- वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली सांप की एक नई प्रजाति का पता लगाया है, जो हाल ही में पहचानी गई प्रजाति एंगुइकुलस से संबंधित है।
- अभिनेता लियोनार्डो डिकैप्रियो के नाम पर इसका नामकरण हुआ है। इस सांप का शरीर छोटा है और इसके दांत भी हैं। यह बहुत मुश्किल से दिखाई देता है।
- यह खोज बताती है कि पश्चिमी हिमालय के सांपों की खासियत अपने पूर्व समकक्षों से अलग है।
- शोधकर्ताओं ने पश्चिमी हिमालय की छिपी हुई जैव विविधता को सामने लाने के लिए समर्पित सर्वेक्षण और क्षेत्र में सभी पहचानी गई प्रजातियों के डीएनए सीक्वेंसिंग का अनुरोध किया है, जिससे उनके संरक्षण में मदद मिल सके।
साल 2020 में महामारी के दौरान जून महीने में वीरेंद्र भारद्वाज पश्चिमी हिमालय में हिमाचल प्रदेश में अपने घर के पीछे के आंगन का बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें दिलचस्प सांप मिला। उन्होंने सोशल मीडिया ऐप इंस्टाग्राम पर इसकी तस्वीरें अपलोड की। ये तस्वीरें उनके सहकर्मी जीशान मिर्जा के फीड पर दिखाई दी। इसके बाद सांप की पहचान करने के लिए तीन साल तक व्यापक जांच की गई। टीम ने हाल ही में एक पेपर प्रकाशित किया जिसमें सांप के बिल्कुल नए वंश और प्रजाति की खोज की जानकारी दी गई। भारद्वाज फिलहाल मिजोरम विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट के छात्र हैं।
यह सांप पूर्वी हिमालय में पाई जाने वाली प्रजाति लियोपेलटिस रैपी से मिलता-जुलता था। हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया कि हिमाचल प्रदेश की आबादी, सिक्किम में पाए जाने वाले असली लियोपेलटिस रैपी से अलग थी। सिर पर मौजूद शल्क और सामान्य रंग में फर्क देखा गया। टीम ने यूरोप, अमेरिका और भारत के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालयों से नमूने की जांच के बाद इसकी पुष्टि की।
इस सांप के डीएनए सीक्वेंस की तुलना पूरे एशिया में ज्ञात प्रजातियों से की गई। इसके बाद शोधकर्ताओं ने नतीज निकाला कि हिमाचल प्रदेश का सांप लियोपेलटिस रैपिई से संबंधित है। लेकिन यह कई पहलुओं में अलग है। इसलिए, इसे नई प्रजाति कहा गया। दोनों प्रजातियां नए जीनस, एंगुइकुलस से संबंधित हैं जो हिमालय में स्थानीय है। लैटिन में एंगुइकुलस का मतलब ‘छोटा सांप‘ होता है।
ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन फ्राई कहते हैं, “इस शोध पत्र में वैज्ञानिकों ने पश्चिमी हिमालय की जैव विविधता के लिहाज से अहम खोज की है: सांपों की नई प्रजाति की पहचान।” अध्ययन से जुड़े नहीं रहे फ्राई कहते हैं, “कोलुब्रिड सांप प्रजाति गोंगिलोसोमा और लियोपेल्टिस के व्यापक विश्लेषण से निकले ये नतीजे पश्चिमी हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की खासियत के बारे में बताते हैं। साथ ही, पूर्वी हिमालय के बरक्स इसके विकासवादी अंतर को सामने लाते हैं।”
अमेरिकी प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय से जुड़े हुए जस्टिन एम. बर्नस्टीन कहते हैं, “लेखकों ने पाया कि कुछ प्रजातियों के नाम में बदलावों की जरूरत है, ताकि वे अपने पूर्वजों को सटीक रूप से दिखा सकें। ऐसा करने से आगे के शोध में फायदा होगा जो ऐसी जानकारी पर निर्भर हैं। वे एक नए वंश के बारे में बताते हैं जो कि अध्ययन के मुख्य जीवों से काफी अलग है।” बर्नस्टीन अध्ययन का हिस्सा नहीं थे।

जून 2020 में इसी तरह के एक इंस्टाग्राम पोस्ट से टीम ने हिमाचल प्रदेश के चुराह घाटी के नाम पर ओलिगोडोन चुराहेन्सिस नामक सांप की नई विज्ञान-संबंधी प्रजाति की भी जानकारी दी है, जहां इस प्रजाति की खोज की गई थी।
दो अलग-अलग प्रजातियां
एंगुइकुलस प्रजाति के सदस्य छोटे होते हैं। फिलहाल ये दो प्रजातियों के नाम से जाने जाते हैं। ये सांप हिमालय में पंद्रह सौ मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। हाल ही में बताई गई प्रजाति, एंगुइकुलस डिकैप्रियोई मध्य नेपाल से हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले तक फैली हुई है। वहीं एंगुइकुलस रैपी (जिसे पहले लियोपेलटिस रैपी कहा जाता था) सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है।
नई प्रजाति एंगुइकुलस डिकैप्रियोई में कुछ ऐसी खासियतें हैं जो इसे उसी परिवार के अन्य सांपों से अलग करती हैं। जर्मनी में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजी के प्रमुख लेखक जीशान मिर्जा बताते हैं, “यह सांप मस्तिष्क के नीचे एक छिद्र होने के कारण सांप की ज्यादातर संबंधित प्रजातियों से अलग है। इस छिद्र से मांसपेशियां या उपास्थि जुड़ी होती हैं।” मिर्ज़ा कहते हैं, “यह छिद्र सांप की संबंधित प्रजातियों में नहीं देखा गया है और इस प्रकार, हिमालय का सांप पूर्वी हिमालय (ए. रैपी) की संबंधित प्रजातियों से अलग समूह का है।”
मिर्जा कहते हैं, “पहली नज़र में ए. डिकैप्रियोई का पेट क्रीम जैसा सफेद दिखता है और इसके शरीर के पिछले किनारे गोल होते हैं। वही ए. रैपी का पेट पीला और चपटा होता है, जिसमें नुकीला वेंट्रो-लेटरल [सामने और बगल] किनारा होता है।” “ए. डिकैप्रियोई के विपरीत, वयस्कों में भी गर्दन पर चौड़ी पट्टी होती है।” वह कहते हैं कि “दोनों प्रजातियों में उनके पार्श्विका स्केल की सीमा पर अलग-अलग संख्या में स्केल होते हैं। इसके अलावा, उनके दांतों की संख्या भी अलग-अलग होती है।”

मिर्ज़ा बताते हैं कि व्यापक रूप से पाए जाने के बावजूद, ये सांप आम तौर पर नहीं दिखाई देते हैं। “नई प्रजाति, ए. डिकैप्रियोई जून से अगस्त तक सक्रिय रहती है, जब कोई उन्हें खुले रास्तों पर धूप सेंकते हुए देख सकता है। दूसरी ओर, एंगुइकुलस रैपि शायद बहुत ज्यादा दुर्लभ है। पिछले 10 सालों में भूटान से इस प्रजाति की सिर्फ दो तस्वीरें सामने आई हैं।”
नया वंश
लगभग 180 सालों तक, कई शोधकर्ताओं ने लियोपेल्टिस और गोंगिलोसोमा वंश को एक ही वंश माना। एक अन्य समूह ने उन्हें अलग-अलग माना। मिर्ज़ा बताते हैं, “इसका समाधान नहीं हो सका, क्योंकि दोनों वंशों की प्रजातियों के लिए डीएनए डेटा की कमी थी।” इस शोध पत्र में प्रस्तुत दो वंशों की अहम प्रजातियों के डीएनए सीक्वेंस ने इन वंशों की प्रजातियों को फिर से अलग-अलग करने में मदद की। साथ ही, पूरी तरह से नए वंश एंगुइकुलस की पहचान करने में मदद की।
बर्नस्टीन कहते हैं, “हाल ही में प्रकाशित यह शोध पत्र सांपों की दो वंशावली (जीन) के विकासवादी संबंधों का अध्ययन करने पर केंद्रित है। इन पर लंबे समय से कम अध्ययन किया गया है।” वे जोर देते हैं, “ये अध्ययन अहम हैं, क्योंकि हम प्रजातियों को उनके क्रम के हिसाब से नाम देते हैं जो वंश को दिखाता है। लेकिन, इस संगठन को बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए डेटा में समय के साथ प्रगति हुई है।”
फ्राई के अनुसार, “अध्ययन ने प्रजातियों के भीतर संभावित छिपी हुई विविधता का भी खुलासा किया है, जो यह दिखाती है कि कई व्यापक प्रजातियों में अज्ञात आनुवंशिक विविधता हो सकती है।” उन्होंने आगे कहा कि “यह इस क्षेत्र में पहचानी गई प्रजातियों पर आगे की जांच और फिर से उनका मूल्यांकन करने की जरूरत के बारे में बताती है।”
पूर्वी बनाम पश्चिमी हिमालय के जीव-जंतु
वैज्ञानिकों का मानना है कि पूर्वी हिमालय जैव विविधता से भरपूर है। वहीं पश्चिमी हिमालय के जीव-जंतु, पूर्वी हिमालय के जीव-जंतुओं का एक उपसमूह है। मिर्जा ने जोर देकर कहा, “हालांकि, सांप की नई प्रजाति ए. डिकैप्रियोई की खोज और पश्चिमी हिमालय के सरीसृपों की आबादी के अन्य वर्गीकरण आकलन से पता चलता है कि पश्चिमी हिमालय के जीव-जंतु अलग है।”
फ्राई इस बात से सहमत हैं। वह कहते हैं कि ये नतीजे इस धारणा को चुनौती देते हैं कि पश्चिमी हिमालय के जीव-जंतु, पूर्वी हिमालय का सिर्फ विस्तार हैं। “इसके बजाय, वे पश्चिमी हिमालय को अलग विकासवादी और पारिस्थितिकी क्षेत्र के रूप में पेश करते हैं, जिसके लिए लक्ष्य बनाकर वैज्ञानिक और संरक्षण कोशिशें करने की जरूरत है।”
मिर्जा कहते हैं कि अगर कोई प्रजाति अलग पाई जाती है और उसे अलग प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है, तो उसके संरक्षण की स्थिति का मूल्यांकन अलग तरीके से किया जाएगा। वे सिनोमिक्रुरस मैकलेलैंडी का उदाहरण देते हैं, जो नेपाल से लेकर पूरे पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले कोरल सांप की एक प्रजाति है।
“हमारे सर्वेक्षण के दौरान, हमें हिमाचल में सिनोमिक्रुरस प्रजाति का एक सांप मिला। डीएनए सीक्वेंस और मॉर्फोलॉजिकल संबंधी आंकड़ों से पता चला कि यह प्रजाति सिनोमिक्रुरस मैक्लेलैंडी से अलग है।
हालांकि, इस सांप को 1908-1910 में शिमला के पास देखा गया था और इसे सिनोमिक्रुरस मैक्लेलैंडी की नई उप-प्रजाति ‘निग्रीवेंटर‘ माना गया था।” व्यापक जांच से इस सांप की हिमाचल की आबादी पूरी तरह से अलग प्रजाति होने की पुष्टि हुई। मिर्जा बताते हैं, “इसलिए, अगर हम इसे सिनोमिक्रुरस मैक्लेलैंडी की एक किस्म या उप-प्रजाति के रूप में मानते हैं,” जो व्यापक रूप से फैला हुआ है, “तो इसके संरक्षण के संबंध में इस पर खास ध्यान नहीं दिया जाएगा।”

सांपों पर ज्यादा शोध की जरूरत
मिर्जा पश्चिमी हिमालय में और ज्यादा समर्पित सर्वेक्षणों पर जोर देते हैं। इसमें क्षेत्र में सांपों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए क्षेत्र में सभी पहचानी गई प्रजातियों का डीएनए सीक्वेंस शामिल है। “मुझे यकीन है कि ज्यादा केंद्रित सर्वेक्षणों के साथ अधिक दिलचस्प सरीसृप और अन्य कम अध्ययन किए गए टैक्सा (किसी जीव की एक प्रजाति) की खोज की जाएगी।”
फ्राई का मानना है कि पश्चिमी हिमालय में सरीसृपों की खोज अभी भी कम ही हुई है। वे कहते हैं, “इस क्षेत्र की छिपी हुई जैव विविधता को सामने लाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण और अध्ययन जरूरी हैं” जिससे नई प्रजातियों और प्रजातियों की पहचान करने का रास्ता खुलेगा।
फ्राई ने जोर देकर कहा, “नई प्रजाति की यह खोज पश्चिमी हिमालय की अविश्वसनीय, फिर भी अक्सर अनदेखी की गई जैविक संपदा का प्रमाण है। इस प्राकृतिक विरासत की सुरक्षा की तुरंत जरूरत है। आवास खत्म होने, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों से बढ़ते खतरों से, पश्चिमी हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा करना अनिवार्य है।” “इन खास जीव-जंतुओं के संरक्षण को पक्का करने के लिए संरक्षण रणनीतियों को ऐसे नतीजों को एक साथ लाना चाहिए।”
फ्राई ने इस बात पर जोर दिया कि “इस खोज से शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और संरक्षणवादियों को पश्चिमी हिमालय के छिपे हुए खजानों (जैव-विविधता) को खोजने और संरक्षित करने के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता की प्रेरणा मिलनी चाहिए, इससे पहले कि वे हमेशा के लिए खो जाएं।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 3 जनवरी, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: किशोर एंगुइकुलस डिकैप्रियोई। इस सांप का शरीर छोटा होता है। इसकी अधिकतम लंबाई लगभग आधा मीटर होती है और इसके दांत भी होते हैं। तस्वीर- जीशान मिर्ज़ा।