वन अधिकार कानून

केरल में चिन्नार का जंगल। एफआरए दोनों जनजातियों और अन्य वन निवास समुदायों के निजी और सामुदायिक अधिकारों को मान्यता देता है, जिसमें जंगलों में जल निकायों तक पहुंच शामिल है। तस्वीर - केरल पर्यटन/फ़्लिकर।

15 साल बाद भी कछुआ चाल से वन अधिकार कानून का कार्यान्वयन, नई रिपोर्ट में दावा

हाल में आई एक नई रिपोर्ट के अनुसार वन अधिकार कानून को लागू करने में बड़े पैमाने पर सामुदायिक वन अधिकारों के दावों की अनदेखी की गई है। यही नहीं…
केरल में चिन्नार का जंगल। एफआरए दोनों जनजातियों और अन्य वन निवास समुदायों के निजी और सामुदायिक अधिकारों को मान्यता देता है, जिसमें जंगलों में जल निकायों तक पहुंच शामिल है। तस्वीर - केरल पर्यटन/फ़्लिकर।
जंगल जाती एक बैगा महिला। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

सात साल में कितना बदला देश में पहले हैबिटेट राइट्स वाला बैगाचक?

घुमावदार रास्तों से सिलपिड़ी गांव में पहुंचने के बाद हमें चर्रा सिंह रठूरिया का घर तलाशने में थोड़ी मुश्किल इसलिए हुई कि पिछली बार की हमारी मुलाकात गांव के एक…
जंगल जाती एक बैगा महिला। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल
लातेहार समाहरणालय के बाहर रांकीकला पंचायत के आदिवासी बहुल लंका गांव के लोग। इनके हाथों में निजी पट्टा के दस्तावेज हैं। तस्वीर- असगर खान

झारखंड में वन अधिकार कानून बेहाल, दावा एकड़ में लेकिन पट्टा डिसमिल में

जतन सिंह खरवार की उम्र साठ छूने वाली है और इन पर परिवार के आठ लोगों की जिम्मेदारी है। जीविका का साधन सिर्फ खेती है। जिस जमीन को जोतकर जतन…
लातेहार समाहरणालय के बाहर रांकीकला पंचायत के आदिवासी बहुल लंका गांव के लोग। इनके हाथों में निजी पट्टा के दस्तावेज हैं। तस्वीर- असगर खान
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जंगल से सटे गांव के खेत। ऐसे गांव में किसान पुश्तों से खेती करते आ रहे हैं, लेकिन वनाधिकार कानून के ठीक से लागू न होने की वजह से उनके अधिकार छिनने का खतरा है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

[कॉमेंट्री] बीते सदी में वन अधिकार को लेकर बदलता नजरिया और उससे जूझते लोग

कोविड-19 के दौरान न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिया था कि जब तक कोरोना है तब तक लोगों उनके रहवास से बेदखल नहीं किया जाए। उदाहरण के लिए जबलपुर उच्च न्यायालय…
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जंगल से सटे गांव के खेत। ऐसे गांव में किसान पुश्तों से खेती करते आ रहे हैं, लेकिन वनाधिकार कानून के ठीक से लागू न होने की वजह से उनके अधिकार छिनने का खतरा है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
रोजी-रोटी के लिए वन गुज्जर मवेशियों पर निर्भर है। वन विभाग की सख्ती की वजह से वे मवेशी चराने के लिए जंगल नहीं जा सकते। तस्वीर- निशांत सैनी

जंगल की रक्षा करने वाले शिवालिक के टोंगिया और वन गुर्जरों का वनाधिकार अधर में

अप्रैल की अलसाई दोपहरी में उत्तराखंड के हरिद्वार के हरिपुर टोंगिया गांव की महिला पाल्लो देवी (52) बैठी जूट की रस्सियां बुन रही थीं। बदन पर गुलाबी सलवार-कुर्ती और चेहरे…
रोजी-रोटी के लिए वन गुज्जर मवेशियों पर निर्भर है। वन विभाग की सख्ती की वजह से वे मवेशी चराने के लिए जंगल नहीं जा सकते। तस्वीर- निशांत सैनी
जम्मू-कश्मीर: दो विरोधाभासी कानून के साथ लागू होने से वन-अधिकार को लेकर धुंधलाती तस्वीर

जम्मू-कश्मीर: दो विरोधाभासी कानून के साथ लागू होने से वन-अधिकार को लेकर धुंधलाती तस्वीर

कैपरान, अनंतनाग जिले का एक सरहदी कस्बाई गांव है जो चारों तरफ से पहाड़ों और घास के मैदानों से घिरा है। यहां आस-पास के तकरीबन दस गांवों के बाशिंदों के…
जम्मू-कश्मीर: दो विरोधाभासी कानून के साथ लागू होने से वन-अधिकार को लेकर धुंधलाती तस्वीर
सिमलीपाल जंगल में लगी आगः वन विभाग या वनवासी, कौन है जिम्मेवार?

सिमलीपाल जंगल में लगी आगः वन विभाग या वनवासी, कौन है जिम्मेवार?

ओडिशा के सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में भीषण आग लगी हुई है। वन विभाग तकरीबन एक महीने से यहां आग बुझाने की कोशिश कर रहा है पर सफलता…
सिमलीपाल जंगल में लगी आगः वन विभाग या वनवासी, कौन है जिम्मेवार?
बुद्गम जंगल से गुजरता हुआ पावर लाइन। इन बिजली के तारों की वजह से पेड़ों को काटा गया। फोटो- अथर परवेज

आदिवासियों को जंगल से उजाड़ने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार को क्या वाकई है पर्यावरण की चिंता

जम्मू-कश्मीर की ऊंची पहाड़ियों पर घने जंगलों के किनारे बेहद छोटी-छोटी झोपड़ियां नजर आती हैं। पत्थर, मिट्टी और घास-फूस से बने ये घर गुज्जर समुदाय के लोगों का आशियाना है।…
बुद्गम जंगल से गुजरता हुआ पावर लाइन। इन बिजली के तारों की वजह से पेड़ों को काटा गया। फोटो- अथर परवेज