- सरकार से मिल रहे प्रोत्साहन और निजी निवेश के सहारे ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में भारत नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहता है। इससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।
- मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के ‘डीप डीकार्बनाइजेशन’ में ग्रीन हाइड्रोजन की भूमिका चर्चा का एक प्रमुख बिंदु रहा है।
- भारत को एक शुरुआती लाभ हो सकता है क्योंकि शीर्ष उद्योगपतियों ने ग्रीन हाइड्रोजन इको-सिस्टम बनाने के लिए अरबों डॉलर के निवेश की घोषणा की है।
भारत ने लंबी अवधि के लिए अपनी कम उत्सर्जन वाली विकास रणनीति की घोषणा कर दी है। इसकी घोषणा मिस्र में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप27 में की गई। यह रणनीति जलवायु न्याय, टिकाऊ जीवनशैली और बराबरी पर केंद्रित है। ऐसा करके भारत उस चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिसमें 60 से भी कम देश हैं।
सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे मिस्र ने इस कदम का स्वागत किया है। इस रणनीति में लंबे समय में हासिल किए जाने वाले जलवायु लक्ष्यों को दोहराया गया है। इसका मकसद इस्पात, उर्वरक और रिफाइनिंग जैसे हार्ड-टू-एबेट (ऐसे क्षेत्र जहां उत्सर्जन कम करना बहुत मुश्किल है) क्षेत्रों में उत्सर्जन कम करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन इको-सिस्टम बनाना है।
दरअसल, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की घोषणा 2021 में की गई थी। लंबी अवधि वाली इस रणनीति में कहा गया है कि इससे देश में इस ऊर्जा के उत्पादन में तेजी आएगी और भारत ग्रीन हाइड्रोजन का केंद्र बन जाएगा। भारत कच्चे तेल के आयात और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए धरती को गर्म करने वाले जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के विस्तार की योजना बना रहा है।
केंद्र सरकार ने 2047 तक 2.5 करोड़ टन सालाना उत्पादन क्षमता का लक्ष्य तय किया है। प्रौद्योगिकी विकसित होने और मांग में सुधार पर इसे और बढ़ाया जा सकता है।
तेल रिफाइनरी, स्टील मिल और उर्वरक संयंत्र जैसे भारी उद्योगों को कार्बन मुक्त करने में ग्रीन हाइड्रोजन की विशेष भूमिका होने की उम्मीद है। भारत में ग्रीन हाइड्रोजन का मौजूदा उत्पादन बहुत कम है। फिलहाल इसका उत्पादन महज पायलट परियोजनाओं के तहत हो रहा है।
सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करके किसी इलेक्ट्रोलाइज़र में पानी को विखंडित करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है। इस प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। इसमें हाइड्रोकार्बन से बचते हुए, हाइड्रोजन को नाइट्रोजन के साथ मिलाकर ग्रीन अमोनिया तैयार किया जा सकता है। फिर ग्रीन अमोनिया का इस्तेमाल ऊर्जा को संग्रहित करने और उर्वरक बनाने के लिए किया जा सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन, इस्पात कारखानों में कोयले और शिपिंग व ट्रकिंग जैसे लंबी दूरी के परिवहन में जीवाश्म ईंधन का विकल्प बन सकता है।
फिलहाल, दुनिया में बनने वाले हाइड्रोजन के बड़े हिस्से में प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल होता है। इसे ब्लैक हाइड्रोजन के रूप में जाना जाता है। कम-कार्बन तकनीकों से बना ग्रे हाइड्रोजन भी है, लेकिन वैश्विक बाजार में इसकी हिस्सेदारी आटे में नमक के बराबर है।
भारत ने 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। अगले दशक तक, देश में 175 गीगावॉट ग्रीन हाइड्रोजन-आधारित ऊर्जा को जोड़ने की योजना है।
सही दिशा में बढ़ते कदम
पर्यावरण से जुड़े थिंक टैंक वसुधा फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीनिवास कृष्णस्वामी ने कहा कि भारत की हाइड्रोजन नीति सही दिशा में उठाया गया कदम है। “ग्रीन हाइड्रोजन इस्पात और उर्वरक जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन कम करने में मदद कर सकता है। यह लंबी दूरी की ढुलाई और परिवहन को ग्रीन हाउस गैसों से मुक्त करने में भी मदद कर सकता है।
ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस के अनुसार, 2022 के आखिर तक भारत की इलेक्ट्रोलाइजर फैक्ट्रियों की पाइप लाइन अनुमानित वैश्विक क्षमता के बराबर हो जाएगी, जो लगभग 7 गीगावॉट है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2021 में दिल्ली में लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। तब से भारत ने नीति और उद्योग दोनों मोर्चों पर अहम प्रगति देखी है।
मुकेश अंबानी और गौतम अडानी जैसे शीर्ष उद्योगपतियों ने भारत को ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाने के लिए बड़े पैमाने पर योजनाओं की घोषणा की है। सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि वह ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए स्वच्छ ऊर्जा बनाने वाली रिन्यू पावर और इंजीनियरिंग की दिग्गज कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के साथ मिलकर काम करेगा। कई अन्य निजी फर्मों ने भी ग्रीन हाइड्रोजन में प्रवेश करने की घोषणा की है। सितंबर में, स्टील निर्माता कोरियाई कंपनी पोस्को ने ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए अक्षय ऊर्जा कंपनी ग्रीनको ज़ीरोसी के साथ समझौता किया।
विशेषज्ञों का कहना है कि विकासशील देश ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को एक अवसर की तरह ले रहे हैं। दरअसल, चीन और भारत जैसे देशों में कोयले से बनने वाली बिजली की तुलना में अक्षय ऊर्जा की लागत, खासकर सौर ऊर्जा सस्ती हो गई है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में ऊर्जा पर प्लेटफॉर्म क्रिएटर नोम बूसिडन ने कहा, “ग्रीन हाइड्रोजन वैश्विक डीकार्बोनाइजेशन के लिए अहम है।” “ट्रकिंग, शिपिंग और स्टील को ग्रीन हाइड्रोजन के बढ़े हुए उत्पादन से फायदा होगा।”
धनी देश खासकर यूरोपीय यूनियन ग्रीन हाइड्रोजन की अपनी अधिकांश ज़रूरतों को आयात करने का इरादा रखता है जो अभी शुरुआती चरण में है। इसकी वजह है कि तकनीक अभी भी बदल रही है और लागत बहुत ज्यादा है।
मांग बनाना बड़ी चुनौती
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन में ऊर्जा विभाग के निदेशक तारेक एमतैराह ने कहा, “अगर हम ग्रीन हाइड्रोजन के लिए मजबूत बाजार चाहते हैं, तो हमें इसका इस्तेमाल करने वालों तक पहुंचने की जरूरत है। खासकर स्टील और सीमेंट जैसे कार्बन सघन उद्योगों में सार्वजनिक खरीद पर जोर देना होगा।”
वह कहते हैं, “यह भी सच है कि अधिकांश कार्बन-सघन उद्योग दुनिया के दक्षिणी हिस्से में लग रहे हैं।”
हालांकि अब ग्रीन हाइड्रोजन को कार्बन उत्सर्जन में कटौती का एक व्यावहारिक तरीका माना जा रहा है। लेकिन प्रौद्योगिकी को जरूरत के हिसाब से बढ़ाने और इसे लागत के हिसाब से प्रभावी बनाने में बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि यह भी पक्का नहीं है कि मांग उसी अनुपात में बढ़ेगी और शायद परिवहन और उद्योग में यह ईंधन पहली पसंद नहीं बने।
बूसिडन ने कहा, “हमें मौजूदा ग्रीन हाइड्रोजन स्थिति का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिए।” मार्केट रिसर्चर प्रीसीडेंस रिसर्च के अनुसार, दुनिया भर में ग्रीन हाइड्रोजन बाजार का मूल्य 2021 में 1.83 अरब डॉलर था और 2030 तक इसके 89.18 अरब डॉलर से ज़्यादा होने की उम्मीद है, जो 2021 से 2030 तक 54% की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ रहा है। प्रीसीडेंस ने कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र ग्रीन हाइड्रोजन बाजार में सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है।
अंतरराष्ट्रीय परामर्श संस्था डेलोइट में जलवायु रणनीति के वैश्विक नेता बर्नहार्ड लोरेंत्ज़ ने कहा कि जब तक हाइड्रोजन का निर्माण उत्सर्जन-मुक्त नहीं हो जाता, तब तक बाजारों को कम कार्बन तकनीक से बने ग्रे हाइड्रोजन को भी देखना चाहिए। लोरेंत्ज़ ने कहा, “सेक्टर में अभी भी जोखिम बहुत ज्यादा है और हाइड्रोजन परियोजनाओं की बैंकेबिलिटी (पैसा बनाने की क्षमता) अभी भी एक मसला है।”
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के बाउसिडन ने कहा कि बड़े कर्जदाताओं के बीच हाइड्रोजन पहल की स्वीकार्यता बढ़ाने का एक तरीका प्रमाणीकरण है। उन्होंने कहा कि ग्रीन और ग्रे हाइड्रोजन के लिए अलग-अलग बेंचमार्क हो सकते हैं।
ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारत दुनिया में तीसरे पायदान पर है। लेकिन यहां हालात दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग हैं। अक्षय ऊर्जा की लागत में तेजी से गिरावट ने सरकार को देश की कार्बन मुक्त हाइड्रोजन महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है।
यह पता चला है कि केंद्र सरकार इलेक्ट्रोलाइजर और ग्रीन हाइड्रोजन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन स्कीम (पीएलआई) के लिए 6000-6000 करोड़ रुपए आवंटित करने वाली है। 20 हजार करोड़ रुपये के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से ये रकम दी जाएगी। ऊर्जा मंत्री आरके. सिंह ने पिछले महीने कहा था कि इन दोनों के लिए अलग-अलग पीएलआई होगी। “लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन के निर्माण के लिए पीएलआई सिर्फ शुरुआती क्षमताओं को बढ़ाने के लिए जरूरी होगा, शायद चालीस या पचास लाख टन। इसके बाद ग्रीन हाइड्रोजन अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा।”
माना जाता है कि नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रीन हाइड्रोजन खपत दायित्वों, सब्सिडी और मानकों का विवरण देते हुए एक कैबिनेट नोट पेश किया है। घरेलू ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग को विकसित करने और बाजार में कीमतों को कम करके भारत में इसे अपनाने के लिए ये प्रमुख मददगार प्रावधान होंगे।
इस साल फरवरी में पेश की गई भारत की ग्रीन हाइड्रोजन नीति में सस्ती अक्षय ऊर्जा, जून 2025 से पहले चालू परियोजनाओं के लिए 25 साल के लिए अंतरराज्यीय बिजली ट्रांसमिशन के लिए वित्तीय छूट, ऊर्जा पार्कों में सस्ती जमीन और स्थानीय हाइड्रोजन उद्योग के लिए विनिर्माण क्षेत्रों की पेशकश करने का वादा किया गया है।
ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में बढ़ता निजी निवेश
भारत के नए ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में सबसे उत्साहजनक संकेत भारत के उद्योगपतियों और बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा दिखाई गई दिलचस्पी है। रिलायंस इंडस्ट्रीज और अडानी समूह जैसे बड़े समूहों ने ग्रीन हाइड्रोजन में भारी निवेश करना शुरू कर दिया है।
रिलायंस ने कहा है कि वह न सिर्फ ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करेगा बल्कि इलेक्ट्रोलाइजर बनाने के लिए कारखाने भी लगाएगा। इसके लिए कंपनी ने अगले पांच-सात सालों में 20 अरब डॉलर का भारी निवेश करने की घोषणा की है। इसी तरह, एलएंडटी ने इलेक्ट्रोलाइजर बनाने की योजना की घोषणा की है। इसने हाल ही में ग्रीन हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने की खातिर रिसर्च करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे से हाथ मिलाने की घोषणा भी की है।
देश के सबसे बड़े परिवहन ईंधन के खुदरा विक्रेताओं में एक, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने भी उत्तर प्रदेश में अपनी मथुरा रिफाइनरी में ग्रीन हाइड्रोजन कारखाना लगाने की योजना की घोषणा की है। गेल भारत का सबसे बड़ा ग्रीन हाइड्रोजन संयंत्र बनाने की योजना बना रहा है। कुछ ऐसा ही सरकार के मालिकाना हक वाली नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) भी कर रही है।
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मुकेश अंबानी ने एशिया इकोनॉमिक डायलॉग कार्यक्रम में फरवरी में कहा था, “वास्तव में हम मानते हैं कि अगले दशक में हम ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत एक डॉलर प्रति किलो पर लाएंगे। इसके बाद हमारी कोशिश इसका ट्रांसपोर्ट और इसे वितरित करने की कीमत एक डॉलर से नीचे लाने की होगी।”
यूरोपीय आयोग की जुलाई 2020 की हाइड्रोजन रणनीति के अनुसार नवीकरणीय संसाधनों से बनने वाली हाइड्रोजन की लागत तीन डॉलर प्रति किलोग्राम और 6.55 डॉलर किलोग्राम के बीच है। वहीं जीवाश्म आधारित हाइड्रोजन की लागत लगभग 1.80 डॉलर प्रति किलोग्राम है।
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत लगभग 500 रुपये प्रति किलोग्राम है। सरकार को अपनी नीतिगत पहलों के माध्यम से ग्रीन हाइड्रोजन के निर्माण की लागत को 40-50% तक कम होने की उम्मीद है।
हालिया प्रगति भारत को 2025 तक आठ गीगावाट क्षमता के साथ हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन के लिए एक प्रमुख आधार के रूप में उभरता हुआ देख सकता है। विश्लेषक समूह रिस्टैड एनर्जी के अनुसार, पश्चिम की कंपनियां भी साझा उद्यमों के माध्यम से भारत के ग्रीन हाइड्रोजन बाजार में प्रवेश कर रही हैं।
आठ गीगावाट का यह आंकड़ा सात फैक्ट्री परियोजनाओं, तीन साझा उपक्रमों और तीन एकल निवेशों में नौ कंपनियों की कुल योजनाओं से प्राप्त हुआ है। रिस्टैड ने कहा कि भारत का ग्रीनको बेल्जियम के जॉन कॉकरिल और नेवादा स्थित ओहमियम के साथ साझेदारी में दो गीगावाट का कारखाना लगा रहा है।
डेनमार्क की स्टीडल के साथ मिलकर रिलायंस और नॉर्वे की हाइड्रोजन प्रो के साथ साझेदारी में एलएंडटी इलेक्ट्रोलाइजर फैक्ट्रियां बना रही है। रिस्टैड ने कहा कि भारत के सबसे अमीर व्यक्ति गौतम अडानी ने 2030 तक 30 लाख टन हाइड्रोजन का उत्पादन करने की अपनी हाल ही में घोषित योजना में पहले कदम के रूप में एक गीगावॉट कारखाने के लिए वित्तपोषण किया है। इसके लिए 16 गीगावॉट की इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता की जरूरत होगी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय कंपनियां देसी कंपनियों की पूंजी और पश्चिम के देशों से तकनीकी जानकारी लेकर स्थानीय उद्योग को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं।
वसुधा फाउंडेशन के कृष्णास्वामी ने कहा, “इस क्षेत्र के लिए यह अभी शुरुआत है, लेकिन रिलायंस और अडानी जैसी बड़ी कंपनियों ने निवेश की घोषणा की है। ओहमियम जैसे कई स्टार्ट-अप इलेक्ट्रोलाइज़र बनाने के लिए आ रहे हैं। मुझे लगता है कि भारत बड़ी मात्रा में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकता है।”
विशेषज्ञ अब कह रहे हैं कि हाइड्रोजन बहुत ज्यादा कार्बन वाले औद्योगिक क्षेत्र में विघटनकारी ताकत के रूप में काम करेगा। यह नहीं यह भारत की ऊर्जा संक्रमण यात्रा की गति भी तय करेगा। उन्होंने कहा कि यह भारत की नेट-ज़ीरो महत्वाकांक्षा को हासिल करने में भी अहम भूमिका निभाएगा।
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बैनर तस्वीर: मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में ग्रीन हाइड्रोजन और डीकार्बोनाइजिंग अर्थव्यवस्थाओं में इसकी भूमिका चर्चा का एक अहम बिंदु रहा है। तस्वीर: आईआईएसडी/ईएनबी