गंडक नदी के घड़ियालों का आशियाना उजाड़ सकता है यह अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग

गंडक नदी कम गहराई वाली नदी है और यहां नदी के बीच में रेत के टीले बन जाते हैं। पक्षियों और घड़ियालों के लिए नदी की यह खासियत रहने का अच्छा माहौल प्रदान करती है। इस नदी पर जहाजों का परिचालन शुरू हुआ तो इस अनूठी नदी की जैव विविधता का बड़ा नुकसान होगा। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

दिलचस्प है कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना से बिहार को कोई खास लाभ नहीं मिलने वाला, क्योंकि इस नदी के किनारे न कोई राज्य का बड़ा शहर है, और न ही उद्योग। हां, नेपाल के लिए इस परियोजना का बड़ा महत्व है। क्योंकि नेपाल के पास कोई अपना समुद्री तट नहीं है। वह अब तक भारत के विशाखापत्तनम बंदरगाह से अपना माल सड़क मार्ग के रास्ते लंबी दूरी तय करके अपने देश ले जाती रही है। अगर यह जलमार्ग तैयार हो जाता है तो उसके लिए बड़ी सुविधा हो जायेगी। हल्दियापोर्ट से आसानी से उसका सामान जलमार्ग से काठमांडू तक पहुंच जायेगा।

इस बारे में जब हमने नेपाल के एक बड़े पत्रकार चंद्र किशोर जी से बात की तो उन्होंने कहा कि रेल और पानी के जहाज का परिचालन नेपाल के लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी जब सत्ता में आये तो उन्होंने वादा किया था कि वे रेल गाड़ी चलायेंगे और पानी के जहाज को सीधे नेपाल लेकर आयेंगे। मगर वे यह सब कर नहीं पाये और अब इन बातों को लेकर उनका मजाक उड़ाया जाता है। वे कहते हैं, सवाल सिर्फ जहाज को नेपाल तक लाने का नहीं, गंडक नदी की जैव विविधता और उसके अस्तित्व का भी है। कोई भी काम इसे ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।

क्या गंडक नदी में नौवहन मुमकिन?

एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि क्या गंडक नदी में नौवहन मुमकिन है। इस सवाल के उठने की वजह यह है, क्योंकि अगर मानसून के सीजन को छोड़ दिया जाये तो इस नदी में अमूमन पानी काफी कम रहता है। कम गहराई ही इस नदी का मूल स्वभाव है, जो यहां जैव विविधता के विकास की अहम वजह है।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकार द्वारा इस नदी पर प्रस्तावित राष्ट्रीय जलमार्ग 37 के निर्माण के लिए तैयार फाइनल हाइड्रोग्राफिक सर्वे में भी इस बात का उल्लेख है कि बरसात के अतिरिक्त दूसरे मौसम में इस नदी में कई जगहों पर उपलब्ध पानी की गहराई एक मीटर से भी कम रही है। सर्वेक्षण एजेंसी को नौवहन के लिए आवश्यक 2.5 मीटर की गहराई तो कहीं नहीं मिली।

गंडक नदी में अच्छी खासी जैव विविधता पाई जाती है। यह नदी रिवर डॉल्फिन, हॉगडियर के साथ-साथ 50 प्रजाति की मछलियां और 40 प्रजाति की पक्षियों का आशियाना भी है।
गंडक नदी में अच्छी खासी जैव विविधता पाई जाती है। यह नदी रिवर डॉल्फिन, हॉगडियर के साथ-साथ 50 प्रजाति की मछलियां और 40 प्रजाति की पक्षियों का आशियाना भी है। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

उत्तर बिहार की नदियों पर विशद अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं- गंडक नदी अपनी धारा बदलती रहती है, इसलिए इसके बीच नौवहन कितना आसान होगा यह देखने वाली बात होगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस पूरा रास्ते में कितने और किस आकार के पुल हैं, और उसके बीच से मालवाहक जहाज गुजर पायेंगे या नहीं यह भी देखने वाली बात होगी। दिनेश मिश्र कहते हैं कि सोनपुर से काठमांडू तक जहाज ले जाने वाली बात उन्हें समझ नहीं आ रही, क्योंकि काठमांडु तक पहुंचने के लिए गंडक के बदले बागमती से होकर जाना होगा। क्योंकि काठमांडू बागमती के किनारे है। वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि गंडक नदी की गहराई काफी कम है, यह भी नौवहन के लिए देखने वाली बात होगी।

कम गहराई वाली इस नदी में जहाज चलाने के खतरों के बारे में सचेत करते हुए विकास सिन्हा भी कहते हैं किगंडक नदी का प्राकृतिक स्वरुप ऐसा है कि इसके अधिकतर भाग में इसकी चौड़ाई अधिक और गहराई कम है जिस कारण बिना ड्रेजिंग किए जहाजों का परिचालन संभव नहीं होगा। इस परियोजना के रिपोर्ट का अनुसार नदी से करीब 140 लाख घन मीटर ड्रेजिंग की जरूरत होगी। नदी की धार पतली एवं गहरी होगी। ड्रेजिंग से नदी के धारा के बीच में स्थित बालू के टीले समाप्त हो जाएंगे। पक्षी, कछुए, घड़ियाल, मगरमच्छ आदि जीव सबसे ज्यादा इन्हीं टीलों के इस्तेमाल करते हैं। नदी के पानी का पार्श्विक विस्तार कम होने से नदी का जुड़ाव इसके आस-पास के वेटलैंड से समाप्त हो जाएगा जिससे मछलियों के प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिसका सीधा असर गंडक में मछलियों की उपलब्धता पर पड़ेगा। इसका प्रभाव मछली पर आश्रित जलीय जीवों जैसे घड़ियाल, डॉल्फिन के साथ ही साथ मछुआरों की आजीविका पर भी पड़ेगा। ड्रेजिंग के कारण मछलियों पर पारिस्थितकीय तनाव के कारण भी इन पर कई प्रकार के दुष्प्रभाव होंगे।


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बैनर तस्वीरः गंडक नदी में रेत के टापू पर आराम करता एक घड़ियाल। नदी में घड़ियाल संरक्षण की कोशिशें चल रही हैं। वर्ष 2018 में नदी में 211 घड़ियाल पाए गए, जो कि एक समय में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके थे। तस्वीर- समीर कुमार सिन्हा

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