- मध्य प्रदेश में गांधी सागर बांध का पानी साल के ज्यादातर समय खेतों को डुबा कर रखता है। इस वजह से सिर्फ मार्च से जून के बीच ही खेती हो पाती है।
- इससे निपटने के लिए किसान खरबूजे की खेती करते हैं। यह फसल गर्मी के समय में फलती-फूलती है और बीज की बिक्री से अच्छी आमदनी होती है।
- स्थानीय अधिकारी और जानकार परिवहन पर खर्च को कम करने और खरबूजे के बीजों से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए क्षेत्र में प्रसंस्करण इकाई लगाने पर विचार कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के नीमच जिले के गांव देवरान की मंजूबाई राठौर (42) गांव के ही एक व्यक्ति के खेत पर दिहाड़ी मजदूरी करती हैं। उनका काम गर्मियों के महीनों तक ही सीमित है, जब वह खरबूजे की फसल काटती हैं और उनके बीज निकालती हैं। वह जिस जगह काम कर रही हैं, उससे करीब आधा किलोमीटर दूर उनका खेत है, जो आधा हेक्टेयर या दो बीघा में फैला हुआ है। लेकिन जब वह उस दिशा में इशारा करती हैं, तो सिर्फ पानी ही पानी दिखाई देता है।
राठौर कहती हैं, “मेरी जमीन को डूबे हुए दो साल हो गए हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि अगले साल पानी कम हो जाएगा और मैं अपने खेत में खरबूजा उगा पाऊंगी।” उन्हें उम्मीद है कि एक ही फसल से पिछले कुछ सालों में हुए नुकसान की भरपाई हो जाएगी।
राठौर और उन्हें काम देने वाले 63 साल के नेमीचंद पाटीदार अपने गांव और जिले के 20 उन लोगों में शामिल हैं, जिनकी खेती हर मानसून में गांव से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित गांधीसागर बांध के पानी से डूब जाती है। ये जमीनें साल में सिर्फ चार महीने ही खेती योग्य होती हैं।
हालांकि, किसानों ने गर्मी के इन महीनों का फायदा उठाने और खरबूजे की खेती करके अच्छी कमाई करने का तरीका निकाल लिया है। यह खेती फल के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ बीज के लिए की जाती है। बीज बेचे जाते हैं, जबकि फल खेत में ही छोड़ दिए जाते हैं, जो प्राकृतिक खाद का काम करते हैं।
डूबी हुई जमीन का फायदा उठाना
गांधीसागर बांध का निर्माण साल 1960 में राजस्थान के कई जिलों को पीने का पानी उपलब्ध कराने और 115 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए मध्य प्रदेश में चंबल नदी पर किया गया था।
नीमच जिले के रामपुर ब्लॉक के ज्यादातर गांवों की जमीनें बांध निर्माण की वजह से किसी न किसी रूप में प्रभावित हुई हैं। नेमीचंद कहते हैं, “मेरे पिता को न्यूनतम मुआवजा मिला था, क्योंकि हमारी जमीन सिर्फ मानसून के बाद ही प्रभावित हुई थी।” “लेकिन जमीन का क्या करें, यह समझ में नहीं आने की वजह से कई लोग काम की तलाश में बाहर चले गए या दूसरे कामों की खोज में लग गए।”
मानसून आने के बाद से जनवरी की शुरुआत तक ये खेत पानी में डूबे रहते हैं। जब फरवरी के आखिर में पानी कम हो जाता है, तो खेती संभव हो पाती है। यह जमीन मानसून से ठीक पहले मार्च और जून के बीच खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।
नीमच के बागवानी विभाग के उप निदेशक अतरसिंह कन्नोजी कहते हैं, “चूंकि ज्यादातर लोगों के लिए ये चार महीने ही खेती और कमाने के महीने थे, इसलिए वे सबसे ज्यादा लाभदायक फसलों की तलाश में थे।”
“हाल के दिनों में खरबूजे के बीज औषधीय इस्तेमाल, भोजन और अन्य क्षेत्रों में लोकप्रिय हुए हैं। कई अन्य फसलों में अपना हाथ आजमाने के बाद गांव के लोग पिछले 10 सालों से खरबूजा उगा रहे हैं।”
इन बीजों से बहुत ज्यादा फ़ायदा मिलने की संभावना है। एक बीघा जमीन (0.6 हेक्टेयर) में बुवाई के लिए दो किलो बीज की जरूरत होती है, जिससे डेढ़ से दो क्विंटल तक खरबूजे के बीज मिल सकते हैं जिन्हें बेचा जा सकता है।
इस साल सबसे अच्छी क्वालिटी के बीज 35 हजार रुपए क्विंटल बिके।
ग्रामीणों का दावा है कि खरबूजे की खेती की शुरुआत संयोग से हुई। उन्हें याद है कि करीब 15 साल पहले उत्तर प्रदेश से कुछ लोग उनके इलाके में आए और उन्होंने खरबूजे की खेती के लिए जमीन लीज पर ली। गांव के लोगों ने शुरुआत में मजदूरी की और खेती में मदद की। हालांकि, समय के साथ उन्होंने खुद ही खरबूजे की खेती शुरू कर दी और इतनी कमाई करने लगे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
52 साल के किसान बालचंद पाटीदार कहते हैं, “हम पूरी तरह से मानसून पर निर्भर हैं।” “जैसे ही पानी कम हो जाता है और जमीन खेती के लिए उपयुक्त हो जाती है, हम बीज बोने के लिए मिट्टी की नमी का इस्तेमाल करते हैं। मिट्टी की नमी फूल आने के चरण तक पहुंचने के लिए पर्याप्त होती है। फूल आने के चरण में, हमें एक बार खेतों की सिंचाई करनी पड़ती है। फल लगने के बाद, हमें कटाई और बीज निकालने के लिए अतिरिक्त लोगों की जरूरत होती है। यह समय लेने वाला नहीं है और इसके लिए लगातार ध्यान देने की जरूरत भी नहीं होती है।”
उन्होंने आगे बताया कि वे जो दूसरी फसलें उगाते थे, उनमें समय लगता था और उनसे उम्मीदों के हिसाब से आमदनी भी नहीं होती थी। पहले लोग सूरजमुखी, गेहूं, तिल की खेती करते थे, लेकिन किसी भी फसल से खरबूजे जैसा फायदा नहीं मिलता था।
खरबूजे के बीज से मिलती वित्तीय सुरक्षा
नेमीचंद के पास अपने गांव में करीब पांच हेक्टेयर जमीन है। खरबूजे की फसल और उसके बीजों की बिक्री से उन्हें इस साल करीब साढ़े तेरह लाख रुपए की आमदनी होने की उम्मीद है। इस साल उनकी अनुमानित उपज 40 क्विंटल है।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले और जिला कृषि विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी नेमीचंद अपनी जमीन पर कोई दूसरी फसल उगाने के लिए तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं, “औसतन, मैं बीज बोने से लेकर बीज बेचने तक चार से पांच लाख रुपए खर्च करता हूं।” “फिर भी लगभग नौ लाख रुपए का मुनाफा हो जाता है। मैं और कहां से इतने लाभ की उम्मीद कर सकता हूं?”
साल 2019 में इस क्षेत्र में आई बाढ़ के दौरान गांव बुरी तरह प्रभावित हुआ था। निवासियों को हर साल बाढ़ का डर सताता रहता है। 53 साल के किसान पप्पू पाटीदार कहते हैं, “हम हमेशा इस डर में रहते हैं कि ना सिर्फ हमारे खेत, बल्कि एक दिन हमारे घर भी बह जाएंगे।” “खरबूजे की खेती से हमें जो आमदनी होती है, वह हमारे सुरक्षित भविष्य के लिए सावधि जमा की तरह काम करती है। हमारे सालाना खर्च सोयाबीन या गेहूं की सालाना फसल से पूरे होते हैं, जिसे हम अपनी जमीन के उस छोटे से टुकड़े पर उगाते हैं, जो मानसून के दौरान प्रभावित नहीं होती है।”
पाटीदार के पास आधे हेक्टेयर (0.66 हेक्टेयर) से थोड़ी ज़्यादा ज़मीन है जो डूब क्षेत्र में आती है और साल के ज्यादातर समय डूबी रहती है। उन्हें इस साल खरबूजे के बीजों की बिक्री से ढाई लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी होने की उम्मीद है।
बागवानी विभाग के कन्नोजी के अनुसार, जिले में 735 हेक्टेयर भूमि पर खरबूजे की खेती की जा रही है। इस साल मई के आखिर तक कुल 11,062 मीट्रिक टन खरबूजे के बीज निकाले गए थे और वे बिक्री के लिए तैयार हैं।
बीज खेत में ही फलों से निकाल लिए जाते हैं, जबकि गूदे को आमतौर पर खेत के लिए प्राकृतिक खाद के रूप में छोड़ दिया जाता है।
निकाले गए बीजों को पानी में भिगोया जाता है, जिसे आमतौर पर अलग-अलग खेतों में बनाए गए गड्ढों में संग्रहित किया जाता है। भिगोने की इस प्रक्रिया से बीज हल्के हो जाते हैं, जिन्हें फिर धूप में सुखाया जाता है और मंडी में भेजने के लिए तैयार किया जाता है।
बाजार और सुधार की संभावना
फसल की कटाई के दौरान नीमच का रामपुरा बाजार खरबूजे के बीजों से भर जाता है, जिन्हें बाद में निजी ठेकेदार खरीद लेते हैं। बीजों को यहां से करीब 600 किलोमीटर दूर हाथरस ले जाया जाता है, जहां उन्हें प्रोसेस किया जाता है और फिर बाजार में मगज के नाम से बेचा जाता है।
हालांकि, बीज के स्रोत और बाजार के बीच की दूरी, खरबूजे की खेती से मिलने वाले संभावित फायदे को कम कर देती है।
नीमच स्थित केंद्र प्रायोजित योजना एटीएमए (कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी) के उप परियोजना निदेशक यतिन मेहता कहते हैं, “इसमें अभी भी परिवहन लागत शामिल है, जो उनकी कमाई को कम करती है।” “अगर हमारे यहां प्रसंस्करण इकाई हो, तो यह (कमाई) बहुत ज्यादा हो सकती है, जिस पर उचित रूप से विचार किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि बीजों के अलावा जो गूदा फेंका जाता है, उसका भी मूल्य वर्धित उत्पाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। “हमें अभी इस बारे में कुछ तय करना है।”
हाथरस में कीमत के आधार पर बाजार में भी हर साल मूल्य बदलता रहता है। जावद के नजदीकी ब्लॉक के एक ठेकेदार मकसूद कहते हैं, “हर सुबह, हम प्रोसेसिंग यूनिट को फोन करके कीमत तय करते हैं, जो आमतौर पर बीजों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। हल्के बीज सस्ते दामों पर बिकते हैं।“
हालांकि, इस साल बीज की कीमत 27 हजार से लेकर 35 हजार क्विंटल तक है।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 4 जून 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: मध्य प्रदेश के नीमच जिले के रामपुरा ब्लॉक में खरबूजे से बीज निकालती महिलाएं। तस्वीर – ऐश्वर्या मोहंती।