- हिमनद झील के फटने से आने वाली बाढ़ आम होती जा रही हैं, क्योंकि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी की वजह से ग्लेशियरों के पिघलने से कुछ ही सालों में भारी मात्रा में पानी निकलता है।
- धरती के हिम और बर्फ क्षेत्रों को क्रायोस्फीयर के नाम में जाना जाता है। इसमें तेजी से हो रहे नुकसान के चलते अरबों लोगों की आजीविका पर बहुत ज्यादा दुष्प्रभान पड़ेगा और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर भी लागत कई गुना बढ़ जाएगी।
- क्रायोस्फीयर स्थिति रिपोर्ट 2024 में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि उत्सर्जन में बहुत ज्यादा कमी लाए बिना, वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से ऐसे दुष्प्रभाव होंगे जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकेगा।
भारतीय हिमालय में उत्तरी सिक्किम के छोटे से शहर चुंगथांग में 4 अक्टूबर, 2023 की आधी रात के आसपास लोग मूसलाधार बारिश के बीच भयावह आवाज से जागे। कुछ ही मिनटों में शहर पानी, कीचड़ और पत्थरों का दरिया बन गया। इस आपदा में घर बह गए और तीस्ता नदी पर बना एक बांध टूट गया।
यह अचानक बाढ़ तब आई जब 3-4 अक्टूबर को बादल फटने के बाद ल्होनक ग्लेशियर से निकलने वाली झील के किनारे टूट गए। तीस्ता नदी में पानी का स्तर 15-20 फीट तक बढ़ गया। इससे सिक्किम और पड़ोसी पश्चिम बंगाल में तबाही मच गई और बांग्लादेश के सैकड़ों गांव डूब गए। भारत में 100 से ज़्यादा लोग मारे गए और लाखों डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ।
इस तरह की चरम मौसमी घटनाओं को हिमनद झील के फटने से होने वाली बाढ़ के रूप में जाना जाता है। ये आपदाएं तेजी से आम हो गई हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे कुछ ही सालों में भारी मात्रा में पानी बहने लगा है। विश्व बैंक के एक आकलन के अनुसार, ठीक एक साल पहले यानी जून और अक्टूबर 2022 के बीच पाकिस्तान में भीषण गर्मी के बाद मानसून की मूसलाधार बारिश और पिघलते ग्लेशियरों ने करीब दो हजार लोगों की जान ले ली और 15.2 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान पहुंचाया।
सालों से वैज्ञानिक मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी आपदाओं पर चेतावनी देते रहे हैं। वे कहते रहे हैं कि धरती के हिम और बर्फ क्षेत्रों का तेजी से नुकसान हो रहा है। इससे अरबों लोगों की आजीविका पर बहुत ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ेगा और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा।
यह बात एक बार फिर क्रायोस्फीयर स्थिति रिपोर्ट 2024 के जरिए स्पष्ट की गई है। इस रिपोर्ट का उपशीर्षक है – पिघलती बर्फ, वैश्विक नुकसान। यह रिपोर्ट इस सप्ताह 11-22 नवंबर तक अजरबैजान की राजधानी बाकू में हो रहे सालाना संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में जारी की गई।
बर्फ के गलनांक से कोई समझौता नहीं
अंतर्राष्ट्रीय क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनीशिएटिव द्वारा तैयार रिपोर्ट में कहा गया है, “हम बर्फ के गलनांक बिंदु के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं।” यह साल 2009 में गठित ग्लेशियर के 50 से ज्यादा जानकारों और जलवायु विज्ञानियों का वैश्विक नेटवर्क है। इसका काम क्रायोस्फीयर के तीन मुख्य क्षेत्रों – आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय व एंडीज जैसे ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों पर केंद्रित है।
स्वतंत्र रूप से काम करने वाली वैज्ञानिक परियोजना क्लाइमेट ट्रैकर के अनुसार, फिलहाल दुनिया भर में लागू जलवायु नीतियों के चलते इस सदी के आखिर तक तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 2.7 डिग्री की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। उत्सर्जन में कटौती के लिए सभी देशों की ओर से की गई स्वैच्छिक प्रतिबद्धताएं 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को रोकने के लिए अपर्याप्त हैं। यह लक्ष्य साल 2015 के पेरिस समझौते में तय किया गया था। संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के ज्यादातर सदस्यों की ओर से इसे स्वीकार किया गया है।
क्रायोस्फीयर पर नई रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, दुबई में 2023 के शिखर सम्मेलन में गर्मी को रोकने वाले जीवाश्म ईंधन से धीरे-धीरे दूर जाने वाले समझौते से दशकों और सदियों तक क्रायोस्फीयर से व्यापक क्षति और नुकसान होगा और जहां अभी भी तकनीकी रूप से संभव है, वहां इसके हिसाब से ढलने की जरूरत बहुत ज्यादा और अधिक महंगी होंगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लेशियरों से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान भी ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिका के बड़े हिस्से तथा पूर्वी अंटार्कटिका के संभावित रूप से कमजोर हिस्सों को पिघलाने के लिए पर्याप्त होगा, जिससे समुद्र का स्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगा और आने वाली सदियों में 10 मीटर से ज्यादा हो जाएगा। भले ही बाद में हवा का तापमान कम हो जाए।
आर्कटिक परिषद के अध्यक्ष और नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनास गहर स्टोरे ने कहा, “हमें तेजी से बढ़ते तापमान के चलते गायब हो रहे क्रायोस्फीयर के संदेश को और ज्यादा फैलाना चाहिए।” “इससे दुनिया भर के पारिस्थितिकी तंत्र और समुदायों पर असर पड़ेगा।”
बढ़ता ही जा रहा समुद्र का स्तर
समुद्र के स्तर में लंबी अवधि, नहीं रुकने वाली बढ़ोतरी की गति से सभी तटीय क्षेत्र दीर्घकालिक चुनौतियों का सामना करेंगे और इससे बुनियादी ढांचे को व्यापक नुकसान और क्षति होगी, क्योंकि 50 लाख से ज्यादा आबादी वाले सभी शहरों में से लगभग 75 प्रतिशत 10 मीटर से कम ऊंचाई पर हैं। क्रायोस्फीयर रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे खेती और उन सभी लोगों की आजीविका पर भी गंभीर असर पड़ेगा जो इन जोखिम वाले क्षेत्रों पर निर्भर हैं।
वैश्विक औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से भी इस सदी में नुकसान और क्षति में वृद्धि होगी। यह कई पर्वतीय और निचले इलाकों के समुदायों के इस हिसाब से ढलने की सीमा से कहीं ज्यादा है। लगभग सभी उष्णकटिबंधीय और मध्य अक्षांशीय ग्लेशियर गायब हो जाएंगे और हिमालय जैसे अहम ऊंचाई वाले पर्वतीय एशियाई ग्लेशियरों की लगभग 50 प्रतिशत बर्फ पिघल जाएगी।
हिम झील के फटने से बाढ़ और भूस्खलन जैसी मौजूदा दौर में देखी जाने वाली विनाशकारी घटनाओं की आवृत्ति और इनके स्केल में बढ़ोतरी करेंगी। जोखिम एशिया में ज्यादा है, जहां अचानक आने वाली बाढ़ कुछ ही घंटों में बुनियादी ढांचे और शहरों को बहा सकती हैं, जैसा कि पिछले साल सिक्किम में देखा गया था।
गर्मियों के बढ़ते मौसम के दौरान बर्फ के ढेर और बर्फ के बहाव के नुकसान के कारण जल चक्र में गंभीर और संभावित रूप से स्थायी परिवर्तन खाद्य, ऊर्जा और जल सुरक्षा को प्रभावित करेंगे। पाकिस्तान के जलवायु परिवर्तन मंत्री अहमद इरफ़ान असलम ने कहा, “ग्लेशियल झील के फटने और अचानक आई बाढ़ के कारण 2022 में पाकिस्तान का 40 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ में डूब गया और हमने देश की आधी फ़सल खो दी।”
गर्मियों के बढ़ते मौसम के दौरान बर्फ के ढेर और बर्फ के बहाव में नुकसान से जल चक्र में गंभीर और संभावित रूप से स्थायी बदलाव खाद्य, ऊर्जा और जल सुरक्षा पर असर डालेंगे। पाकिस्तान के जलवायु परिवर्तन मंत्री अहमद इरफान असलम ने कहा, “हिम झीलों के फटने और अचानक आई बाढ़ से 2022 में पाकिस्तान का 40 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ में डूब गया और हमने देश की आधी फसल खो दी।”
उन्होंने कहा, “हिंदू कुश हिमालय ध्रुवों के बाहर सबसे बड़ा क्रायोस्फीयर है और हमें तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है।” विश्व इतिहास में सबसे महंगी प्राकृतिक आपदाओं में से एक के रूप में बताई जाने वाली 2022 की बाढ़ ने पाकिस्तान को भारी कर्ज में डाल दिया। पाकिस्तान को आपदा राहत के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ी जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जरूरी सेवाओं के लिए इस्तेमाल की जा सकती थी।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के महानिदेशक पेमा ग्यामत्शो ने बताया, “हम जानते हैं कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है।” हिंदू कुश हिमालय में 54,000 ग्लेशियर हैं और यह 24 करोड़ लोगों का घर है। “ग्लेशियर और बर्फ पिघलने के फायदे पहाड़ी समुदायों से कहीं आगे तक फैले हुए हैं और कई देशों में एक अरब से अधिक लोगों पर असर डालते हैं।” शोध संगठन के प्रमुख ने कहा कि हीला-हवाली के नतीजे इतने भयानक हैं कि उन पर विचार करना भी मुश्किल है।
दूसरी जगहों के मुकाबले तेजी से गर्म हो रहा क्रायोस्फीयर
समुद्र के स्तर में कुछ बढ़ोतरी पहले से ही तय है और बढ़ोतरी की दर पिछले 30 सालों की तुलना में अब दोगुनी है। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के लिए काम करने वाले ग्लेशियोलॉजिस्ट जेम्स किर्कहम ने चेतावनी दी, “क्रायोस्फीयर दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है।” “बर्फ के बेतहाशा नुकसान से समुद्र के स्तर में ना बदली जान सकने वाली बढ़ोतरी होगी।”
अगर कार्बन उत्सर्जन में मौजूदा बढ़ोतरी जारी रहती है, तो दुनिया लगभग 3.5 डिग्री सेल्सियस गर्म हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका में बर्फ का नुकसान बहुत तेजी से होगा। ग्लेशियर और बर्फ के नुकसान से होने वाले विनाशकारी और व्यापक दुष्प्रभाव तेजी से बढ़ते तापमान के साथ जुड़े हुए हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि सदी के मध्य तक कुछ कमजोर पर्वतीय और निचले इलाकों के समुदायों को मौसमी जल उपलब्धता में कमी या विनाशकारी बाढ़ के कारण जीवित नहीं रहने योग्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे वे उबर नहीं पाएंगे। समय के साथ, ऊंचाई वाला पर्वतीय एशिया और अलास्का के कई सबसे बड़े ग्लेशियरों के बचने की संभावना नहीं है। बर्फ पिघल जाएगी, जिससे साल भर ज्यादा ऊंचाई वाली जगहों पर अधिक बार बारिश होगी, जबकि वहां बर्फबारी की उम्मीद की जाती है।
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किर्कहम ने कहा, “हम दूर के भविष्य की बात नहीं कर रहे हैं। क्रायोस्फीयर के नुकसान का असर लाखों लोगों पर पहले ही पड़ चुका है।” आर्कटिक मॉनिटरिंग और असेसमेंट प्रोग्राम की ग्लेशियोलॉजिस्ट हेइडी सेवेस्ट्रे ने कहा, “क्रायोस्फीयर में जो कुछ हो रहा है, वह भयावह है।” “कार्रवाई करने से पहले और कितने लोगों की जान जाएगी?”
पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना
वहीं, गंभीर चिंता का एक और क्षेत्र पर्माफ्रॉस्ट है जो मिट्टी, चट्टानों और रेत से मिलकर बना है और बर्फ से आपस में जुड़ा होता है जो साल भर जमी रहती है। तेजी से बढ़ते तापमान के मौजूदा स्तरों पर, आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट का ज्यादातर हिस्सा और तिब्बत और हिमालय के ऊंचे इलाकों जैसे करीब-करीब सभी पर्वत पर्माफ्रॉस्ट पिघल जाएंगे। इससे इस सदी के आखिर तक इतना कार्बन उत्सर्जन होगा जो आज चीन के वार्षिक उत्सर्जन के बराबर होगा, जिससे वैश्विक तापमान में तेजी आने का दुष्चक्र शुरू हो जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय जैसे कि इनुइट (पहले एस्किमो के नाम से जाने जाते थे) और तिब्बती, हमेशा के लिए अपनी जीवनशैली और आजीविका खो देंगे। चूंकि पर्माफ्रॉस्ट कार्बनिक पदार्थों को भी बंद कर देता है और जब यह पिघलता है, तो यह प्रचुर मात्रा में मीथेन छोड़ता है। यह अल्पकालिक ग्रीनहाउस गैस है जो जलवायु प्रणाली को गर्म करने के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना ज्यादा ताकतवर है।
चिली के पर्यावरण मंत्री मैसा रोजास ने कहा, “यह चिंताजनक है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पारिस्थितिकी तंत्र खत्म हो रहा है और आवास नष्ट हो रहे हैं।” चिली अमेरिका की सबसे ऊंची एंडीज पर्वत श्रृंखला का घर है।
इनुइट लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता सारा ऑरविग के अनुसार ग्रीनलैंड में जीवन पहले से ही बदल रहा है, जहां अस्थिर समुद्री बर्फ और पिघलते पर्माफ्रॉस्ट पारंपरिक शिकार और मछली पकड़ने की गतिविधियों को खतरनाक बना रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम क्रायोस्फीयर के लोग हैं और हमारे अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।”
वैज्ञानिकों, नीति बनाने के लिए अभियान चलाने वालों और जलवायु कार्यकर्ताओं में इस बात पर आम राय है कि दुनिया के जमे हुए हिस्सों को बचाने का एकमात्र तरीका जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन पर लगाम लगाना है। भूटान के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के सचिव दाशो कर्मा शेरिंग ने कहा, “क्रायोस्फीयर को बचाए बिना जलवायु परिवर्तन से निपटा नहीं जा सकता।” “हमारी जमी हुई विरासत की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 15 नवंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: 12 जुलाई, 2011 की नासा की एक तस्वीर जो गर्मियों में पिघलते समय आर्कटिक की समुद्री बर्फ को दिखाती है। यह पिघली हुई बर्फ को दिखाती है, मीठे पानी के तालाब जो बर्फ की सतह पर गड्ढों में बनते हैं। ICESCAPE मिशन के शोधकर्ता अध्ययन कर रहे हैं कि ये पिघले हुए तालाब आर्कटिक के महासागर रसायन विज्ञान, प्लवक की बढ़ोतरी और सूरज की रोशनी आने पर किस तरह प्रभावित करते हैं। साथ ही, इस क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ता है। विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0) के जरिए नासा के गोडार्ड स्पेस फ़्लाइट सेंटर की ओर से ली गई तस्वीर।