- बादलदार तेंदुए (क्लाउडेड लेपर्ड) का इलाका नेपाल, भूटान और भारत में हिमालय से लेकर दक्षिणी चीन और प्रायद्वीपीय मलेशिया तक फैला हुआ है। हालांकि, कई तरह के खतरों से मेनलैंड एशिया में इसकी आबादी तेजी से घट रही है।
- एक नए अध्ययन में प्रजातियों के लिए उपयुक्त आवास, आवास का बंट जाना और ऐतिहासिक तथा उनकी मौजूदा सीमाओं में जुड़ाव को समझने में अहम कमियों को दूर किया गया है। साथ ही, संरक्षण के लिए रोडमैप प्रस्तुत किया गया है।
- यह सीमा के आर-पार वन्यजीव गलियारों की अहमियत पर भी जोर देता है। ये गलियारे इन जीवों के अलग-अलग आवास को जोड़ते हैं। संभोग और आवाजाही के जरिए आनुवंशिक विविधता बनी रहती है। अध्ययन में प्रजातियों के अस्तित्व के लिए सीमा के आर-पार 18 अहम वन्यजीव गलियारों की पहचान की गई है।
एशिया के कुछ प्राचीन जंगलों में एक मुश्किल से नजर आने वाला और रहस्यमयी शिकारी घूमता है। इसका नाम है बादलदार तेंदुआ (नियोफेलिस नेबुलोसा)। अपने आकर्षक, बादल के आकार के फर के पैटर्न के लिए पहचानी जाने वाली यह प्रजाति एशिया के बड़े क्षेत्र में रहती है।
हालांकि, मेनलैंड एशिया में इसकी आबादी तेजी से घट रही है। इस प्रजाति पर कई खतरे हैं। इनमें आवास का खत्म होना, शिकार और अन्य जानवरों के लिए बनाए गए जाल से होने वाली मौत। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कन्जर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की ओर से इस प्रजाति को ‘संकटग्रस्त’ बताया गया है।
बोडोलैंड विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग में वन्यजीव जीवविज्ञानी और पीएचडी स्कॉलर इमोन अबेदिन कहते हैं, “आईयूसीएन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से आवास की उपयुक्तता और खराब होने की आशंका है, जिससे मौजूदा और ऐतिहासिक सीमा में 41% तक आवास खत्म हो सकते हैं। इससे आवास के बंट जाने में बढ़ोतरी की आशंका है, जिससे आने वाले समय में आवास वाली व्यावहारिक जगहें (जगहों की संख्या) में 23.29% तक की अनुमानित कमी हो सकती है।”
अबेदिन और चार अन्य शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अध्ययन किया। इसक उद्देश्य प्रजातियों के आवास की उपयुक्तता, आवास के बंट जाने और ऐतिहासिक तथा मौजूदा सीमाओं में उनके जुड़ाव को समझने में अहम कमियों को दूर करना था, ताकि संरक्षण के लिए रोडमैप तैयार किया जा सके।
भूमि से घिरा हुआ
बादलदार तेंदुए का क्षेत्र नेपाल, भूटान और भारत में हिमालय तक फैला हुआ है। यह दक्षिण चीन से होते हुए प्रायद्वीपीय मलेशिया तक जाता है। हालांकि, ताइवान में यह प्रजाति विलुप्त हो चुकी है और वियतनाम, चीन और बांग्लादेश में इस प्रजाति की आबादी बहुत कम है। इन देशों में यह लगभग खत्म होने वाली है। इसके अलावा नेपाल, भूटान, भारत, मलेशिया और थाईलैंड सहित रेंज वाले अन्य देशों में आबादी के रुझान के दस्तावेजीकरण में कई तरह की कमियां हैं।
इससे सामने आने वाले खतरों को देखते हुए, IUCN ने बार-बार बादलदार तेंदुए की रेंज में बदलाव किया है। इसे चार अलग-अलग स्थितियों में वर्गीकृत किया है: मौजूदा (ऐसे क्षेत्र जहां प्रजाति के होने के बारे में पता है या मौजूद होने की संभावना है), शायद मौजूद (जहां होने की बात अनिश्चित है), शायद विलुप्त और विलुप्त। मौजूदा सीमा में भूटान, पूर्वोत्तर भारत, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस और मलय प्रायद्वीप का ज्यादातर हिस्सा शामिल है। वहीं, नेपाल और दक्षिणी बांग्लादेश में छोटी, बिखरी हुई आबादी है। इसके विपरीत, सबसे बड़ी ऐतिहासिक सीमा को शामिल करने के बावजूद चीन अब मौजूदा सीमा का हिस्सा नहीं है। इसी तरह, वियतनाम ‘विलुप्त‘ और ‘शायद विलुप्त‘ वाली श्रेणी में आता है।
प्रजाति के वितरण और आवास की व्यवहार्यता को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों और तरीकों का इस्तेमाल किया। उनके अध्ययन में बादलदार तेंदुए के होने की 159 जगहों से डेटा का विश्लेषण किया गया। नौ क्षेत्र की यात्राओं के दौरान शामिल किए गए और बाकी वैश्विक जैव विविधता डेटाबेस से। इन जगहों का मूल्यांकन पर्यावरण से जुड़े कारकों जैसे कि वन प्रकार, ऊंचाई, जलवायु और शहरीकरण और खेती जैसी मानवीय गतिविधियों के साथ किया गया, ताकि आवास के उपयुक्त होने का आकलन किया जा सके।
मैक्सएंट और रैंडम फॉरेस्ट सहित कई एल्गोरिदम को शामिल करते हुए प्रजाति वितरण मॉडल (एसडीएम) का इस्तेमाल मौजूदा और आने वाले समय के जलवायु परिदृश्यों के तहत उपयुक्त आवासों का मानचित्र बनाने के लिए किया गया था। दो जलवायु परिदृश्यों – सामान्य (SSP245) और ज्यादा उत्सर्जन (SSP585) – ने यह अनुमान लगाने में मदद की कि 21वीं सदी के मध्य और आखिर तक तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव आवासों को किस तरह प्रभावित कर सकते हैं। संरक्षित क्षेत्रों और संभावित आवासों के साथ फील्ड डेटा को क्रॉस-रेफरेंस करने से बादलदार तेंदुए की आवास जरूरतों और संभावित खतरों के बारे में जानकारी मिली।

घटता आवास
ये नतीजे चिंताजनक हैं। मॉडल से पता चलता है कि सिर्फ 44,033 वर्ग किलोमीटर या कुल आवास का 31.66% ही मौजूदा सीमा में आता है। अतिरिक्त 20,034 वर्ग किलोमीटर (8.13%) संभावित मौजूदा सीमा में आता है। उल्लेखनीय रूप से कुल 25,614 वर्ग किलोमीटर उपयुक्त आवास पूरे सीमा में तय संरक्षित क्षेत्रों में पाया जाता है।
हालांकि, इन संरक्षित क्षेत्रों को भी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बढ़ते तापमान और बारिश के बदलते पैटर्न से जलवायु परिवर्तन लगातार आवास की व्यवहार्यता को कमजोर कर रहा है। वनों की कटाई और शिकार की कमी जैसे दबाव प्रजातियों के अस्तित्व के लिए खतरा और बढ़ा देते हैं।
इन चुनौतियों के बावजूद, कुछ उम्मीदें भी है। मॉडल ने ऐतिहासिक सीमाओं के भीतर संभावित रूप से “शायद विलुप्त” श्रेणी में 15,264 वर्ग किलोमीटर (6.58%) और “विलुप्त” श्रेणी में 14,022 वर्ग किलोमीटर (2.38%) उपयुक्त आवास की पहचान की।
अबेदिन कहते हैं, “हालांकि इन क्षेत्रों में हाल ही में इन प्रजातियों को नहीं देखा गया है। फिर भी, वे पारिस्थितिकी के लिए अपनी उपयोगिता और उपयुक्त परिस्थितियों को बनाए रख सकते हैं। इन क्षेत्रों को उनकी क्षमता का आकलन करने के लिए क्षेत्र सत्यापन के मकसद से प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अगर उपयुक्त होने की पुष्टि की जाती है, तो वे प्रजातियों को फिर से वहां लाने या पुनर्वास की कोशिशों के लिए अहम जगह के रूप में काम कर सकते हैं। इससे प्रजातियों की सीमा का विस्तार करने और लंबी अवधि में उन्हें बचाए रखने का अवसर मिल सकता है।”
वन्यजीव गलियारों की भूमिका
अध्ययन में सीमा के आर-पार वन्यजीव गलियारों के महत्व पर भी जोर दिया गया है। ये गलियारे अलग-अलग आवासों को जोड़ते हैं और संभोग और आवाजाही के जरिए आनुवंशिक विविधता पक्की करते हैं। इस उद्देश्य के लिए, इसने प्रजातियों के अस्तित्व के लिए सीमा के आर-पार 18 अहम वन्यजीव गलियारों की पहचान की गई है। हालांकि, इन गलियारों पर भी तेजी से खतरा बढ़ रहा है।
कोरिया गणराज्य के बुसान में पुक्योंग राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के समुद्री जीवन विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता हये-यून कांग कहते हैं, “जैसे-जैसे आवासों का बंटना तेज होता जाता है, उपयुक्त क्षेत्र ज्यादा अलग-अलग और दूर-दूर हो जाते हैं। इससे उनके बीच संपर्क कम हो जाता है। यह अहम है, क्योंकि प्रजाति के क्षेत्रों के बीच आवाजाही करने में दिक्कत के गंभीर नतीजे हो सकते हैं। जैसे कि आनुवंशिक विविधता में कमी, जो आखिरकार इनब्रीडिंग को जन्म दे सकती है।” कांग इस अध्ययन का हिस्सा भी थे।
अध्ययन के अनुसार, आने वाले समय में दक्षिण-पूर्व एशिया में आवास संपर्क में सबसे तेज गिरावट का अनुभव होने का अनुमान है। इससे स्थानीय आबादी की व्यवहार्यता खतरे में पड़ सकती है। इसके विपरीत भूटान, नेपाल और भारत जैसे क्षेत्रों में अपेक्षाकृत उच्च स्तर का जुड़ाव बरकरार रहने की उम्मीद है। खास तौर पर भूटान और भारत में। साथ ही, नेपाल और भारत को जोड़ने वाले गलियारे अहम हैं, जहां व्यापक वन आवरण बादलदार तेंदुए की आवाजाही और अस्तित्व में बहुत मदद करता है।

संरक्षण का रास्ता
अध्ययन में बादलदार तेंदुए की सुरक्षा के लिए तुरंत सीमा पार सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया है। यह सहयोग खासकर उन क्षेत्रों में बढ़ाने पर जोर है जहां आवास और गलियारे अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हैं। पुक्योंग नेशनल यूनिवर्सिटी के समुद्री जीवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर शांतनु कुंडू कहते हैं, “पड़ोसी देशों के बीच संरक्षण की मिली-जुली कोशिशें जरूरी हैं। इस रणनीति का एक अहम तत्व प्रजाति के वितरण के भीतर संरक्षित क्षेत्रों (पीए) के नेटवर्क का विस्तार करना है।” कुंडु एक अन्य अध्ययन के लेखक हैं।
बड़ी रणनीतियों में प्रजाति के प्रबंधन के लिए व्यापक योजना बनाना, गलियारे की कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए सीमा पार निगरानी, उपयुक्त आवासों का व्यापक जमीनी आकलन और मजबूत जन जागरूकता अभियान शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा, प्रजातियों की सीमा में फाइलोज्योग्राफिक अध्ययन करना आनुवंशिक विविधता को समझने के लिए अहम है। ये अध्ययन प्रजनन कार्यक्रमों के लिए उपयुक्त खास आबादी की पहचान करने में मदद करेंगे, जिससे आनुवंशिक विविधता बढ़ेगी और आबादी की व्यवहार्यता पक्की होगी।
इस तरह की कोशिश खास तौर पर प्रजाति को फिर से बसाने के कार्यक्रमों के लिए महत्वपूर्ण है। इनका उद्देश्य प्रजाति के जीन पूल का विस्तार करना और आने वाले खतरों से पार पाने की इसकी क्षमता को मजबूत करना है। अध्ययन के लेखक और बोडोलैंड विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग के प्रमुख हिलोलज्योति सिंहा और कहते हैं, “फिर से बसाने या किसी दूसरी जगह ले जाने से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम शुरू करने से पहले जमीनी स्थितियों की जांच जरूरी है।” “आबादी को बनाए रखने के लिए इन क्षेत्रों की असल क्षमता का आकलन करने के लिए पारिस्थितिक क्षेत्र के व्यापक अध्ययन की जरूरत है।”
क्यों है अहमियत
बादलदार तेंदुए एशिया के वन पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत और स्थिरता को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी हैं। बड़ा शिकारी होने के नाते यह गिब्बन, मैकाक, छोटे हिरण और जंगली सूअर जैसे वन्यजीवों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन पक्का होता है।
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शोधकर्ताओं के अनुसार, इस उद्देश्य को पाने के लिए बादलदार तेंदुए को मुख्य प्रजाति के रूप में नामित करने से सार्वजनिक और सरकारी मदद हासिल होगी। इससे संरक्षण की कोशिशों को और बढ़ावा मिल सकता है। कुंडू कहते हैं, “मुख्य प्रजाति के तौर पर यह सबसे बड़ी प्रजाति के रूप में काम करेगी। साथ ही, अपने आवास को साझा करने वाली मिलती-जुलती प्रजातियों की रक्षा करते हुए, अपनी तरफ ज्यादा ध्यान और संसाधनों को आकर्षित करेगा।” यह दृष्टिकोण अन्य संरक्षण कार्यक्रमों में असरदार रहा है जहां बाघ, गैंडे और यहां तक कि हाथी जैसी मुख्य प्रजातियों ने पारिस्थितिकी तंत्र को व्यापक फायदा पहुंचाया है। उन्होंने कहा, “सदाबहार वन पारिस्थितिकी तंत्र में एक मुख्य प्रजाति की तत्काल जरूरत को देखते हुए, बादलदार तेंदुआ इस भूमिका के लिए उपयुक्त है। यह संभावित रूप से संरक्षण पहलों को बढ़ाता है जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और इससे जुड़ी प्रजातियों को लाभ पहुंचाता है।”
बादलदार तेंदुए की सुरक्षा करना कोई असंभव काम नहीं है। भारत-नेपाल तराई वाले लैंडस्केप और भूटान-भारत मानस टाइगर रिजर्व जैसी सफलता की कहानियां सहयोगात्मक संरक्षण के जरिए बदलाव लाने की शक्ति को दिखाती हैं। पुक्योंग नेशनल यूनिवर्सिटी के समुद्री जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और अध्ययन के दूसरे लेखक ह्यून-वू किम कहते हैं, “मिले-जुले नजरिए ने महत्वपूर्ण आवासों को बहाल करते हुए वनों की कटाई और अवैध शिकार जैसी गतिविधियों को काफी हद तक कम कर दिया है। बादलदार तेंदुए के लिए भी इसी तरह की पहल जरूरी है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 13 जनवरी, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: नवंबर 2024 में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में बादलदार तेंदुए के 159 आवासों का विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि इस प्रजाति के कुल आवास का सिर्फ 31.66% ही मौजूदा सीमा में आता है। अतिरिक्त 8.13% संभावित रूप से मौजूदा सीमा में है। तस्वीर – रेट ए. बटलर/मोंगाबे।