कृषि News

मारुथाचलम के खेत में तेज गर्मी में भी अजोला पनपता है, जो उनके चार एकड़ के जैविक खेत में उपलब्ध प्राकृतिक रेत और ताजे पानी की बदौलत नारियल के पेड़ों की छाया में मज़बूती से बढ़ता है। तस्वीर- गौतमी सुब्रमण्यम द्वारा मोंगाबे के लिए।

जलीय पौधे अज़ोला से हो सकता है चारे की कमी का समाधान

लगभग सात साल पहले, तमिलनाडु के थेनी के 41 वर्षीय पोल्ट्री किसान सुरुलीनाथन एस. ने मुर्गियों के चारे के रूप में अज़ोला नामक जलीय पौधे का उपयोग करना सीखा। वह…
मारुथाचलम के खेत में तेज गर्मी में भी अजोला पनपता है, जो उनके चार एकड़ के जैविक खेत में उपलब्ध प्राकृतिक रेत और ताजे पानी की बदौलत नारियल के पेड़ों की छाया में मज़बूती से बढ़ता है। तस्वीर- गौतमी सुब्रमण्यम द्वारा मोंगाबे के लिए।
बार-बार मौसम की प्रतिकूल घटनाओं और फसल के नुकसान ने वायनाड के किसानों को नया कृषि कैलेंडर तैयार करने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें खेती-बाड़ी के पारंपरिक ज्ञान और मौसम में बदलाव को शामिल किया गया है। तस्वीर - अभिषेक एन. चिन्नाप्पा/मोंगाबे।

मौसम में बदलाव से पार पाने के लिए नए कृषि कैलेंडर से किसानों को उम्मीदें

वायनाड के किसान राजेश कृष्णन कहते हैं, " शायद हम जिंदगी में बहुत सारी चीजें अपनी चिंता की वजह से करते हैं।" वह खेती के उन "मुश्किल सालों" को याद…
बार-बार मौसम की प्रतिकूल घटनाओं और फसल के नुकसान ने वायनाड के किसानों को नया कृषि कैलेंडर तैयार करने के लिए प्रेरित किया है, जिसमें खेती-बाड़ी के पारंपरिक ज्ञान और मौसम में बदलाव को शामिल किया गया है। तस्वीर - अभिषेक एन. चिन्नाप्पा/मोंगाबे।
नेपााल के सप्तसरी जिले में कोसी नदी से लकड़ियां ले जाता एक ग्रामीण। कोसी नदी में भारी मात्रा में लकड़ियां पहाड़ पर से बहकर आयी हैं, जिसे जगह-जगह लोग नदी से चुनते दिखे। तस्वीर- राहुल सिंह मोंगाबे के लिए

बिहार में बाढ़ की एक बड़ी वजह कोसी में जमी गाद, क्या है समाधान?

नेपाल के सप्तरी जिले के 63 वर्षीय रामेश्वर यादव माहुली नदी के एक नंबर पुल से कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे हैं। उनके साथ हैं 74…
नेपााल के सप्तसरी जिले में कोसी नदी से लकड़ियां ले जाता एक ग्रामीण। कोसी नदी में भारी मात्रा में लकड़ियां पहाड़ पर से बहकर आयी हैं, जिसे जगह-जगह लोग नदी से चुनते दिखे। तस्वीर- राहुल सिंह मोंगाबे के लिए
देवमति सिंह अपने घर के नजदीक किचन गार्डन में अपने बच्चों के साथ। तस्वीर-ऐश्वर्या मोहंती

सौर ऊर्जा से जीवन में बड़ा बदलाव, दूर हुआ कुपोषण

छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव में रहने वाली 30 वर्षीय देवमती सिंह पिछले कई सालों से अपनी एक एकड़ की जमीन पर धान और आलू की खेती करती आ…
देवमति सिंह अपने घर के नजदीक किचन गार्डन में अपने बच्चों के साथ। तस्वीर-ऐश्वर्या मोहंती
असम के बारपेटा में बिहार के प्रवासी मधुमक्खी पालक। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 

[वीडियो] शहद की तलाश में मधुमक्खियों के साथ यात्रा कर रहे किसान, बेहतर हुआ शहद उत्पादन

असम के नुमालीगढ़ क्षेत्र के बोरसापोरी गांव के दूर क्षितिज पर सूरज डूब रहा था। दूर-दूर तक फैले सरसों के खेतों में मधुमक्खियों की भिनभिनाहट के बीच लीला चरण दत्ता…
असम के बारपेटा में बिहार के प्रवासी मधुमक्खी पालक। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 

‘ऑपरेशन भेड़िया’ ने उजागर की उत्तर प्रदेश की वन्यजीव संरक्षण की खामियां

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के वन अधिकारियों ने तब राहत की सांस ली जब उन्होंने छः भेड़ियों के एक झुंड में से पांच भेड़ियों को पकड़ लिया। इन भेड़ियों…
केसला पोल्ट्री सोसाइटी के साथ पोल्ट्री किसान सुशीला पारथे अपनी मुर्गियों की देखभाल कर रही हैं। तस्वीर- बबलेश मस्कोले/केसला पोल्ट्री सोसाइटी।

पशु और मुर्गीपालन में गर्मी के तनाव को कैसे कम कर सकते हैं नए शेड डिजाइन

साल 2020 के गर्मी के दिनों में सावित्री भांसे अपने छोटे से घर के पीछे बने खेत में मुर्गियों की देखभाल करने गई थीं। लेकिन मुर्गियों की देखभाल करने और…
केसला पोल्ट्री सोसाइटी के साथ पोल्ट्री किसान सुशीला पारथे अपनी मुर्गियों की देखभाल कर रही हैं। तस्वीर- बबलेश मस्कोले/केसला पोल्ट्री सोसाइटी।
ऑटोमेटिक सिंचाई सिस्टम के पास खड़े हुए बिनोद कुमार महतो। तस्वीर- विशाल कुमार जैन

झारखंड में तकनीक की मदद से खेती में मिलती सिंचाई, मौसम और बीमारियों की सटीक जानकारी

बात साल 2020 की है, जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी और काम-धंधे बंद हो रहे थे। इन सबके बीच 10 साल से पुणे में बैंक मार्केटिंग का…
ऑटोमेटिक सिंचाई सिस्टम के पास खड़े हुए बिनोद कुमार महतो। तस्वीर- विशाल कुमार जैन
राम-मोल किसान खरपतवार हटाने के लिए हल्की जुताई जैसी प्राकृतिक खेती तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसे स्थानीय भाषा में विखेड़ा कहा जाता है। तस्वीर- सात्विक-प्रमोटिंग इकोलॉजिकल एग्रीकल्चर के सौजन्य से।

सूखे इलाकों में फसल उगाने के लिए परंपरागत राम-मोल कृषि तकनीक पर भरोसा

मई का महीना करीब है और कच्छ के धरमपुर गांव में सूरज अभी से आग बरसा रहा था। इसकी परवाह किए बिना मवाभाई डांगर अपने अरंडी की फसल का जायजा…
राम-मोल किसान खरपतवार हटाने के लिए हल्की जुताई जैसी प्राकृतिक खेती तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इसे स्थानीय भाषा में विखेड़ा कहा जाता है। तस्वीर- सात्विक-प्रमोटिंग इकोलॉजिकल एग्रीकल्चर के सौजन्य से।
कॉर्नवाल, यूके में थिक-लेग्ड फ्लावर बीटल। कीट जगत में अपनी अविश्वसनीय विविधता और प्रभुत्व के बावजूद, बीटल्स को अक्सर परागण में उनके योगदान के लिए नहीं पहचाना जाता है। तस्वीर- फ्लैपी पिजन/विकिमीडिया कॉमन्स

परागण के छोटे दिग्गज, ‘बीटल्स’ से मिलिए

परागण का जिक्र आते ही हमारे दिमाग में नेक्टर की तलाश में सुगंधित फूलों के ईर्द-गिर्द मंडराती मधुमक्खियां, तितलियां और लंबी चोंच वाले सनबर्ड घूमने लग जाते हैं। लेकिन एक…
कॉर्नवाल, यूके में थिक-लेग्ड फ्लावर बीटल। कीट जगत में अपनी अविश्वसनीय विविधता और प्रभुत्व के बावजूद, बीटल्स को अक्सर परागण में उनके योगदान के लिए नहीं पहचाना जाता है। तस्वीर- फ्लैपी पिजन/विकिमीडिया कॉमन्स
भागलपुर जिले के सबौर प्रखंड क्षेत्र के एक गांव में आम का बगीचा। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे के लिए

भागलपुर के मशहूर जर्दालू आम के किसान के सामने क्या हैं चुनौतियां?

बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव प्रखंड के सिमरो गांव के 50 वर्षीय कृष्णानंद सिंह एक ऐसे किसान हैं जिन्होंने खुद को परंपरागत खेती से आम की खेती की ओर…
भागलपुर जिले के सबौर प्रखंड क्षेत्र के एक गांव में आम का बगीचा। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे के लिए
एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।

खाद्यान का नुकसान कम करने और किसानों की आय बढ़ाने वाली तकनीकें

कल्पना कीजिए कि आप टमाटर की खेती करने वाले किसान हैं। आपको सूखे का सामना करना पड़ा है। इससे पैदावार कम हुई है। फसल की गुणवत्ता भी खराब हुई है।…
एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।
बजट की तैयारी में शामिल अधिकारियों की ‘लॉक-इन’ प्रक्रिया शुरू होने से पहले हर साल एक पारंपरिक हलवा समारोह आयोजित किया जाता है। तस्वीर साभार- पीआईबी

एनडीए-3 का पहला बजट पर्यावरण अनुकूल, लेकिन अमल को लेकर संदेह बरकरार

पिछले महीने संपन्न हुए आम चुनावों में मिले झटकों के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को अपना सातवां बजट पेश किया। यह मौजूदा सरकार का पहला बजट…
बजट की तैयारी में शामिल अधिकारियों की ‘लॉक-इन’ प्रक्रिया शुरू होने से पहले हर साल एक पारंपरिक हलवा समारोह आयोजित किया जाता है। तस्वीर साभार- पीआईबी
बन्नी में खाने योग्य घास खेवई की एक डंडी लेकर दिखाते रसूल भाई (बाएं)। वाडा कोली समुदाय के दीना भाई विलायती बबूल के पेड़ की डाल से निकला गोंद दिखाते हुए। वह इस गोंद को पेड़ से इकट्ठा करते हैं और कच्छ के वन निगम में बेचते हैं। तस्वीर- अजेरा परवीन रहमान/मोंगाबे के लिए।

बन्नी की खाने वाली घासों के खतरा बन रहा है विलायती बबूल का फैलाव

गुजरात के कच्छ में स्थित बन्नी के घास के मैदान के निवासी रसूल भाई वह समय याद करते हैं जब उनके दादा-परदादा किस्से सुनाते थे कि कैसे वे खाने वाले…
बन्नी में खाने योग्य घास खेवई की एक डंडी लेकर दिखाते रसूल भाई (बाएं)। वाडा कोली समुदाय के दीना भाई विलायती बबूल के पेड़ की डाल से निकला गोंद दिखाते हुए। वह इस गोंद को पेड़ से इकट्ठा करते हैं और कच्छ के वन निगम में बेचते हैं। तस्वीर- अजेरा परवीन रहमान/मोंगाबे के लिए।
झाबुआ के सरकारी फार्म पर कड़कनाथ मुर्गा। इसका रंग काला होता है, इनका हर अंग यहां तक कि खून भी काला होता है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

जंगल से जीआई टैग तक, झाबुआ के काले मुर्गे कड़कनाथ की कहानी

किसान वीर सिंह (44) दानों से भरी एक टोकरी लेकर कुट-कुट, कुट-कुट की आवाज लगा रहे हैं। देखते ही देखते कई दर्जन काले मुर्गे चारों तरफ से उनकी तरफ दौड़ते…
झाबुआ के सरकारी फार्म पर कड़कनाथ मुर्गा। इसका रंग काला होता है, इनका हर अंग यहां तक कि खून भी काला होता है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
धान की बुआई। छत्तीसगढ़ में धान मुख्यतः खरीफ की फसल है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे

धान के बढ़ते समर्थन मूल्य के कारण हाशिये पर दलहन, तिलहन

देश भर में सर्वाधिक क़ीमत पर धान की ख़रीदी से छत्तीसगढ़ के किसानों की बांछे भले खिली हुई हों लेकिन राज्य में दूसरी फसलों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो…
धान की बुआई। छत्तीसगढ़ में धान मुख्यतः खरीफ की फसल है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे
अपने बैलों के साथ सुंडी बाई उइके। बैल मोटे अनाज के सूखे डंठलों के चारों तरफ घूमते हैं। इस प्रक्रिया में अनाज के दाने डंठल से अगल हो जाते हैं। तस्वीर - शुचिता झा/मोंगाबे।

मोटे अनाज से क्यों दूर हो रहे हैं मध्य प्रदेश के आदिवासी?

सुंडी बाई उइके मध्य प्रदेश के मांडला जिले के केवलारी गांव में रहती हैं। गांव में उनकी झोपड़ी मिट्टी और गाय के गोबर से लीपकर बनाई गई है। झोपड़ी के…
अपने बैलों के साथ सुंडी बाई उइके। बैल मोटे अनाज के सूखे डंठलों के चारों तरफ घूमते हैं। इस प्रक्रिया में अनाज के दाने डंठल से अगल हो जाते हैं। तस्वीर - शुचिता झा/मोंगाबे।
मेघालय के री भोई जिले में धान के खेत। मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की प्रजातियां इस क्षेत्र में संरचना बदल रही हैं और चावल के खेतों में तेजी से प्रजनन कर रही हैं। तस्वीर-वंदना के.

मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों ने बदला अपना बसेरा, जंगलों को छोड़ धान के खेतों में ढूंढी नई जगह

मलेरिया का जिक्र आते ही अक्सर घरों और आस पास भिनभिनाने वाले मच्छरों की तस्वीर हमारे दिमाग में घूमने लग जाती है। आपको ये जानकर थोड़ा हैरानी होगी कि पूर्वोत्तर…
मेघालय के री भोई जिले में धान के खेत। मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की प्रजातियां इस क्षेत्र में संरचना बदल रही हैं और चावल के खेतों में तेजी से प्रजनन कर रही हैं। तस्वीर-वंदना के.
अपने खेत में केले की फसल के साथ निशांत के.। उनके इस खेत में देशी और विदेशी किस्मों सहित फलों की लगभग 250 प्रजातियां हैं। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

केरल में किसानों ने उगाए अलग-अलग प्रकार के केले, पारंपरिक किस्मों के संरक्षण में मिली मदद

केरल के वायनाड जिले के 49 वर्षीय केला किसान निशांत के. ने कहा, "केरल के हर जिले का अपना पसंदीदा केला है।" अकेले उनके खेत में ही 250 से अधिक…
अपने खेत में केले की फसल के साथ निशांत के.। उनके इस खेत में देशी और विदेशी किस्मों सहित फलों की लगभग 250 प्रजातियां हैं। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे
ओडिशा के सुंदरगढ़ के फुलधुडी गांव में अपनी मशरूम की फसल के साथ खड़ी कुछ महिलाएं। तस्वीर- ऐश्वर्या मोहंती/मोंगाबे।

भूसे और पराली से मशरूम की खेती ने ओडिशा के गांवों की बदली तस्वीर

ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के फुलधुडी गांव में रहने वाली 30 साल की भारती प्रूसेच के घर के पीछे की जमीन कई साल से बंजर पड़ी थी। लेकिन आज यही…
ओडिशा के सुंदरगढ़ के फुलधुडी गांव में अपनी मशरूम की फसल के साथ खड़ी कुछ महिलाएं। तस्वीर- ऐश्वर्या मोहंती/मोंगाबे।
लीची के फूल पर मंडराती एक मधुमक्खी। बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 8400 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर में अधिक शहद उत्पादन की सबसे बड़ी वजह यहां लीची के साथ फूल और सरसो की अच्छी खेती है। तस्वीर- फ़ॉरेस्ट और किम स्टार/विकिमीडिया कॉमन्स

लीची शहद के लिए मशहूर बिहार उत्पादन में आगे, पर दूसरे राज्यों पर निर्भर किसान

बिहार के गया जिले में परैया मरांची गांव के चितरंजन कुमार 18-20 टन शहद का उत्पादन करते हैं। ठीक ऐसे ही, इस ही गाँव के निरंजन प्रसाद भी साल में…
लीची के फूल पर मंडराती एक मधुमक्खी। बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 8400 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर में अधिक शहद उत्पादन की सबसे बड़ी वजह यहां लीची के साथ फूल और सरसो की अच्छी खेती है। तस्वीर- फ़ॉरेस्ट और किम स्टार/विकिमीडिया कॉमन्स
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं। तस्वीर- सुमित यादव

सोलर फेंसिंग मशीन: यूपी के किसानों की जरूरत, ‘खेत सुरक्षा योजना’ करवा रही है इंतजार

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के किसान साल 2017 के बाद से खेतों की रखवाली करते हुए मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। आवारा गोवंशो और…
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं। तस्वीर- सुमित यादव
छतर सिंह ने स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर जैसलमेर में सैकड़ों खड़ीनों को पुनर्जीवित करने में मदद की है। तस्वीर- अमीर मलिक/मोंगाबे

[वीडियो] खड़ीन: राजस्थान में जल संग्रह की परंपरागत तकनीक से लहलहाती फसलें

"मान लो, आपकी हथेली जैसलमेर का कोई इलाका है और आपकी हथेली के बीच तक पहुंचने वाली ढलान खड़ीन है।” आसान से शब्दों में खड़ीन का मतलब समझाते हुए किसान…
छतर सिंह ने स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर जैसलमेर में सैकड़ों खड़ीनों को पुनर्जीवित करने में मदद की है। तस्वीर- अमीर मलिक/मोंगाबे
हाथ की चक्की पर बाजरे को पीसती हुई अट्टापडी में एक आदिवासी महिला। तस्वीर-मैक्स मार्टिन/मोंगाबे

लुप्त होती परंपरा बचाने के लिए केरल के आदिवासियों ने दोबारा शुरू की बाजरे की खेती

केरल के अट्टापडी हाइलैंड्स में आदिवासी बस्तियों के किनारे पहाड़ी जंगलों में एक बार फिर से बाजरा के लहलहाते खेत नजर आने लगे हैं। यह इलाका पश्चिमी घाट के वर्षा…
हाथ की चक्की पर बाजरे को पीसती हुई अट्टापडी में एक आदिवासी महिला। तस्वीर-मैक्स मार्टिन/मोंगाबे
झारखंड के आदिवासी हाट में सागों को सुखाकर भी बेचा जाता है। तस्वीर- विनीता परमार और कुशाग्र राजेन्द्र

झारखंड की गुमनाम साग-भाजी में छुपी है पोषण की गारंटी

सितम्बर महीने का वो दिन स्वाद में रच-बस गया, जब दोपहर के भोजन में झारखंड की थालियों की शान गरमागरम भात,दाल,सब्जी के साथ साग और चटनी परोसी गयी। परोसे गए…
झारखंड के आदिवासी हाट में सागों को सुखाकर भी बेचा जाता है। तस्वीर- विनीता परमार और कुशाग्र राजेन्द्र
पहाड़ी नाली बनाने में अन्य मजदूरों का सहयोग करतीं चामी मुर्मू। पहाड़ पर जब बारिश होती है तो पानी तेजी से नीचे आता है, जिसे इस नाली की मदद से इकट्ठा किया जाता है। तस्वीर साभार- सहयोगी महिला

चामी मुर्मू: पेड़ और पानी से होते हुए पद्म श्री तक का सफर

32 साल में लगाए 30 लाख पेड़। हर दिन करीब 257 पौधे।   71 गांवों में चार अमृत सरोवर सहित कुल 217 तालाबों का निर्माण।  263 गांवों में बनाए 2873 स्वयं…
पहाड़ी नाली बनाने में अन्य मजदूरों का सहयोग करतीं चामी मुर्मू। पहाड़ पर जब बारिश होती है तो पानी तेजी से नीचे आता है, जिसे इस नाली की मदद से इकट्ठा किया जाता है। तस्वीर साभार- सहयोगी महिला
जंगलों को कानूनी और गैर-कानूनी दोनों तरह से काटा जा रहा है, जिसकी वजह से मिट्टी का क्षरण हो रहा है। बारिश और बाढ़ में मिट्टी बह जाती है। तस्वीर- रमेश मेनन 

(कमेंट्री) भारत में मिट्टी को नहीं सहेजा तो यह लाखों लोगों के विनाश का कारण बन जाएगी

दुनिया में अग्रणी बनने के अपने सपने के साथ भारत आगे बढ़ रहा है। लेकिन कृषि जगत के कुछ जरूरी मुद्दों पर उसका ध्यान बेहद कम है। इन्हीं में से…
जंगलों को कानूनी और गैर-कानूनी दोनों तरह से काटा जा रहा है, जिसकी वजह से मिट्टी का क्षरण हो रहा है। बारिश और बाढ़ में मिट्टी बह जाती है। तस्वीर- रमेश मेनन 
अरुणाचल प्रदेश में ऊंचाई वाले पहाड़ पर चराई करता याक। छुरपी जैसे याक के दूध से बनी चीजें याक पालने वाले ब्रोकपा पशुपालक समुदाय के लिए आजीविका का बेहतर विकल्प बन रहे हैं। तस्वीर - सुरजीत शर्मा/मोंगाबे।

[वीडियो] याक के दूध से बनी चीजें ब्रोकपा समुदाय को दे रही आय के नए साधन

अरुणाचल प्रदेश के बाज़ारों में घूमते हुए आपको मौसमी कीवी, ख़ुरमा, मेवे वगैरह सहित कई तरह के स्थानीय व्यंजन मिल जाएंगे। सर्दियों की शुरुआत के साथ ही राज्य में आने…
अरुणाचल प्रदेश में ऊंचाई वाले पहाड़ पर चराई करता याक। छुरपी जैसे याक के दूध से बनी चीजें याक पालने वाले ब्रोकपा पशुपालक समुदाय के लिए आजीविका का बेहतर विकल्प बन रहे हैं। तस्वीर - सुरजीत शर्मा/मोंगाबे।
मालिया मछली बाज़ार। जिंजर झींगा (मेटापेनियस कचेंसिस) कच्छ की खाड़ी की एक स्थानिक प्रजाति है और इसकी मछली पकड़ना यहां आजीविका का प्राथमिक स्रोत है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे

कच्छ में बढ़ते नमक उत्पादन से सिमट रहा झींगा कारोबार

गुजरात के कच्छ का सूरजबाड़ी ब्रिज डीजल का धुआं, धूल, ट्रक और ट्रेन की आवाज से आपका स्वागत करता है। आगे बढ़ने पर उस ब्रिज से नमक का मैदान दिखना…
मालिया मछली बाज़ार। जिंजर झींगा (मेटापेनियस कचेंसिस) कच्छ की खाड़ी की एक स्थानिक प्रजाति है और इसकी मछली पकड़ना यहां आजीविका का प्राथमिक स्रोत है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे
गुजरात के कच्छ में पनीर बनाने वाले अर्पण कलोत्रा और पंचाल डेयरी के भीमसिंहभाई घांघल बकरी के दूध से पनीर बनाते हुए। तस्वीर - पांचाल डेयरी।

भेड़, बकरी और ऊंटनी के दूध से बने चीज़ में बढ़ रही दिलचस्पी, बड़ा हो रहा बाजार

पिछले दिनों चेन्नई में अलग-अलग मवेशियों के दूध से बने चीज़ को टेस्ट करने का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। यहां रखी गई चीज़ की किस्मों में से एक ताजा…
गुजरात के कच्छ में पनीर बनाने वाले अर्पण कलोत्रा और पंचाल डेयरी के भीमसिंहभाई घांघल बकरी के दूध से पनीर बनाते हुए। तस्वीर - पांचाल डेयरी।