[वीडियो] हसदेव अरण्य और लेमरु हाथी रिजर्व: कोयले की चाह, सरकारी चक्र और पंद्रह साल का लंबा इंतजार

पूरे देश में सर्वाधिक कोयला उत्पादन करने वाले छत्तीसगढ़ में 5990.78 करोड़ टन कोयला का भंडार है। यह देश में उपलब्ध कुल कोयला भंडार का करीब 18.34 फ़ीसदी है। छत्तीसगढ़ के पर्यावरण हितैशी संगठनों का आरोप है कि कोयला खदानों के लोभ में जंगलों से हाथी बेदखल किये जा रहे हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

हाथी अभ्यारण्य  में कोयला खदान

राज्य सरकार के दस्तावेज़ के अनुसार लेमरू हाथी अभ्यारण्य  के लिए घोषित 1995.48 वर्ग किलोमीटर के दायरे में मांड-रायगढ़ कोयला प्रक्षेत्र के 11 कोल ब्लॉक का क्षेत्र भी शामिल है। इसके अलावा प्रस्तावित हाथी अभ्यारण्य  के 10 किलोमीटर के बफर क्षेत्र में भी मांड-रायगढ़ के 12 कोल ब्लॉक शामिल हैं।

कुल मिलाकर राज्य के 184 में से 54 कोल ब्लॉक हाथी अभ्यारण्य  के दायरे में आ रहे हैं।

इन कोयला खदानों के कारण मंत्रीमंडल की मंजूरी के लगभग 20 महीने बाद भी लेमरू हाथी अभ्यारण्य  को अब तक अधिसूचित नहीं किया गया है।

वन्यजीव विशेषज्ञ और राज्य सरकार की वन्यजीव बोर्ड की सदस्य मीतू गुप्ता का कहना है कि पिछले कई सालों से लेमरू हाथी अभ्यारण्य  का मामला अटका हुआ है और नई सरकार के फ़ैसले के बाद भी इस पर मुहर नहीं लगी है जिसके कारण वन और वन्यजीव लगातार ख़तरे में है।

मोंगाबे-हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में लगभग 300 हाथी हैं और लगातार खनन के कारण ये हाथी पूरे राज्य भर में भटक रहे हैं। लेकिन कोयला खदानों के कारण हाथी अभ्यारण्य  बनाने की सरकारी घोषणा अधर में लटकी हुई है।”

हाथियों का आशियाना छिनने से स्थानीय लोग इसके दुष्परिणाम झेल रहे हैं। पिछले 20 सालों में राज्य में 162 हाथियों की मौत हो चुकी है और अधिकांश मौत हाथी-मानव संघर्ष का परिणाम हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल
हाथियों का आशियाना छिनने से स्थानीय लोग इसके दुष्परिणाम झेल रहे हैं। पिछले 20 सालों में राज्य में 162 हाथियों की मौत हो चुकी है और अधिकांश मौत हाथी-मानव संघर्ष का परिणाम हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

प्रस्तावित लेमरु हाथी अभ्यारण्य  का घटता-बढ़ता दायरा

वर्ष 2005 में 450 वर्ग किलोमीटर में और 2019 में 1995.48 वर्ग किलोमीटर इलाके में लेमरू हाथी अभ्यारण्य  बनाये जाने की घोषणा हुई। पर्यावरण मामलों के जानकार लोगों ने राज्य सरकार से अनुरोध किया कि हसदेव अरण्य और मांड रायगढ़ के जलग्रहण क्षेत्र में भी कोयला खनन की अनुमति नहीं देनी चाहिए और इसे भी लेमरू हाथी अभ्यारण्य  में शामिल किया जाना चाहिए।

तर्क ये था कि हसदेव अरण्य और मांड रायगढ़ के जिन इलाकों को हाथी अभ्यारण्य  में शामिल नहीं किया गया है, उन्हीं इलाकों में हाथियों का आवागमन और प्रवास अधिक है।

जिन इलाकों को हाथी अभ्यारण्य  में शामिल करने की मांग की गई, उससे वन विभाग ने भी सहमति जताई। वन विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार हसदेव अरण्य के जिन 18 कोयला खदानों में खनन नहीं करने और उन्हें लेमरू हाथी अभ्यारण्य  में शामिल करने का फ़ैसला लिया गया। उसमें परसा, केते-एक्सटेंशन, गिधमुड़ी-पतुरिया, तारा, पेंडराखी, पुटा परोगिया, मदनपुर उत्तर, मदनपुर दक्षिण, मोरगा-1, मोरगा-2, मोरगा-3, मोरगा-4, मोरगा दक्षिण, सैदू उत्तर व दक्षिण, नकिया-1-2-3, भकुर्मा मतरिंगा, लक्ष्मणगढ़ और सरमा कोयला खदान शामिल हैं।

इसके बाद राज्य सरकार ने आरंभिक तौर पर 1995.48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के लेमरू हाथी अभ्यारण्य  का क्षेत्रफल बढ़ा कर 3827 वर्ग किलोमीटर करने पर सहमति जताई और प्रस्तावित इलाकों में वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 36 (ए) के तहत ग्रामसभाओं में चर्चा शुरु की गई।

पर इन सब प्रक्रियाओं के बीच ही केंद्र सरकार ने प्रस्तावित इलाके में कोल खदानों की नीलामी की प्रक्रिया शुरु की। राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिख कर अपनी आपत्ति दर्ज़ कराई। इन्होंने केंद्र से अनुरोध किया कि आगामी कोल ब्लाक नीलामी में हसदेव अरण्य एवं उससे सटे मांड नदी के जल ग्रहण क्षेत्र तथा प्रस्तावित हाथी अभ्यारण्य  की सीमा में आने वाले क्षेत्रों में स्थित कोल ब्लाकों को शामिल न किया जाए।

केंद्र सरकार ने इसे माना और कई कोल ब्लॉक को नीलामी की सूची से बाहर कर दिया। हालांकि, छत्तीसगढ़ की तीन नई कोयला खदानों को इस सूची में जोड़ लिया गया।

विरोध, भूमि अधिग्रहण और सरकारी मंशा

खत का सिलसिला फिर शुरू हुआ। जनवरी 11 को राज्य के खनिज सचिव ने केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय के सचिव को पत्र लिखा। इस खत में मदनपुर दक्षिण और 19 जनवरी को केते एक्सटेंशन कोयला खदान की नीलामी के तहत आवंटन पर रोक लगाने की मांग की गयी।

लेकिन इस बार बात नहीं बनी और केंद्र सरकार की कार्रवाई चलती रही। दिलचस्प ये है कि जिन कोयला खदानों में राज्य सरकार ने खनन नहीं करने का फ़ैसला किया था, उन्हीं खदानों में खनन के लिए केंद्र सरकार ने अब भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई शुरु कर दी है।

कोरबा ज़िले की कलेक्टर किरण कौशल का कहना है कि केंद्र सरकार ने कोयला धारक क्षेत्र अर्जन और विकास अधिनियम 1957 की धारा 7 की उपधारा 1 के प्रावधानों का उपयोग करते हुए भूमि अर्जन के लिए जो अधिसूचना भारतीय राजपत्र में जारी की है, उस पर फ़िलहाल आगे कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.

उन्होंने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “ग्राम सभाओं ने कोयला खनन के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया है। ज़मीन अधिग्रहण के लिए जारी अधिसूचना पर फिलहाल तो कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। आगे शासन से जो निर्देश मिलेंगे, उसी के अनुरुप कार्रवाई की जाएगी।”


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छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं- “हाथियों के इस घर में कोयला खनन पर इतना जोर जरूरत के लिए नहीं बल्कि मुनाफे के लिए है.” आलोक शुक्ला का कहना है कि खुद छत्तीसगढ़ सरकार भैयाथान के जिस बिजली परियोजना के लिए पतुरिया-गिधमुड़ी में कोयला खनन करना चाहती थी, वह परियोजना ही रद्द हो गई, इसके बाद भी कोयला खदान का आवंटन रद्द नहीं किया गया। ऐसी ही स्थिति कुछ अन्य कोयला खदानों के साथ है।

हालांकि वन्यजीव विशेषज्ञ मीतू गुप्ता का कहना है कि क़ानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाएं अपनी जगह हैं लेकिन अगर राज्य सरकार सच में लेमरू हाथी अभ्यारण्य  बनाना चाहती है तो इस हाथी अभ्यारण्य  को अधिसूचित करना उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

वे कहती हैं, “सरकार को चाहिए कि जितने इलाके पर सहमति बन रही है, उतने इलाके को तो हाथी अभ्यारण्य  के तौर पर अधिसूचित कर दे। अभी तो लेमरू हाथी अभ्यारण्य  फ़ाइलों में ही है। इसे धरातल पर उतारे बिना न तो हसदेव अरण्य के जंगल बचेंगे और ना हाथियों की जान। आख़िर कोयला खदानों से संबंधित फारेस्ट क्लियरेंस पर अंतिम फ़ैसला लेना तो राज्य सरकार के पाले में है। राज्य सरकार क्या चाहती है, यह सबसे महत्वपूर्ण है।”

बैनर तस्वीरः छत्तीसगढ़ में कुल 12 कोयला प्रक्षेत्र के 184 कोयला खदानों में से, सर्वाधिक 90 कोल ब्लॉक मांड-रायगढ़ में और 23 कोल ब्लॉक हसदेव-अरण्य के जंगलों में हैं। खनन की वजह से हाथियों का आशियाना छिन रहा है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

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