Articles by Shailesh Shrivastava

एक नए सूचकांक के मुताबिक, पूर्व की तुलना में पश्चिमी हिमालय ज्यादा खतरे में है

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (IIT-M) के शोधार्थियों द्वारा बनाए गए एक नए क्लाइमेट रिक्स इंडेक्स यानि जलवायु के संकट को मापने वाले सूचकांक के जरिए पता चला है कि पूर्वी…
नासिक जिले के किसान दिगंबर अशोक काटे अपने अंगूर के बागान की सुरक्षा प्लास्टिक कवर से करते हैं। तस्वीर- अरविंद शुक्ला।

अंगूर को अचानक बदलने वाले मौसम से बचाते हैं फसल के कवर

महाराष्ट्र के नासिक जिले में पिछले साल नवंबर में कई बार बेमौसम बारिश हुई और ओले भी पड़े। यह बारिश इतनी जोरदार थी कि सारे खेत ओलों से पट गए…
नासिक जिले के किसान दिगंबर अशोक काटे अपने अंगूर के बागान की सुरक्षा प्लास्टिक कवर से करते हैं। तस्वीर- अरविंद शुक्ला।
एकलव्य फाउंडेशन की ग्रीन बिल्डिंग धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटो से बनी है जिस से यह दूसरी इमारतों के मुकाबले ठंडी रहती है। तस्वीर- एकलव्य फाउंडेशन

भोपाल की यह ईको-फ्रेंडली इमारत है पर्यावरण के लिए लाभकारी

मई और जून के महीनों में बाहर पड़ रही भीषण गर्मी के बावजूद भी भोपाल के एकलव्य फाउंडेशन के कर्मचारी एक पंखे के नीचे खुश हैं। उन्हें दूसरे दफ्तरों के…
एकलव्य फाउंडेशन की ग्रीन बिल्डिंग धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटो से बनी है जिस से यह दूसरी इमारतों के मुकाबले ठंडी रहती है। तस्वीर- एकलव्य फाउंडेशन
स्पोटेड पोटेटो लेडीबर्ड बीटल जो आलू, टमाटर, बैंगन और मिर्च की फसल को नुकसान पहुंचाता है। तस्वीर - arian.suresh/विकिमीडिया कॉमन्स।

बढ़ते तापमान से बढ़ेगा फसलों पर कीटों का प्रभाव, पैदावार पर हो सकता है असर

बात पिछले साल सितंबर की है। केरल में वायनाड के थिरुनेली एग्री प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के किसान और सीईओ राजेश कृष्णन ने यहां धान की फसलों में कुछ अजीबो गरीब…
स्पोटेड पोटेटो लेडीबर्ड बीटल जो आलू, टमाटर, बैंगन और मिर्च की फसल को नुकसान पहुंचाता है। तस्वीर - arian.suresh/विकिमीडिया कॉमन्स।
दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर-वैथियानाथन कन्नन 

जमीन पर कूदने और रेंगने वाली मडस्किपर मछलियां

मडस्किपर एक अनोखे उभयचर मछलियों का समूह है जो इवोल्यूशन के अनुकूलन के एक चमत्कार के रूप में सामने आया है। ये दलदली इलाकों और मैंग्रोव वनों में रहती हैं।…
दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर-वैथियानाथन कन्नन 

बेंगलुरु के पार्कों का दोपहर में बंद होना और हाशिए पर रहने वाले कर्मचारियों पर इसका प्रभाव

इस साल अप्रैल महीने में बेंगलुरु में तापमान 37.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। फिर भी गार्डन सिटी के नाम से मशहूर इस शहर में कई सार्वजनिक बगीचों को तपती…
बड़वानी जिले के कुकरा राजघाट गांव की रहनेवाली सुमित्रा दरबार। यह गांव बड़वानी जिले की बड़वानी तहसील के बिरखेड़ा पंचायत में पड़ता है और पिछले साल की बाढ़ के दौरान टापू बन गया था। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे

सरदार सरोवर के जलस्तर में बदलाव से अधर में लटकी हजारों परिवारों की जिंदगियां

मध्य प्रदेश के धार जिले के एकलवाड़ा गाँव के 73 वर्षीय जगदीश सिंह तोमर को पिछले साल सितंबर में नर्मदा नदी में आई बाढ़ के बाद अपना पुश्तैनी मकान छोड़ना…
बड़वानी जिले के कुकरा राजघाट गांव की रहनेवाली सुमित्रा दरबार। यह गांव बड़वानी जिले की बड़वानी तहसील के बिरखेड़ा पंचायत में पड़ता है और पिछले साल की बाढ़ के दौरान टापू बन गया था। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे
डिब्रूगढ़, असम में बाढ़। तस्वीर- अरुनभ0368/विकिमीडिया कॉमन्स 

जलवायु परिवर्तन के कारण मेघालय में चरम बारिश की घटनाएं चार गुना बढ़ी- अध्ययन

1979 के बाद से, चार दशकों में मेघालय राज्य सहित बांग्लादेश और भारत क्षेत्र के पूर्वोत्तर हिस्सों में एक दिन में होने वाली चरम बारिश की घटनाएं चार गुना बढ़…
डिब्रूगढ़, असम में बाढ़। तस्वीर- अरुनभ0368/विकिमीडिया कॉमन्स 
बाराजान पठार से बहने वाली एक प्राकृतिक जलधारा पर निर्माणाधीन एक छोटा बांध। तस्वीर-मैत्रेय पृथ्वीराज घोरपड़े

उत्तरी गोवा के गांवों में बढ़ती पानी की किल्लत, नए हवाई अड्डे को जिम्मेदार ठहराते लोग

पिछले कई दिनों से, हर सुबह उदय महाले एक उम्मीद के साथ अपने बाथरूम का नल खोलते हैं कि शायद आज उसमें पानी आ जाए। लेकिन ऐसा होता नहीं है।…
बाराजान पठार से बहने वाली एक प्राकृतिक जलधारा पर निर्माणाधीन एक छोटा बांध। तस्वीर-मैत्रेय पृथ्वीराज घोरपड़े
बर्लिन के एक चिड़ियाघर में तिलापिया मछली। जब इन्हें जंगली इलाकों में छोड़ा जाता है, तो समय के साथ तिलापिया की आबादी तेजी से बढ़ती जाती है, जो संभावित रूप से देशी मछली प्रजातियों को विस्थापित कर देती है। तस्वीर: उडो श्रोटर/विकिमीडिया कॉमन्स। 

मीठे पानी के जलाशयों के बाद समुद्री जल में डेरा डालती तिलापिया मछली

तिलापिया मछली पाक खाड़ी के तटीय जल में अपने लिए नई जगह बना रही हैं। वो न सिर्फ इस नए क्षेत्र में बस रही हैं बल्कि प्रजनन भी कर रही…
बर्लिन के एक चिड़ियाघर में तिलापिया मछली। जब इन्हें जंगली इलाकों में छोड़ा जाता है, तो समय के साथ तिलापिया की आबादी तेजी से बढ़ती जाती है, जो संभावित रूप से देशी मछली प्रजातियों को विस्थापित कर देती है। तस्वीर: उडो श्रोटर/विकिमीडिया कॉमन्स। 
रांची के एक अस्पताल में लगे एयर कंडीशनर। तस्वीर - विशाल कुमार जैन/मोंगाबे

छोटे शहरों में फैलता एयर कंडीशनर का बाजार, मौसम में तेज बदलाव से बढ़ती जरूरत

चंदन कुमार रांची में रहते हैं। एक साल पहले ही वह परिवार के साथ दिल्ली से झारखंड की राजधानी में शिफ्ट हुए हैं। चंदन रांची के जिस नामकुम इलाके में…
रांची के एक अस्पताल में लगे एयर कंडीशनर। तस्वीर - विशाल कुमार जैन/मोंगाबे
ऑटो के रियरव्यू मिरर पर बंधा हुआ तौलिया। ड्राइवर अक्सर गर्मी से राहत पाने के लिए अपना चेहरा ढकने के लिए गीले तौलिये या कपड़े का इस्तेमाल करते हैं। तस्वीर - पल्लवी घोष।

भीषण लू से ऑटो रिक्शा चालकों की आय और स्वास्थ्य पर असर

दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में लू का प्रकोप जारी है। मौसम विभाग ने लोगों को दोपहर के वक्त छाया या घर में रहने की सलाह दी है। इस समय…
ऑटो के रियरव्यू मिरर पर बंधा हुआ तौलिया। ड्राइवर अक्सर गर्मी से राहत पाने के लिए अपना चेहरा ढकने के लिए गीले तौलिये या कपड़े का इस्तेमाल करते हैं। तस्वीर - पल्लवी घोष।
सी बकथ्रॉन झाड़ी में एक लिंक्स। चंबा ने आठ अलग-अलग मौकों पर यूरेशियन लिंक्स को देखा और कई तस्वीरें खींचीं। तस्वीर- स्टैनज़िन चंबा

भारत में पाई जाने वाली दो जंगली बिल्लियाँ को मिला अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण का दर्जा

भारत में पाई जाने वाली दो जंगली बिल्लियाँ - पलासेस कैट और मध्य एशियाई लिंक्स - को इस साल हुए 14वें  प्रवासी प्रजातियों (सीएमएस) के संरक्षण पर कन्वेंशन में जंगली…
सी बकथ्रॉन झाड़ी में एक लिंक्स। चंबा ने आठ अलग-अलग मौकों पर यूरेशियन लिंक्स को देखा और कई तस्वीरें खींचीं। तस्वीर- स्टैनज़िन चंबा

क्यों बढ़ रही हैं केरला के वायनाड में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं

केरला का उत्तरी जिला वायनाड इस साल फिर मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं के कारण चर्चा में है। जिले में जंगली हाथियों के साथ संघर्ष में इस साल जनवरी और फरवरी…
नेपाल में कैमरा ट्रैप द्वारा ली गई बाघों की तस्वीर। तस्वीर सौजन्य: DNPWC/NTNC/Panthera/WWF/ZSL

नेपाल के बाघ वाले जंगल चितवन में भय और कठिनाइयों भरा जीवन

सूर्य प्रसाद पौडेल, 42 वर्षीय एक दुबले-पतले व्यक्ति, जिनकी नाक तीखी, आंखें धंसी हुई और चेहरे पर भूरे बाल हैं। वे अपने मिट्टी के घर के सामने डगमगाते हुए खड़े…
नेपाल में कैमरा ट्रैप द्वारा ली गई बाघों की तस्वीर। तस्वीर सौजन्य: DNPWC/NTNC/Panthera/WWF/ZSL
सम गांव स्थित गोडावण कृत्रिम प्रजनन केन्द्र के बाहर गोडावण की प्रतिकृति। तस्वीर- कबीर संजय

[समीक्षा] गोडावण, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते एक पक्षी की कहानी

राजस्थान के जैसलमेर के आसपास पाए जाने वाले पक्षी गोडावण या ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का शिकार करने के लिए कभी लोग इसके अंडे या चूजे को ढूंढते थे। अगर ऐसा…
सम गांव स्थित गोडावण कृत्रिम प्रजनन केन्द्र के बाहर गोडावण की प्रतिकृति। तस्वीर- कबीर संजय
ब्लैक वेटल (अकेशिया मेरनसी)। तस्वीर- फॉरेस्ट और किम स्टार/विकिकिमीडिया कॉमन्स

विलायती बबूल की छाया में पनप रहे देसी शोला के पौधे

पश्चिमी घाट में वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि विदेशी पेड़ों की छाया में शोला वनों की मूल प्रजातियों के पुनर्जनन यानी फिर से फलने फूलने की संभावना होती…
ब्लैक वेटल (अकेशिया मेरनसी)। तस्वीर- फॉरेस्ट और किम स्टार/विकिकिमीडिया कॉमन्स
स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। तस्वीर- रुद्राक्ष चोदनकर/विकिमीडिया कॉमन्स 

स्लॉथ भालू के आवासों के लिए खतरा बनी आक्रामक पौधे की एक प्रजाति

गुजरात के जेसोर स्लोथ भालू अभ्यारण्य में हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह जानने की कोशिश की गई कि आक्रामक प्रजाति "प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा", शुष्क इलाके में स्लोथ भालू…
स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। तस्वीर- रुद्राक्ष चोदनकर/विकिमीडिया कॉमन्स 
सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र 70 वर्ग किलोमीटर में फैला है। तस्वीर-संस्कृता भारद्वाज

अरुणाचल प्रदेशः पैतृक भूमि को बचाए रखने के लिए इदु मिश्मी का सामुदायिक संरक्षण

पुराने समय में बुजुर्ग कैसे पहाड़ों में बसे एलोपा और एटुगु गांवों से हर दिन लंबी यात्राएं करते थे, जंगलों को पार करते थे और जंगली जानवरों के झुंडों का…
सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र 70 वर्ग किलोमीटर में फैला है। तस्वीर-संस्कृता भारद्वाज
अपने खेतों में काम करते हुए मोनपा जनजाति के कुछ लोग। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 

[वीडियो] क्या अरुणाचल के बढ़ते बिजली संकट को हल कर पाएंगी पारंपरिक पनचक्कियां

रूपा बौद्ध मठ में काफी चहल पहल है। उत्तर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के रूपा उप-मंडल में रहने वाली एक प्रमुख जनजाति शेरटुकपेन अपने सबसे लोकप्रिय…
अपने खेतों में काम करते हुए मोनपा जनजाति के कुछ लोग। तस्वीर- सुरजीत शर्मा/मोंगाबे 
भांगा मेले में अपने स्टॉल पर इस्माइल मोल्ला। मोल्ला बचपन से ही अपने पिता के साथ मेले में जाते रहे हैं। मेले से उनका गहरा भावनात्मक संबंध है। तस्वीर- जॉयमाला बागची/मोंगाबे 

बंगाल का ‘भांगा मेला’, जहां कचरा बेकार नहीं जाता

हर साल जनवरी में फसलों के त्योहार मकर संक्रांति को मनाने के साथ ही पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना का मथुरापुर गांव एक अनोखे मेले की तैयारियों में जुट…
भांगा मेले में अपने स्टॉल पर इस्माइल मोल्ला। मोल्ला बचपन से ही अपने पिता के साथ मेले में जाते रहे हैं। मेले से उनका गहरा भावनात्मक संबंध है। तस्वीर- जॉयमाला बागची/मोंगाबे 
सोमालिया में खराब पड़े टायर। प्रतीकात्मक तस्वीर। साल 2021 में भारत में हर दिन 2,75,000 टायर खराब हो रहे थे और इन खराब हो रहे टायरों की कोई ट्रैकिंग ही नहीं होती है। तस्वीर- वंगारी पैट्रिकके/विकिमीडिया कॉमन्स।

खराब और पुराने टायर क्यों हैं पर्यावरण के लिए गंभीर मुद्दा?

दिसंबर 2022 में भारत जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बन गया। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में ऑटोमोबाइल सेक्टर का योगदान लगभग…
सोमालिया में खराब पड़े टायर। प्रतीकात्मक तस्वीर। साल 2021 में भारत में हर दिन 2,75,000 टायर खराब हो रहे थे और इन खराब हो रहे टायरों की कोई ट्रैकिंग ही नहीं होती है। तस्वीर- वंगारी पैट्रिकके/विकिमीडिया कॉमन्स।
गंडक नदी के किनारे मौजूद एक घड़ियाल। इस प्रजाति के लगातार कम होते जाने की वजह इनकी खास प्रकृति, खासकर इनके निवास स्थल को लेकर इनका व्यवहार और इनके संरक्षण के खिलाफ होने वाली कई इंसानी गतिविधियां हैं। तस्वीर- आशीष पांडा।

असंरक्षित नदियों में भी होना चाहिए घड़ियालों का संरक्षण

गेविलियस जीन वाले मगरमच्छों की फैमिली में से बची एकमात्र प्रजाति, घड़ियाल की संख्या कम होती जा रही है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में…
गंडक नदी के किनारे मौजूद एक घड़ियाल। इस प्रजाति के लगातार कम होते जाने की वजह इनकी खास प्रकृति, खासकर इनके निवास स्थल को लेकर इनका व्यवहार और इनके संरक्षण के खिलाफ होने वाली कई इंसानी गतिविधियां हैं। तस्वीर- आशीष पांडा।
कर्नाटक के कोक्करेबेल्लूर गांव में एक लड़की ने अपने कपड़े सूखने को डाले हैं और पास के पेड़ों पर रंगीन सारस और पेलिकन ने अपने घोंसले बना रखे हैं। शिम्शा नदी के किनारे मौजूद इस गांव में हर साल औसतन 500 पेलिकन और 2000 रंगीन सारस आते हैं और घोंसला लगाते हैं। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे।

हर समय पक्षियों के झुंड की रक्षा करता है ये गांव

दिसंबर का महीना है और कोक्करेबेल्लूर गांव में सुबह-सुबह चमकदार सूरज निकला होने के बावजूद ठंड अपने चरम पर है। साल 2017 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कम्युनिटी…
कर्नाटक के कोक्करेबेल्लूर गांव में एक लड़की ने अपने कपड़े सूखने को डाले हैं और पास के पेड़ों पर रंगीन सारस और पेलिकन ने अपने घोंसले बना रखे हैं। शिम्शा नदी के किनारे मौजूद इस गांव में हर साल औसतन 500 पेलिकन और 2000 रंगीन सारस आते हैं और घोंसला लगाते हैं। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे।
सुंदरबन में स्मूद कोटेड ऊदबिलाव। प्रतीकात्मक तस्वीर। तस्वीर- अनिर्नय/विकिमीडिया कॉमन्स

आंकड़ों के अभाव में भारत के पूर्वोत्तर में प्रभावित हो रहा है ऊदबिलावों का संरक्षण

कामेंग नदी के किनारे खड़े एक बड़े से पेड़ की मोटी-मोटी जड़ों से घिरी कुछ चट्टानों की दरारों की ओर इशारा करते हुए और उत्साहित होते हुए जेहुआ नातुंग कहते…
सुंदरबन में स्मूद कोटेड ऊदबिलाव। प्रतीकात्मक तस्वीर। तस्वीर- अनिर्नय/विकिमीडिया कॉमन्स
मुंबई में एक मैंग्रोव की प्रतीकात्मक तस्वीर। मैंग्रोव में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने की सबसे अहम वजह उस क्षेत्र में इंसानी गतिविधियों को माना जाता है और ये अलग-अलग इलाकों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती हैं। तस्वीर- सौमित्र शिंदे/मोंगाबे।

दक्षिण पश्चिमी भारत के मैंग्रोव में मिले फाइबर जैसे माइक्रोप्लास्टिक

भारत में हुई एक नई स्टडी में दक्षिण-पश्चिमी भारत के मैंग्रोव में पाए गए कई तरह के माइक्रोप्लास्टिक और उनके डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में जानकारी दी गई है। इससे, इन…
मुंबई में एक मैंग्रोव की प्रतीकात्मक तस्वीर। मैंग्रोव में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने की सबसे अहम वजह उस क्षेत्र में इंसानी गतिविधियों को माना जाता है और ये अलग-अलग इलाकों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती हैं। तस्वीर- सौमित्र शिंदे/मोंगाबे।
मेघालय के री भोई जिले में धान के खेत। मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की प्रजातियां इस क्षेत्र में संरचना बदल रही हैं और चावल के खेतों में तेजी से प्रजनन कर रही हैं। तस्वीर-वंदना के.

मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों ने बदला अपना बसेरा, जंगलों को छोड़ धान के खेतों में ढूंढी नई जगह

मलेरिया का जिक्र आते ही अक्सर घरों और आस पास भिनभिनाने वाले मच्छरों की तस्वीर हमारे दिमाग में घूमने लग जाती है। आपको ये जानकर थोड़ा हैरानी होगी कि पूर्वोत्तर…
मेघालय के री भोई जिले में धान के खेत। मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की प्रजातियां इस क्षेत्र में संरचना बदल रही हैं और चावल के खेतों में तेजी से प्रजनन कर रही हैं। तस्वीर-वंदना के.
अपने खेत में केले की फसल के साथ निशांत के.। उनके इस खेत में देशी और विदेशी किस्मों सहित फलों की लगभग 250 प्रजातियां हैं। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

केरल में किसानों ने उगाए अलग-अलग प्रकार के केले, पारंपरिक किस्मों के संरक्षण में मिली मदद

केरल के वायनाड जिले के 49 वर्षीय केला किसान निशांत के. ने कहा, "केरल के हर जिले का अपना पसंदीदा केला है।" अकेले उनके खेत में ही 250 से अधिक…
अपने खेत में केले की फसल के साथ निशांत के.। उनके इस खेत में देशी और विदेशी किस्मों सहित फलों की लगभग 250 प्रजातियां हैं। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे
पृथ्वी का तापमान 1850-1900 के "पूर्व-औद्योगिक" औसत की तुलना में 1.5 और 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करना शुरू कर रहा है। इससे लोगों को गर्मी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। तस्वीर-योगेंद्र सिंह/Pexels।

उफ़्फ़ ये गर्मी! क्यों बढ़ता ही जा रहा है पृथ्वी का पारा?

वैज्ञानिक शायराना अंदाज में कहते हैं, “धरती को बुखार हो गया है।” इसका मतलब यह है कि तापमान 1850-1900  के "औद्योगिक क्रांति से पहले" के औसत की तुलना में 1.5…
पृथ्वी का तापमान 1850-1900 के "पूर्व-औद्योगिक" औसत की तुलना में 1.5 और 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करना शुरू कर रहा है। इससे लोगों को गर्मी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। तस्वीर-योगेंद्र सिंह/Pexels।
भारत में हिम तेंदुओं की संख्या का अनुमान आखिरी बार 1980 के दशक में लगाया गया था। इसके मुताबिक, देश में हिम तेंदुओं की संख्या 400 से 700 थी। तस्वीर-इस्माइल शरीफ। 

[वीडियो] हिम तेंदुओं की संख्या 700 पार हुई, अगला कदम दीर्घकालिक निगरानी

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से इस महीने की शुरुआत में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हिम तेंदुओं की संख्या 718 हो गई हैं। इस…
भारत में हिम तेंदुओं की संख्या का अनुमान आखिरी बार 1980 के दशक में लगाया गया था। इसके मुताबिक, देश में हिम तेंदुओं की संख्या 400 से 700 थी। तस्वीर-इस्माइल शरीफ।