- गंगा की सहायक नदी गोमती प्रदूषण का दंश झेल रही है। गोमती में करीब 68 नालों का गंदा पानी घुल रहा है। लखनऊ और सीतापुर जैसे छोटे-बड़े शहरों का करोड़ों लीटर गंदा पानी रोज इस नदी में गिराया जाता है।
- गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई ने साल 2019 में ‘नमामी गंगे’ के तहत तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। हालांकि 2 साल बाद भी इसपर कोई काम नहीं हुआ है।
- विशेषज्ञों के मुताबिक गोमती में प्रदूषण की स्थिति ऐसी ही बनी रही तो जल्द ही यह नदी नाले में तब्दील हो जाएगी।
“गोमती में अब वो बात नहीं रही,” आंखों में मायूसी लिए मोहम्मद इरफान कहते हैं। इरफान उत्तर प्रदेश के लखनऊ में गोमती नदी के किनारे कपड़ों की धुलाई का काम करते हैं। गोमती से उनका नाता बचपन से जुड़ा है। “मेरे बाप-दादा यही काम करते आए हैं। पहले हम खाना खाने के बाद नदी का पानी पीते थे, इसमें नहाते थे, अब तो मुंह धोने की भी हिम्मत नहीं होती, इतनी गंदगी और बदबू आती है,” इरफान बताते हैं।
गोमती नदी को लेकर ऐसे ख्याल इस नदी के आस-पास रहने वाले तमाम लोगों के हैं। इसमें मछुआरे, कपड़े धोने वाले और गोमती के घाट पर आने वाले लोग शामिल हैं। इन लोगों के इतर नदी के जीवन को समझने वाले विशेषज्ञों और ‘गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई’ के अधिकारियों का भी मानना है कि गोमती नदी नाले में तब्दील होती जा रही है।
गोमती के नाला बनते जाने के पीछे इसमें गिरने वाले 68 नालों का गंदा पानी है जो नदी में घुल रहा है। गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, अकेले लखनऊ शहर में करीब 33 नाले गोमती में गिरते थे। इसमें से केवल 7 नालों को टैप किया गया है, बाकी 26 नाले सीधे या आंशिक रूप से गोमती में गिर रहे हैं। इन 26 नालों से हर रोज करीब 20 करोड़ लीटर (200 एमएलडी) गंदा पानी नदी में मिल रहा है और आबादी बढ़ने से साथ स्थिति और बदतर होती जा रही है।
गोमती के बिना कैसे साफ होगी गंगा
गोमती नदी गंगा की सहायक नदियों में से एक है। पीलीभीत के माधवटांडा में गोमत ताल से गोमती का उद्गम होता है और फिर शहाजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ, सुल्तानपुर होते हुए करीब 821 किलोमीटर की दूरी तय कर यह जौनपुर में गंगा नदी में मिल जाती है।
गंगा में मिलने से पहले गोमती किस कदर प्रदूषित होती है इसका अंदाजा लखनऊ के रबर डैम के पास गोमती में बनने वाले गाज से लगाया जा सकता है। यह डैम लखनऊ में गोमती के निकास पर बना है। लखनऊ रिवर फ्रंट के आखिरी छोर पर बने इस डैम के पास नदी सफेद रंग के गाज से पटी रहती है। डैम के पास ही राजेश यादव गाय-भैंसों को रखकर दूध बेचने का काम करते हैं। राजेश बताते हैं, “नदी में पिछले 2-3 साल से ज्यादा ही गाज आ रहा है। कई बार तो पशुओं को नदी में भेजने से भी घबराहट होती है, पता नहीं कौन सा रोग हो जाए।”
गोमती का यह प्रदूषण गंगा नदी की सफाई के दावों की पोल भी खोलता है। ‘गोमती प्रदूषण नियंत्रण इकाई’ के जनरल मैनेजर राकेश कुमार अग्रवाल बताते हैं, “गोमती नदी के लिए लखनऊ में हमारे दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। पहला 34.5 करोड़ लीटर का भरवारा प्लांट और दूसरा दौलतगंज में 5.6 करोड़ लीटर का प्लांट है। इनकी क्षमता 40.1 करोड़ लीटर की है और यह दोनों पूरी क्षमता पर काम कर रहे हैं। जबकि लखनऊ में गंदे पानी का डिस्चार्ज 60 करोड़ लीटर से ज्यादा है, ऐसे में 20 करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी बिना ट्रीट किए ही गोमती में जा रहा है।”
मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए राकेश अग्रवाल कहते हैं, “हमारा प्लान था कि 2022 तक गोमती नदी में जाने वाले सभी नालों का गंदा पानी ट्रीटमेंट प्लांट से होकर गुजरे। इसके लिए दो साल पहले (2019) ‘नमामी गंगे’ के तहत तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। इसमें से एक पर मंजूरी मिली, लेकिन वो कोर्ट केस में फंस गया और बाकी के दो प्लांट को मंजूरी नहीं मिली है। इसके अलावा हैदर नाले पर 12 करोड़ लीटर का का ट्रीटमेंट प्लांट बन रहा था, वो भी फंड न होने की वजह से आधा बनकर रुका पड़ा है।”
राकेश अग्रवाल जिस हैदर नाले की बात कर रहे हैं वो लखनऊ के 1090 चौराहे के पास गोमती नदी में गिरता है। इस नाले से 15.8 करोड़ लीटर प्रतिदिन गंदा पानी आता है, जिसमें से केवल 8.7 करोड़ लीटर पानी ही ट्रीट होने के लिए भरवारा प्लांट भेजा जाता है। बाकी का 7.1 करोड़ लीटर गंदा पानी सीधे गोमती में गिरा दिया जाता है। इसी नाले पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बन रहा था, जो अभी अधर में अटका हुआ है। प्लांट बनने के कारण नाले को कई जगह रोका गया है, जिसकी वजह से यह नाला प्लास्टिक से पटा दिखाई देता है।
821 में से करीब 628 किलोमीटर प्रदूषित गोमती
ऐसा नहीं कि गोमती नदी लखनऊ में आकर ही प्रदूषित होती है। गोमती के प्रदूषित होने की शुरुआत सीतापुर से होती है जो लखनऊ में आकर सबसे खराब स्थिति में पहुंच जाती है। अपने 821 किलोमीटर के बहाव में गोमती सीतापुर से लेकर जौनपुर तक करीब 628 किलोमीटर तक प्रदूषण का दंश झेल रही है।
लखनऊ के अलावा जौनपुर में 14 नाले, सुल्तानपुर में 7 नाले, बाराबंकी में 2 नाले और इसी तरह अलग-अलग जिलों से कुल 68 नाले गोमती में गिरते हैं। इन नालों से 86.5 करोड़ लीटर सीवेज और इंडस्ट्री का खराब पानी गोमती में रोजाना बहाया जा रहा है। इसमें 83.5 करोड़ लीटर सीवेज है और करीब तीन करोड़ लीटर इंडस्ट्री का गंदा पानी है। वहीं, इसमें से केवल 44.3 करोड़ गंदा पानी ही सीवेज ट्रीटेमेंट प्लांट से होकर गोमती में गिर रहा है। यह आंकड़े 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) के सामने रखे गए थे जो गोमती सफाई को लेकर ‘यूपी पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड’ के एक्शन प्लान (2019) में शामिल किए गए हैं।
यूपी पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से राज्य की नदियों की गुणवत्ता की जांच की जाती है। इसके तहत गोमती नदी के पानी की जांच भी होती रहती है। गोमती के पानी की गुणवत्ता सीतापुर, लखनऊ और जौनपुर में जांची जाती है। जनवरी 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, गोमती नदी लखनऊ के डाउनस्ट्रीम में ‘E’ कैटेगरी में थी, जो कि सबसे खराब कैटेगरी है। यहां गोमती में डिजॉल्व ऑक्सीजन 1.4 मिग्रा प्रति लीटर और बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड 14.0 मिग्रा प्रति लीटर पाया गया। इंसानों के पीने और नहाने की तो बात ही अलग, इसमें जलीय जीव भी जिंदा नहीं रह सकते थे।
मछुआरों पर गोमती की गंदगी का असर
गोमती के प्रदूषण का असर इस इलाके के मछुआरों पर भी पड़ा है। लखनऊ के गऊ घाट के रहने वाले संतराम निषाद करीब 20 साल से गोमती में मछली पकड़ते आए हैं। उनके मुताबिक पानी गंदा होने की वजह इस इलाके में मछली नहीं मिलती। जब साफ पानी था तो रोहू, नैनी जैसी मछलियां मिल जाती थीं, लेकिन अब मांगुर, टेंगन, चैना जैसी छोटी मछलियां मिलती हैं।
संतराम नाव में पड़ी दो मछलियों को दिखाते हुए कहते हैं, ”कल रात में जाल लगाया था, सुबह में दो मछली फंसी है। करीब 5-6 साल पहले 8-10 मछलियां फंस जाती थीं, इसमें बड़ी मछलियां भी होती थीं। अब नदी का पानी गंदा हो गया है तो मछलियां जिंदा नहीं रह पाती।”
नदी में मछलियां न होने की वजह से मछुआरों की कमाई पर भी असर हुआ है। संतराम बताते हैं कि उनकी कमाई आधे से भी कम हो गई है। कुछ साल पहले तक एक दिन में 200 रुपए तक की मछलियां निकल आती थीं, अब 50 से 100 रुपए की निकल आएं तो भी बहुत है। इसी तरह लखनऊ के खदरा के रहने वाले प्रदीप निषाद भी मछलियां पकड़ने का काम करते थे। गंदा पानी होने की वजह से मछलियां गायब होती गईं और उन्होंने यह काम छोड़ ही दिया। अब प्रदीप मजदूरी का काम करते हैं।