- घड़ियालों, सोसों और कई दुर्लभ, संकटग्रस्त एवं अतिसंकटग्रस्त जीव का बसेरा है बिहार में बहने वाली गंडक नदी।
- नेपाल को जलमार्ग उपलब्ध कराने के लिए इस नदी को जलमार्ग के रूप में विकसित करने पर चल रहा है काम।
- विशेषज्ञों का मानना है कि जलमार्ग परियोजना से इस विलक्षण और अछूती नदी की जैव विविधता को खतरा हो सकता है।
बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग के केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनसुख मांडविया ने 18 मार्च, 2021 को लोकसभा में यह जानकारी दी थी कि बिहार के सारण जिले के कालू घाट में गंडक नदी पर एक शिपिंग टर्मिनल बनाया जा रहा है। उन्होंने भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी के सवालों के जवाब में यह भी कहा कि कालू घाट पर 2.5 मीटर का एक शिपिंग ड्राफ्ट भी मौजूद है, वहां से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक मझोले आकार के मालवाहक जहाज चला करेंगे। इस बयान के साथ केंद्र सरकार ने एक तरह से एक बार फिर इस बात पर मुहर लगायी है कि वह गंडक नदी में मझोले आकार के जहाज चलाने की तैयारी कर रही है और वे जहाज नेपाल के काठमांडू तक जायेंगे।
गंडक नदी पर नौवहन की यह तैयारी नयी नहीं है। केंद्र सरकार इससे गंगा की तरह ही एक नौवहन मार्ग में बदलने की बात करती रही है। यह प्रस्तावित राष्ट्रीय जलमार्ग 37 है, जो अंतरराष्ट्रीय महत्व का है, क्योंकि इससे भारत के साथ-साथ नेपाल के भी हित जुड़े हैं। वह नेपाल जो एक लैंड लॉक देश है और जिसे अब तक समुद्री तट से अपने माल को लाने के लिए कोई बेहतर रास्ता नहीं मिला है। इस जलमार्ग के बनने से बंगाल की खाड़ी से राष्ट्रीय जलमार्ग एक होते हुए उसके जहाज गंडक नदी के जरिये नेपाल की राजधानी काठमांडू तक जा सकते हैं।
हालांकि इस जलमार्ग का डीपीआर (डीटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) 2016 में ही तैयार हो गया था, मगर अब तक लोगों को लग रहा था कि गंडक नदी के छिछलेपन और इसकी खास किस्म की जैव विविधता को देखते हुए शायद ही इस जलमार्ग पर काम शुरू किया जायेगा। मगर केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया के इस बयान के बाद लोगों का यह भ्रम दूर हो गया और यह समझ में आ गया कि सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर गंभीर है। इसके बाद गंडक नदी की जैव विविधता को लेकर चिंतित रहने वाले और उसके लिए काम करने वाले पर्यावरण संरक्षकों की चिंता बढ़ गयी है।
ऐसे ही एक जानकार समीर सिंहा हैं जो इस नदी में मौजूद घड़ियालों के संरक्षण के लिए लंबे समय से काम कर रहे हैं। कहते हैं किगंडक नदी एवं इसके दियारा क्षेत्र में कई प्रकार के संकटग्रस्त एवं अतिसंकटग्रस्त जीव पाए जाते हैं। इनमें घड़ियाल, गांगेय डॉल्फिन या सोंस, मगरमच्छ, कछुओं तथा पक्षियों की प्रजातियां प्रमुख हैं। यह नदी घड़ियाल की जनसंख्या के मामले में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से बहने वाली चंबल नदी के बाद दूसरे स्थान पर है। वर्तमान में इसमें 250 से अधिक घड़ियाल पाए जाते हैं, जो वैश्विक जनसंख्या का 13% है। इस प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ(आईयूसीएन) के द्वारा अति-संकटग्रस्त जीव का दर्जा दिया गया है। गंडक नदी उन छ: नदियों में से एक है जहां वर्तमान में घड़ियाल का प्रजनन दर्ज किया गया है।
2018-19 में किये गये सर्वे का अनुसार इस नदी में रिवर डॉल्फिन की संख्या 100 से अधिक है। गंडक के दियारा क्षेत्र में ऊंचे-ऊंचे घास के मैदानों में हॉगडियर (हिरण की एक प्रजाति) अच्छी संख्या में पाए जाते हैं। यह भी एक संकटग्रस्त प्रजाति है। इन घास के मैदानों का इस्तेमाल एक-सींग वाले गैंडे एवं बाघ भी करते हैं। इसके अलावेगंडक नदी में करीब 40 प्रजाति के पक्षी भी पाए जाते हैं।गंडक में महासीर एवं गुंच (स्थानीय लोग इसे गोछटा के नाम से जानते हैं) जैसी संकटग्रस्त मछलियों समेत 50 से अधिक मछलियों की प्रजातियांपाई जाती हैं।
नेपाल से बिहार के वाल्मिकीनगर के पास भारत में प्रवेश करने वाली इस गंडक नदी की भारतीय सीमा में कुल लंबाई 297 किमी है। यह ज्यादातर बिहार के इलाके में बहती है और सारण जिले के सोनपुर के पास गंगा नदी में समा जाती है। अब तक यह एक शांत और निर्मल नदी रही है। इसके किनारों पर कहीं कोई औद्योगिक परिसर नहीं है, जिस वजह से यह नदी काफी हद तक प्रदूषण मुक्त मानी जाती रही है। बाढ़ से बचाव और सिंचाई के मकसद से इस नदी पर वाल्मिकीनगर में एक बराज जरूर बना है और इसके किनारे तटबंध भी बने हैं। इसके अलावा यह नदी अमूमन मानवीय छेड़छाड़ से मुक्त रही है।
समीर सिंहा कहते हैं कि नेशनल वाटर वेज 37 के संचालन के लिए गंडक नदी के किनारों एवं धारों में गहन छेड़-छाड़ होगी। वाटर वेज के संचालन के लिए छह और टर्मिनल प्रस्तावित हैं, जिनके निर्माण से नदी के किनारों का प्राकृतिक स्वरूप प्रभावित होगा तथा साथ ही साथ मानवीय क्रिया-कलाप बढ़ेंगे जिसका सीधा प्रभाव नदी जल की गुणवत्ता पर पड़ेगा। घड़ियाल और पक्षी सरीखे जीव इन गतिविधियों के कारण उन स्थानों को छोड़ देंगे। जलीय जीवों के लिए उपलब्ध बसेरे में निश्चित तौर पर कमी आएगी।
समीर सिंहा की चिंता इसलिए वाजिब लगती है, क्योंकि उन लोगों ने बिहार के संजय गांधी जैविक उद्यान की मदद से इस पौराणिक नदी में घड़ियालों को बसाने के लिए बड़ी मेहनत की है। इस नदी के साथ गज और ग्राह की पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है। इस कथा के अनुसार यह लड़ाई वाल्मिकीनगर से चलकर सोनपुर में खत्म होती है और फिर वहां दो हजार साल से अधिक समय से एक महीने तक चलने वाला एशिया का सबसे बड़ा पशुमेला लगता है। इसलिए इस नदी में ग्राह यानी मगरमच्छ की प्रजातियों का बड़ा महत्व है। जाहिर सी बात है कि अगर टर्मिनल और जलमार्ग का निर्माण हुआ और इस नदी पर जहाजों का परिचालन शुरू हुआ तो इस अनूठी नदी की जैव विविधता का बड़ा नुकसान होगा।