- भारत में एक सींग वाले गैंडों की तेजी से घटती संख्या के कारण सरकार ने 2005 में संरक्षण कार्यक्रम ‘भारतीय राइनो विजन-2020’ की घोषणा की थी।
- साल 2008 में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य से 22 किशोर गैंडों को मानस राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया ताकि वहां की आबादी को फिर से बढ़ाया जा सके।
- एक नए अध्ययन के मुताबिक, गैंडों को मानस में बसाने का प्रयास सफल रहा है और वहां उनकी आबादी बढ़ी है। अध्ययन में गैंडों की आबादी के भविष्य के अस्तित्व और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कुछ सिफारिशें दी हैं।
गैंडो के संरक्षण के लिए 15 साल पहले असम में शुरू किए गए एक प्रोजेक्ट के अध्ययन से पता चलता है कि गैंडों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर बसाने का प्रयास खासा सफल रहा है। गैंडे अपनी नई जगहों पर खुश हैं और अपने नए वातावरण में ढल गए हैं। अध्ययन के मुताबिक, अगर गैंडों को सही तरीके से स्थानांतरित किया जाए, तो उन्हें बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने में खासी मदद मिल सकती है।
साल 2000 के दशक की शुरुआत में, अवैध शिकार के चलते असम में गैंडों की आबादी तेजी से कम होने लगी थी। इस स्थिति को सुधारने के लिए, राज्य सरकार और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल ने इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन (IRF), वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) और यूनाइटेड स्टेट्स फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस (USFWS) के सहयोग से 2005 में ‘भारतीय राइनो विजन 2020’ नामक कार्यक्रम शुरू किया था। इसका लक्ष्य 2020 तक असम में गैंडों की मौजूदा आबादी को 3000 तक पहुंचाना था। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत भूटान की सीमा से सटे मानस राष्ट्रीय उद्यान में कुल 22 गैंडों को स्थानांतरित किया गया, जिसमें से 10 गैंडे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से और 12 पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य से लाए गए थे।
डब्लु डब्लु एफ इंडिया द्वारा किया गया यह हालिया अध्ययन गैंडों को स्थानांतरित करने के प्रयासों के परिणामों और स्थानांतरित किए गए गैंडों की स्थिति व उनके व्यवहार का पता लगाता है।
‘मानस राष्ट्रीय उद्यान’ एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जिसे 1928 में अभयारण्य घोषित किया गया था। तब से लेकर आज तक इस उद्यान और यहां रहने वाले जानवरों को काफी बदलावों से गुजरना पड़ा है। साल 1990 में मानस के 360 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करते हुए इसे एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया और फिर 2016 में गैंडों के आवास को बढ़ाने के लिए मानस रिजर्व फॉरेस्ट के अतिरिक्त 350 वर्ग किलोमीटर को भी इसी पार्क में शामिल कर लिया गया। पुराने समय में गैंडों के शरीर के कई हिस्सों को ट्रॉफी की तरह घरों में सजाने और उनके शिकार के लिए मारा जाता था और फिर उनके सींगों के लिए उनका अवैध रूप से शिकार किया जाने लगा। यहां आदिवासी लोगों और अन्य समुदायों के बीच सामाजिक-राजनीतिक अशांति हमेशा से बनी रही है और उनके बीच के संघर्षों को रोकने के लिए सेना के अभियानों ने इस क्षेत्र को काफी प्रभावित किया। ये कुछ कारण रहे जिनकी वजह से मानस में गैंडे स्थानीय रूप से खत्म होने की कगार पर आ गए। इन घटनाओं से पहले यहां लगभग 100 गैंडे पाए जाते थे।
एक सींग वाले गैंडों के लिए आदर्श आवास
मानस राष्ट्रीय उद्यान समुद्र तल से लगभग 50 से 250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां के जलोढ़ घास के मैदान, अर्ध-सदाबहार जंगल और नम व शुष्क पर्णपाती जंगल मानस राष्ट्रीय उद्यान को गैंडे के आवास के लिए आदर्श बनाती है। मानस-बेकी नदी प्रणाली से यहां पानी का निरंतर स्रोत बना रहता है, जो गैंडों के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
गुवाहाटी स्थित एक गैर सरकारी संगठन आरण्यक के वरिष्ठ प्रबंधक देबा कुमार दत्ता, पहले डब्लु डब्लु एफ इंडिया के साथ थे और IRV-2020 का हिस्सा भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा, गैंडो को इन इलाकों में स्थांतरित करने का यह प्रोजेक्ट सफल रहा। इसने न सिर्फ मानस में गैंडों की संख्या बढ़ी है, बल्कि यहां विकास भी हुआ है। कई पहल शुरू की गईं, जैसे शिकारियों को रोकने के लिए शिविर बनाना, उद्यान में बुनियादी ढांचा विकसित करना और गैंडों के आवास की सुरक्षा करना। इस प्रोजेक्ट से स्थानीय लोगों के उद्यान और गैंडो के साथ संबंध बेहतर हुए हैं। उन्होंने बताया, “स्थानांतरण के लिए एक संस्थागत दृष्टिकोण अपनाया गया था। परियोजना से पहले, पार्क के अंदर कोई सुविधा नहीं थी और यहां तक कि वनरक्षक भी यहां जाने से कतराते थे। लेकिन, इस परियोजना की शुरुआत के बाद चीजें काफी बदल गईं।”
गैंडों के परिवार (राइनोसेरोटिडे) में एक सींग वाले गैंडे (राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस) की वैश्विक आबादी जून 2022 तक 4023 थी, जिनमें से 81.3% यानी 3,271 गैंडे भारत के राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में रहते हैं। गैंडे के सरंक्षण में WWF के राष्ट्रीय प्रमुख अमित शर्मा ने बताया कि मौजूदा आबादी का फैलाव हालांकि बहुत सीमित है। वे जिन छह संरक्षित क्षेत्रों (PAs) में पाए जाते हैं, वे क्षेत्र एक-दूसरे से काफी अलग हैं जिससे आनुवंशिक आदान-प्रदान की संभावना बहुत कम हो जाती है। और इसी कारण वे विभिन्न पर्यावरणीय घटनाओं के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
आरण्यक के सीईओ बिभब कुमार तालुकदार इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन के वरिष्ठ सलाहकार और एशियन राइनो स्पेशलिस्ट ग्रुप ऑफ आईयूसीएन एसएससी के अध्यक्ष हैं। उनका मानना है कि मानस में गैंडों को स्थानांतरित करना सबसे अच्छा विकल्प था क्योंकि यह असम के अन्य गैंडे-वाले क्षेत्रों से बहुत दूर है। वे कहते हैं, “अन्य क्षेत्रों से मानस में गैंडों का प्राकृतिक प्रसार संभव नहीं है क्योंकि कनेक्टिविटी और मानव बस्तियों की कमी है।” उनके मुताबिक, पोबितोरा और काजीरंगा से गैंडों को स्थानांतरित करना एक बेहतर निर्णय साबित हुआ है।
तालुकदार के अनुसार, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के पश्चिम में लखोवा और बुर्हाचापोरी वन्यजीव अभयारण्य 1980 के दशक में सामाजिक-राजनीतिक अशांति के दौरान अपने सभी गैंडों को खो चुके थे। वहां भी अब IRV-2020 के तहत गैंडों के स्थानांतरण के लिए विचार किया जा रहा है। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे काजीरंगा, बुर्हाचापोरी और ओरंग राष्ट्रीय उद्यान में अतिरिक्त भूमि जोड़ने के असम सरकार के फैसले से संरक्षित क्षेत्र फिर से जुड़ गए, जिससे इनके बीच गैंडे की आवाजाही आसान हो गई। वह कहते हैं, “ऐसा माना जा रहा है कि दिसंबर 2023 से अब तक कम से कम दो गैंडे ओरंग से लखोवा और बुर्हाचापोरी में आए और यहां आकर रहने लगे हैं। संभव है कि आने वाले महीनों में और भी गैंडे भटककर इन अभयारण्य में आएंगे और आवासों का उपयोग प्राकृतिक प्रसार के हिस्से के रूप में करेंगे।” शर्मा को उम्मीद है कि राज्य सरकारों और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) द्वारा अपनाए गए ऐसे सुधारात्मक उपाय गैंडों की आबादी के अलगाव के मुद्दों को दूर करने में मदद करेंगे।
निरंतर निगरानी से मिले परिणाम
इस अध्ययन में 2008 से 2013 तक पांच साल के दौरान रेडियो कॉलरिंग के जरिए 10 स्थानांतरित गैंडों की निगरानी करने के बाद प्रोजेक्ट के कई सकारात्मक परिणाम नोट किए गए। यह पहले दो गैंडों R1 और R2 से शुरू हुआ और धीरे-धीरे निगरानी किए जाने वाले गैंडों की संख्या बढ़ती गई। 2011 और 2021 के बीच स्थानांतरित गैंडों ने 38 बच्चों को जन्म दिया। दत्ता कहते हैं कि उनका व्यवहार जंगली गैंडों की तरह ही है।
शोधकर्ताओं ने शुरूआती 90 दिन की अवधि को अनुकूलन चरण माना, जिसके दौरान गैंडे नए वातावरण में ढलने का प्रयास करते हैं। दत्ता ने बताया कि यहां उनके पिछले आवासों से कुछ अंतर देखा गया। उदाहरण के लिए, पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में गैंडों के लिए सिर्फ 16 वर्ग किलोमीटर का उपयुक्त आवास है। जब उन्हें मानस में स्थानांतरित किया गया, तो उनके रहने के दायरे का विस्तार 268 वर्ग किलोमीटर तक फैल गया।
इस रिपोर्ट में गैंडों की गतिविधियों में स्पष्ट मौसमी बदलावों पर भी प्रकाश डाला गया है, जो मुख्य रूप से भोजन और पानी की उपलब्धता से प्रभावित होते हैं। मानसून और मानसून के पीछे हटने के मौसम में अधिकतम चराई गतिविधि देखी गई, वहीं गैंडे को सर्दियों के मौसम में कम चराई करते हुए पाया गया। शोधकर्ता इसे मुख्य रूप से काजीरंगा और पॉबिटोरा जैसे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की तुलना में मानस में उच्च ऊंचाई और खाने योग्य घास की अधिकता के कारण मानते हैं। इसमें गैंडों के बीच लगातार प्रेमालाप और संबंध बनाने की रिपोर्ट भी है। जिसके चलते गैंडों ने 38 बच्चों को जन्म दिया और मानस में गैंडों की आबादी बढ़कर 50 हो गई है।
जंगल से जंगल में स्थानांतरण, एक उम्मीद
यह पेपर मानस में नए बसाए गए गैंडों की आबादी के भविष्य के अस्तित्व और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदमों की सिफारिश करता है, जिनमें आनुवंशिक विविधता बनाए रखने और अंतःप्रजनन को रोकने के लिए आनुवंशिक प्रबंधन योजनाओं को लागू करना, गैंडों को रहने के लिए उपयुक्त आवासों को बहाल करने के लिए स्थायी आवास प्रबंधन तरीके और उन्हें संभावित स्वास्थ्य खतरों से बचाने के लिए एक मजबूत रोग निगरानी प्रणाली बनाना शामिल है।
तालुकदार बताते हैं कि असम वन विभाग और असम पुलिस, शिकार को कम करने और इस प्रजाति की सुरक्षा के मामले में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, वे हमेशा चौकस रहते हैं। उनका सुझाव है कि हमें घास के मैदानों और आर्द्रभूमि के आवासों के पुनर्स्थापन पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है। यह गैंडे की आबादी और IRV-2020 जैसे कार्यक्रमों की सफलता को बनाए रखने के लिए जरूरी है। वह कहते हैं, “अगर हम असम में गैंडे के संरक्षण में हासिल की गई सफलताओं को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें गैंडे के रहने के स्थानों का प्रबंधन बहुत ध्यान से करना होगा। सही ढंग से प्रबंधन करने के लिए, सरकार को इन क्षेत्रों को समय पर फंड जारी करना होगा।”
और पढ़ेंः [वीडियो] छत्तीसगढ़: करोड़ों के खर्च, क्लोनिंग के बाद भी नहीं हो पा रहा वनभैंस का संरक्षण
शर्मा ने भारत में गैंडे की आबादी के लिए महत्वपूर्ण घास के मैदानों और आर्द्रभूमि के क्षरण को लेकर चिंता जाहिर की। उन्होंने MoEFCC की ओर से चलाए जा रहे RhoDIS India कार्यक्रम की ओर इशारा किया, जो आबादी के वैज्ञानिक प्रबंधन और प्रजातियों के खिलाफ होने वाले अपराधों का मुकाबला करने में मदद करने के लिए एक डीएनए डेटाबेस बना रहा है। स्थानीय समुदाय के लिए आजीविका के साधन के रूप में भी राष्ट्रीय उद्यान में स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इससे स्थानीय समुदायों को गैंडे के संरक्षण को और अधिक गंभीरता से लेने की उम्मीद है। दत्ता ने प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्व और स्वास्थ्य के लिए भारत और भूटान के बीच सीमा पार सहयोग के महत्व पर जोर दिया। शर्मा इस प्रजाति के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को पहचानते हुए, गैंडे के संरक्षण के लिए एक समर्पित योजना और पर्याप्त धनराशि की जरूरत की बात करते हैं। उनके मुताबिक, ये एक खतरे वाली प्रजाति हैं और उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रयास करने होंगे।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 26 मार्च 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: नेशनल पार्क में एक जलाशय में खुद को ठंडा करते हुए बड़े एक सींग वाले गैंडा। इस क्षेत्र को विभिन्न पारिस्थितिक कारणों से गैंडे के लिए आदर्श आवास माना गया है। तस्वीर: देबा कुमार दत्ता/ WWF