत्र जारी कर कहा कि एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (तेल और गैस उत्खनन की एक तकनीक) को वन मंजूरी प्रक्रिया से छूट दी जाएगी और उत्खनन के लिए विस्तृत क्षेत्रीय दिशा निर्देश भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा जारी किए जाएंगे। दरअसल एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (ईआरडी) में ढलान पर एक क्षैतिज कुआं खोदा जाता है जिसकी लंबाई उसकी गहराई से कम से कम दुगनी होती है। यहां खुदाई से कुछ दूरी पर गैस और तेल का उत्खनन किया जाता है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय से जुड़ा हुआ विभाग ‘हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय’ (डीजीएच) ने 2020 में ईआरडी को वन मंजूरी प्रक्रिया से छूट देने पर जोर दिया था। उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि यह तकनीक जंगलों में जाने या वन भूमि को छेड़े बिना भंडार तक पहुंच संभव बनाती है।
भारत में अब तक वनों पर ईआरडी के प्रभावों का मूल्यांकन करने वाला कोई अध्ययन नहीं किया गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के अनुसार, वन क्षेत्रों के भीतर इस तकनीक के इस्तेमाल को लेकर डेटा इकट्ठा करने, रिपोर्ट तैयार करने और सिफारिशें करने में तीन साल लगेंगे। फिर भी पर्यावरण मंत्रालय ने डीजीएच की एक रिपोर्ट पर अपना निर्णय लेते हुए छूट दे दी, जिसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। वैसे मंत्रालय ने पिछले साल ही ईआरडी के लिए “सैद्धांतिक” मंजूरी दे दी थी, जिससे औपचारिक छूट का रास्ता साफ हो गया था।
साल 2013 में शोधकर्ताओं ने लैटिन अमेरिका के अन्य क्षेत्रों का हवाला देते हुए पेरू में अमेज़ॅन जंगल में तेल उत्खनन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए एक शमन रणनीति के रूप में ईआरडी का प्रस्ताव दिया था। लैटिन अमेरिका में इस तकनीक को इस्तेमाल में लाया गया था। भारत में अध्ययन और डेटा के अभाव में परियोजना डेवलपर्स को वन क्षेत्रों में ईआरडी करते समय डब्ल्यूआईआई द्वारा निर्धारित नियमों को मानना होगा।
पर्यावरण मंजूरी प्रक्रियाओं पर एक स्वतंत्र शोधकर्ता मीनाक्षी कपूर ने कहा, “यह सभी मंजूरी प्रक्रियाओं की एक प्रवृत्ति है। परियोजनाओं को तब तक मंजूरी प्रक्रियाओं से छूट दी जाती है जब तक वे दिशानिर्देशों या मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन करते हैं। पूर्व अप्रूवल पाने का नजरिया पूरी तरह से तस्वीर से बाहर है और सरकार एक साथ कई कदम उठाने की अनुमति दे रही है। एहतियाती सिद्धांत दृष्टिकोण का कहीं भी पालन नहीं किया जा रहा है।”
![असम के मकुम में ऑयल ड्रिलिंग रिग। तस्वीर- অজয় দাস/विकिमीडिया कॉमन्स](https://hindi-mongabay-com.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2023/12/Drilling_rig_at_Makum_OCS_under_Oil_India_Limited_01-768x512.jpg)
नीति में हाल ही में किए गए बदलाव से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) को सबसे पहले फायदा मिलने की उम्मीद है। कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की खोज, उत्खनन और उत्पादन करने वाली ऑयल इंडिया लिमिटेड कंपनी ने 2017 में ऊपरी असम में सात ईआरडी कुएं खोदने के लिए वन मंजूरी के लिए आवेदन किया था। इसे मई 2020 में पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) तो मिल गई लेकिन इसकी वन मंजूरी अभी तक लंबित है। कुछ दिन पहले इसके एक अन्य कुए में विनाशकारी विस्फोट हुआ था।
विशेषज्ञों का कहना है कि ईआरडी का अधिकांश प्रभाव काम की गुणवत्ता पर ही निर्भर करता है।
जंगलों में ईआरडी
भारत का अधिकांश कच्चे तेल का भंडार असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे वन समृद्ध राज्यों में पाया जाता है। नीति आयोग द्वारा बनाए गए ऊर्जा डैशबोर्ड के अनुसार, असम में 148 मिलियन मीट्रिक टन तेल भंडार बचा है, जो देश के कुल भंडार का 37.53 प्रतिशत है। राजस्थान और गुजरात भी तेल समृद्ध राज्य हैं। राजस्थान के पास लगभग 103 मिलियन मीट्रिक टन तेल (सभी भंडार का 26.18 प्रतिशत) और गुजरात में 117 मिलियन मीट्रिक टन (28.7 प्रतिशत) तेल भंडार है।
मौजूदा समय में भारत की तेल और गैस की जरूरतें मुख्य रूप से इन संसाधनों के आयात से पूरी होती हैं। इस साल अप्रैल में भारत का कच्चे तेल का आयात 88 फीसदी तक पहुंच गया। 2016 में देश ने नॉर्थ ईस्ट हाइड्रोकार्बन विजन 2030 लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र से तेल और गैस उत्पादन बढ़ाना है।
हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय के अनुसार, ईआरडी में “हाइड्रोकार्बन की कुल खपत में मौजूदा घरेलू उत्पादन का योगदान 15% से बढ़ाकर लगभग 30% करने की क्षमता है।”
इस वर्ष डीजीएच द्वारा प्रकाशित इंडिया हाइड्रोकार्बन आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया, “पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से डीजीएच ने 2019 से पर्यावरण संबंधी मंजूरी को सुव्यवस्थित और तेज करने के लिए कई पहल की हैं।” रिपोर्ट आगे कहती है, “इस तरह की मंजूरी और अप्रुवल में देरी से तेल और गैस की खोज और उत्पादन परियोजनाओं की समयसीमा और प्रगति पर असर पड़ता है।”
12 सितंबर को अपने पत्र में मंत्रालय ने कहा है कि ईआरडी को वन मंजूरी प्रक्रिया से छूट दी जाएगी। लेकिन खुदाई स्टेशन वन क्षेत्रों से 500 मीटर दूर और संरक्षित एवं संवेदनशील क्षेत्रों से कम से कम एक किलोमीटर दूर स्थापित करना होगा। 1972 के वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्र अधिसूचित वन हैं। मंत्रालय ने कहा कि संरक्षित क्षेत्रों के भीतर होने वाली किसी भी खुदाई को मंजूरी प्रक्रिया से छूट नहीं दी जाएगी।
इस साल जून में मंत्रालय को लिखे एक पत्र में डब्ल्यूआईआई ने कहा, “एक बार जानवरों के रहन-सहन, उनकी गतिविधि, व्यवहार और मानवीय हस्तक्षेप पर उनकी प्रतिक्रिया पर विस्तृत अध्ययन किए जाने के बाद ही हम वन्यजीव प्रजातियों पर इससे पड़ने वाले प्रभाव को कम करने की सिफारिशें दे पाएंगे।”
![ऑयल इंडिया ने असम में डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय पार्क के बाहर एक्सटेंडेड ड्रिलिंग रिग स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। तस्वीर- ध्रुबा ज्योति बरुआ/विकिमीडिया कॉमन्स।](https://hindi-mongabay-com.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2023/12/Dibru_Saikhuwa_National_Park-768x512.jpg)
अपने 10-सूत्री स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) में डब्ल्यूआईआई का कहना है कि ड्रिलिंग वन्यजीव संवेदनशील क्षेत्रों में शोर-रोधी होनी चाहिए। साथ ही तेल बहने या इधर-उधर फैलने से बचाने के लिए डाउनस्ट्रीम या जलग्रहण क्षेत्र के पास स्थित होनी चाहिए। अगर वन्यजीव क्षेत्रों से होकर जा रहे हैं तो ड्रिलिंग स्थल तक पहुंचने वाली सड़कों को “कम करना होगा” और “सभी ड्रिलिंग बिंदुओं/कुओं को एक बाउंड्री से कवर करना होगा”। उनकी परिधि में 10 मीटर चौड़ी सड़क होनी चाहिए ताकि आग लगने की घटना के दौरान फायर टेंडरों की आसान आवाजाही हो सके।” इसमें यह भी कहा गया है कि एक आकस्मिक टीम को हमेशा आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
2020 में बागजान के ऊपरी असम क्षेत्र में ऑयल इंडिया के एक तेल कुएं में गैस रिसाव के कारण एक बड़ा विस्फोट हुआ था। यह आग डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क (डीएसएनपी) से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर और मागुरी-मोटापुंग बील वेटलैंड से 500 मीटर की दूरी पर लगी थी और लगभग पांच महीने तक जलती रही। राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन की एक रिपोर्ट के अनुसार, ओआईएल इंडिया द्वारा प्रस्तावित ईआरडी साइटें उस जगह के करीब हैं जहां बागजान विस्फोट हुआ था।
अपने 12 सितंबर के पत्र में मंत्रालय ने कहा है कि परियोजना डेवलपर्स एसओपी का पालन कर रहे हैं या नहीं, ये देखने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी।
कपूर ने कहा, “एसओपी की निगरानी कौन करेगा? आखिर में एसओपी की निगरानी का काम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों पर ही पड़ेगा। कई अध्ययनों से पता चलता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पहले से ही काम के बोझ से दबा है और यह सिर्फ उनके काम को बढ़ा देगा।” वह आगे कहती हैं, ”इसमें से ज्यादातर उत्खनन पूर्वोत्तर के जैव विविधता वाले हिस्सों में होगा। जोखिम अधिक हो सकते हैं। इसलिए छूट देते समय और भी अधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
ईआरडी पर 2013 के अध्ययन के सह-लेखक और ई-टेक इंटरनेशनल के मुख्य अभियंता बिल पॉवर्स के अनुसार, ईआरडी को बेहद खास जानकारी और परिष्कृत उपकरणों की जरूरत होगी। ई-टेक लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में बड़ी विकासात्मक परियोजनाओं से प्रभावित समुदायों को पर्यावरणीय तकनीकी सहायता देने वाला संगठन है। वन क्षेत्रों के बाहर ड्रिलिंग से जंगल के भीतर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन खुदाई के कुओं पर बहुत अधिक बर्बादी होने की संभावना है।
पॉवर्स ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि उस छेद को ड्रिल करने से जो कचरा पैदा होगा, उसका निपटान सही तरीके से किया जाए। इसका अर्थ है कि आप इसे दूसरे कुएं के जरिए वापस जमीन में डाल दें। तेल के साथ बहुत सारा दूषित पानी भी आता है और उस दूषित पानी को वापस जमीन में गहराई तक डालने की भी जरूरत होती है।”
ऑयल इंडिया इस बात से सहमत है कि खुदाई के दौरान निकले कचरे, साइट पर ड्रिल से निकलने वाले दूषित तेल और पानी को गड्ढों या भंडारण कंटेनरों में संग्रहीत करने और उनका खतरनाक अपशिष्ट (मैनेजमेंट एंड ट्रांसबाउंड्री मूवमेंट) नियम, 2016 के अनुरूप निपटान किया जाना चाहिए।
स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष, पारिस्थितिकी पर प्रभाव
वन सलाहकार समिति द्वारा की गई बैठकों से मिले विवरण के अनुसार, मंत्रालय कम से कम 2020 से ईआरडी को वन मंजूरी से छूट देने पर विचार कर रहा था। वन सलाहकार समिति एक स्वायत्त निकाय है जो मंजूरी के लिए परियोजनाओं का मूल्यांकन करता है और सरकार को नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव देता है।
हाइड्रोकार्बन महानिदेशक ने सबसे पहले 2020 में ईआरडी को वन मंजूरी प्रक्रिया से छूट देने का प्रस्ताव करते हुए एक पत्र लिखा था। एक साल बाद मंत्रालय ने वन (संरक्षण) अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव करते हुए एक परामर्श पत्र में कहा कि ईआरडी को काफी हद तक “पर्यावरण-अनुकूल” माना जाता है और “ऐसी तकनीक को अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।”
ईआरडी को वन मंजूरी से छूट देने पर डीजीएच की रिपोर्ट पर 2020 में वन सलाहकार समिति ने काम करना शुरू कर दिया। एफएसी मिनिट्स के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया है कि जबकि जीवों पर तकनीक के प्रत्यक्ष प्रभाव की पड़ताल की गई तो कुछ अप्रत्यक्ष प्रभाव प्रभावों की गणना की गई, जैसे तेल रिसाव की वजह से जंगल की आग, प्रजनन पर प्रभाव डालने वाले पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे प्रदूषक, मिट्टी की सतह के प्रदूषण के प्रभाव आदि।
![डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान को फैरी (नाव) के जरिए जोड़ने वाला गुइजान घाट। तस्वीर- प्रिंसिप्रिया दत्ता/विकिमीडिया कॉमन्स](https://hindi-mongabay-com.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2023/12/Guijan_ghat_bank_of_the_Brahmaputra-768x512-1.jpg)
बाद की बैठकों में डब्ल्यूआईआई ने बताया कि डीजीएच की रिपोर्ट “मुख्य रूप से माध्यमिक जानकारी/डेटा पर आधारित थी” और “समिति की टिप्पणियों का समर्थन करने वाला कोई मात्रात्मक और वैज्ञानिक डेटा नहीं है।” अगस्त 2022 में, एफएसी ने डीजीएच और डब्लयूआईआई को देश में मौजूदा आईरडी परियोजनाओं से प्राथमिक डेटा लेने और तीन महीने के भीतर पर्यावरण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। लेटेस्ट मिनिट्स से पता चलता है कि एक रिपोर्ट अभी तक पेश नहीं की गई है और इसके बजाय डब्ल्यूआईआई “एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग के लिए एक सामान्य एसओपी ले आया, जिस पर डीजीएच के साथ चर्चा की गई थी।” और अब इसे मंत्रालय ने अपनाया लिया है।
परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के अनुसार, डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय पार्क के जंगल के भीतर एक तेल भंडार तक पहुंचने का प्रस्ताव करने वाली असम की ईआरडी परियोजना से सतही जल और अपशिष्ट जल के बहाव की वजह से स्थानीय जलीय पारिस्थितिकी पर “मध्यम” प्रभाव पड़ने की संभावना है। जिन लोगों की जमीन परियोजना के लिए अधिग्रहित की जाएगी और जिनकी बस्तियां ड्रिलिंग स्थल के करीब होंगी, ओआईएल को उन स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष की भी आशंका है। प्रभाव आकलन में आगे कहा गया है, “परियोजना के दौरान किसी भी समय संघर्ष हो सकता है। लेकिन इसे ऑयल इंडिया लिमिटेड की सक्रिय शिकायत निवारण प्रणाली जल्द ही सुलझा लेगी।”
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बैनर तस्वीर: मेघालय का एक जंगल। तस्वीर– अश्विन कुमार/विकिमीडिया कॉमन्स